द लीडर | प्रवर्तन निदेशालय ने गुरुवार को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में वॉशिंगटन पोस्ट की कॉलमिस्ट राणा अय्यूब के 1.77 करोड़ रुपए अटैच किए। ईडी अधिकारी ने कहा कि राणा अय्यूब ने कथित तौर पर 3 अभियानों के लिए दिए गए दान का सही उद्देश्य के लिए इस्तेमाल नहीं किया। ईडी ने पिछले साल सितंबर महीने में उत्तर प्रदेश पुलिस की ओर से दर्ज की गई एफआईआर के आधार पर पिछले साल अय्यूब के खिलाफ जांच शुरू की थी।
ED attaches Rs 1.77 crore of Washington Post columnist Rana Ayyub in money laundering case
"She allegedly didn't utilize donations meant for 3 campaigns for right purpose. Parts of donations were allegedly used for personal expenses," says ED official
(Pic: Her Twitter account) pic.twitter.com/kL3HHikKUh
— ANI (@ANI) February 10, 2022
क्या है मामला?
विकास सांकृत्यायन नाम के एक व्यक्ति ने राणा अय्यूब के खिलाफ उत्तर प्रदेश पुलिस को शिकायत दी थी। उसने आरोप लगाया था कि राणा अय्यूब ने कोरोना के मरीजों और कुछ पूर्वी राज्यों में बाढ़ पीड़ितों की मदद के नाम पर चंदा जुटाया था। राणा अय्यूब ने केटो पर 2,69,44,680 की राशि जुटाई। इसमें से पैसे उसकी बहन, पिता के बैंक खातों के जरिए निकाले गए। गाजियाबाद के इंदिरापुरम पुलिस स्टेशन ने राणा अय्यूब के खिलाफ केस दर्ज किया था।
सितंबर 2021 से ईडी इस मामले की जांच कर रही है। ईडी के अनुसार धन पूरी तरह से पूर्व नियोजित और व्यवस्थित तरीके से चैरिटी के नाम पर उठाया गया था। जिस उद्देश्य से पैसे जुटाए गए उसका सही इस्तेमाल नहीं किया गया। राहत कार्य के लिए पैसे का उपयोग करने के बजाय राणा अय्यूब ने एक अलग करंट बैंक अकाउंट खोलकर इस राशि को उसमें डाल दिया। अय्यूब ने पीएम केयर्स फंड और सीएम रिलीफ फंड में कुल 74.50 लाख रुपए जमा किए।
इन तीन अभियानों के लिए केटो पर जुटाए धन
यूपी पुलिस की प्राथमिकी में यह दावा किया गया था कि राणा अय्यूब ने इन अभियानों के लिए धन जुटाया था– पहला झुग्गीवासियों और किसानों के लिए, असम, बिहार और महाराष्ट्र के लिए राहत कार्य और अप्रैल 2020 और जून 2021 के बीच भारत में कोरोना प्रभावित लोगों की मदद के लिए। यह सब अनुमोदन प्रमाण पत्र और सरकार से पंजीकरण लिए बिना किया गया, जो कि विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम के अनुसार आवश्यक है।
गुजरात फाइल्स का जिक्र
राणा अयूब ने गुजरात में कथित फर्जी मुठभेड़ों में तमाम स्टिंग ऑपरेशन किए। 8 महीने में अयूब ने तमाम अधिकारियों और लोगों की बात रिकॉर्ड की थीं। इन्होंने गुजरात दंगों पर और गुजरात फाइल्स नाम की किताबें भी लिखीं। जिसके बाद ये सुर्खियों में आ गईं। राणा अयूब अक्सर ट्वीटर पर लोगों के निशाने पर होती हैं। वो हमेशा कुछ ऐसे विवादास्पद मसलों पर अपनी राय रखती हैं। कुछ दिनों पहले उन्होंने सऊदी अरब के लिए भी ट्वीट किया जिसके बाद उनको लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा। राणा अयूब पीएम मोदी और भाजपा संघ की कड़ी आलोचक हैं। वो समय-समय पर इनके खिलाफ गुस्सा भी जाहिर करती रहती हैं।
वाशिंगटन पोस्ट की एक खबर पर भी इनका नाम
अमेरिका द्वारा की गई कार्रवाई में आईएसआईएस के प्रमुख अबु बकर अल बगदादी को मारा गया था। उसके बाद में वाशिंगटन पोस्ट से ट्वीटर पर ट्वीट आता है, कि एक सीधे-साधे धार्मिक गुरु के साथ में अमेरिका ऐसा कैसे कर सकता है। सीधे-साधे का मतलब क्या था? क्या बगदादी एक सीधा-साधा व्यक्ति था जो अपनी शिक्षा के द्वारा लोगों में अपने धर्म की शिक्षाओं को बढ़ाना धार्मिक शिक्षा देना लोगों को धर्म के प्रति जागरूक करने का काम करता था। अपने इसी माइंडसेट के कारण राणा अयूब को एक बड़ा तबका कभी समर्थन नहीं देता था।