अब ठीक हैं पाकिस्तान के यूसुफ खान: भारत के अभिमान दिलीप कुमार

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हिंदी सिनेमा प्रेमियों के लिए तसल्लीबख्स खबर है। 98 वर्षीय दिलीप कुमार के आधिकारिक ट्वीटर हैंडल से सूचना दी गई है कि अब अस्पताल से घर जा रहे हैं और उनकी तबीयत ठीक है।

महामारी के दौर में कौन किससे जुदा हो जाए, यह खौफ हर मन में पसरा है। ऐसे माहौल में जब फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज कलाकार दिलीप कुमार के बीमार होने की खबर आई तो हर कोई बेचैन हो उठा।

यह बेचैनी सिर्फ हिंदुस्तान में ही नहीं, पाकिस्तान में भी थी। क्योंकि दिलीप कुमार जैसे हिंदुस्तान के दादा साहब फाल्के पुरस्कार के हकदार बने, वैसे ही उन्हें पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज से नवाजा जा चुका है। यही नहीं, अब पाकिस्तान में उनके घर को राष्ट्रीय धरोहर बतौर सहेजने की कोशिशें हो रही हैं।

हिंदी सिनेमा के दिग्गज और ट्रेजडी किंग के नाम से मशहूर अभिनेता दिलीप कुमार उर्फ़ मोहम्मद युसुफ़ ख़ान को दादा साहब फाल्के पुरस्कार के अलावा पद्म भूषण, पद्म विभूषण और से भी सम्मानित किया जा चुका है। कई बार राज्यसभा सदस्य भी बनाए गए हैं।

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उनका जन्म 11 दिसम्बर 1922 को मौजूदा पाकिस्तान के पेशावर शहर में हुआ था। पिता लाला ग़ुलाम सरवर फल बेचकर परिवार का ख़र्च चलाते थे। विभाजन के दौरान उनका परिवार मुंबई आकर बस गया। उनका शुरुआती जीवन तंगहाली में ही गुजरा।

पिता के व्यापार में घाटा होने के कारण वह पुणे की एक कैंटीन में काम करने लगे थे। यहीं देविका रानी की पहली नज़र उन पर पड़ी और उन्होंने दिलीप कुमार को अभिनेता बना दिया।

देविका रानी ने ही ‘युसूफ़ ख़ान’ की जगह उनका नया नाम ‘दिलीप कुमार’ रखा। पच्चीस वर्ष की उम्र में दिलीप कुमार देश के नंबर वन अभिनेता के रूप में स्थापित हो गए थे।

दिलीप कुमार की शादी अभिनेत्री सायरा बानो से वर्ष 1966 में हुई। विवाह के समय दिलीप कुमार 44 वर्ष और सायरा बानो 22 वर्ष की थीं। 1980 में कुछ समय के लिए उन्होंने आसमां से दूसरी शादी भी की थी।

आजादी के बाद देश निर्माण में फिल्मों का भी खासा योगदान रहा। उस दौर में लिखी पटकथाओं और किरदारों में दिलीप कुमार की मौजूदगी चार चांद लगा देती थी। फैक्ट्री मजदूर से लेकर गांव के बदलाव की कहानियाें में उनके अभिनय बेजोड़ दिखाई देते हैं।

दिलीप कुमार ने अपने करियर की शुरुआत फिल्म ‘ज्वार भाटा’ से की, जो वर्ष 1944 में आई। उनकी पहली हिट फ़िल्म ‘जुगनू’ थी। 1947 में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म ने बॉलीवुड में दिलीप कुमार को हिट फिल्मों के स्टार की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। 1949 में फिल्म ‘अंदाज’ में दिलीप कुमार ने पहली बार राजकपूर के साथ काम किया। यह फिल्म हिट साबित हुई।

दीदार (1951) और देवदास (1955) जैसी फ़िल्मों में गंभीर भूमिकाओं के लिए मशहूर होने के कारण उन्हें ट्रेजडी किंग कहा जाने लगा। मुग़ले-ए-आज़म (1960) में उन्होंने मुगल शहजादे जहांगीर की भूमिका निभाई। ‘राम और श्याम’ में दिलीप कुमार द्वारा निभाया गया दोहरी भूमिका (डबल रोल) लोग याद करते हैं।

1970, 1980 और 1990 के दशक में उन्होंने कम फिल्मों में काम किया। इस समय की उनकी प्रमुख फ़िल्में थीं: क्रांति (1981), विधाता (1982), दुनिया (1984), कर्मा (1986), इज्जतदार (1990) और सौदागर(1991)।

1998 में बनी फिल्म ‘किला’ उनकी आखिरी फिल्म थी। उन्होने रमेश सिप्पी की फिल्म शक्ति मे अमिताभ बच्चन के साथ भी काम किया। इस फिल्म के लिए उन्हे फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।


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