क्या फिलिस्तीन पर इजराइल के काम आ रहा हमास, पढ़िए मुहम्मद शाहीन का नजरिया

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गाजा पर इजराइली हमले में ध्वस्त मकान, बचाव राहत कार्य में जुटा सुरक्षाबल.

फिलिस्तीन के शेख जर्राह में हालिया मामले में हुआ यूं कि इजराइल की कोर्ट ने 1970 के कानून को हरी झंडी देकर फैसला सुना दिया कि कानून सही है और यहूदियों को फिलिस्तीन टेरेटरी में अपनी पुरानी ज़मीन वसूल करने का अधिकार है. ये दरअसल ईस्ट येरूशलम के 36 फिलिस्तीनी परिवारों का मुकदमा था, जो बरसों से कोर्ट में चल रहा था. इस फैसले से उन फिलिस्तीनी परिवारों के घर छिनने का खतरा पैदा हो गया था. जाहिर है इसके बाद दूसरे हजारों लोगों के मकानात ज़मीनें भी छिनने ही वाले थे.

इसी को लेकर पूर्वी येरूशलम में प्रोटेस्ट चल रहे थे. जो मस्जिद अल अक्सा तक जा पंहुचे थे. इसी गर्मागर्मी के दौरान यहूदियों ने एक और उकसाऊ कार्रवाई ये की, कि 14 मई 1967 की याद में विजय जुलूस निकाला और खासकर मस्जिद अल अक्सा के बाहर गेटों के पास निकाला. जुलूस था इसलिए भड़काऊ नारेबाजी भी हुई होगी.

नतीजा ये हुआ कि प्रोटेस्ट कर रहे फिलिस्तीनियों ने इस जलूस पर पथराव कर दिया. इसके बाद मस्जिद में पुलिस के साथ जमकर बवाल हुआ. ये सारा मामला पूर्वी येरूशलम में चल रहा था. इसका गाज के कन्ट्रोलर हमास से सीधा कनेक्शन नहीं था. लेकिन इसके बाद हमास की एन्ट्री होती है. हमास ने उसी दिन 10 मई की रात तक की डेडलाइन जारी करते हुए धमकी दी कि इजराइल तुरंत फिलिस्तीन टेरेटरी से अपने तमाम कब्ज़े छोडकर वापस इजराइल टेरेटरी में लौटे. वरना रॉकेट हमले किए जाएंगे.


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डेडलाइन खत्म होने पर हमास ने गाजा से इजराइली शहरों की रिहायशी आबादियों पर रॉकेट हमले शुरू कर दिए. इसके बाद क्या हुआ आपको पता ही है. इजराइली सरकार और बड़े मीडिया ने रॉकेट के विजुअल्स दुनिया को इस तरह दिखाकर पेश किए. जैसे इजराइल पर परमाणु हमला हो गया हो.

दो दिन तक इजराइल विक्टिम बनकर यही दिखाता रहा कि देखो हम बर्दाश्त कर रहे हैं. हम पहल नहीं कर रहे. हम मज़लूम हैं. और हमास हमलावर है. यही वो बेसिक पॉइंट है, जिस पर ग्लोबल कम्युनिटी की हमदर्दी इजराइल के साथ खड़ी होती है. और ये पहली बार नहीं है. हमेशाद और हर बार यही होता है.

सिर्फ इस नुकते को छोड़कर अमेरिका समेत सारी दुनिया इजराइल के खिलाफ है. और उसे जालिम मानती है. मगर जब भी इजराइल को दुनिया की नजरों में फजीह का सामना होता है. तभी हमास इजराइल के लिए संकटमोचक बनकर सामने आता है. मस्जिद अल अक्सा को फिलहाल बिल्कुल खतरा नहीं है. और ना ही इजराइल इस पोजिशन में है कि इस्लामी दुनिया के साथ पूरी दुनिया की नाराज़गी एक साथ मोल ले सके.


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कल क्या होगा वो अलग बात है. मगर आज तो यही है कि इजराइल ऐसा दुस्साहस नहीं कर सकता कि इंटरनेशनल कम्युनिटी को बाईपास करके एक कदम भी आगे बढ़ा सके. इजइल इंटरनेशनल कानूनों से बंधा हुआ है. मगर पिछले तीस साल से हमास उसके बहुत काम आ रहा है. इजराइल को पता है कि फिलिस्तीन में मौजूद करीब 70-80 लाख लोगों को मारा नहीं जा सकता.

इसलिए हर साल हमास से रॉकेट छुड़वाए जाते हैं और हर साल फिलिस्तीन पर इजराइली मिसाइल हमले होते हैं .नतीजे में हर साल लाखों फिलिस्तीनी अपने घर बार छोड़कर दूसरे देशों में शरण तलाशते हैं. अब जो परिवार खुद ही मुल्क छोड़कर जा रहे हों. उनकी वजह से कौन से इंटरनेशनल कानून के तहत इजराइल पर अतंराष्ट्रीय अदालत में मुकदमा चलाया जाए?

( मुहम्मद शाहीन ने तीन आलेखों में फिलिस्तीन और इजराइल विवाद पर अपनी राय रखी है. इस खबर के साथ उनके तीनों आलेखों के लिंक हैं. पढ़िए)

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