मुहम्मद शाहीन :
अरब-इजराइल के बीच 1948, 1967 और 1973 में ये तीन जंगें हुईं. इसमें इजराइल ने अरबों को हराकर फिलिस्तीनी इलाकों को अपने कब्जे में लेकर टेरेटरी घोषित कर दिया. लेकिन उस पर अमलन कब्जा बरकरार ना रख पाया. क्योंकि इन इलाकों में आजादी मूवमेंट चल रहे थे. अरब और इजराइल जंगों के दरम्यान यासिर अराफात ने फिलिस्तीन की आजादी के लिए लड़ रहे अल-फतह और दीगर ग्रुपों को मिलाकर 1964 में फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (PLO) बनाया.
दुनिया के 100 से ज्यादा देशों ने PLO को फिलिस्तीन का इकलौता नुमाइंदा माना है. 1974 से PLO को संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) में ऑब्जर्वर का दर्जा हासिल है. यासिर अराफात दुनिया के अकेले नेता थे, जिनके पास कोई मुल्क ना होते हुए भी UNO की जनरल असेंबली को संबोधित करने का मौका मिला.

13 सितंबर, 1993 को अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की मध्यस्थता में इजराइल के प्रधानमंत्री यित्साक रॉबिन और PLO के सदर यासिर अराफात ने नार्वे की राजधानी ओस्लो में शांति समझौता किया. इस समझौते के मुताबिक तय पाया गया कि इजराइल 1967 से अपने कब्जे वाले फिलस्तीनी इलाकों से हटेगा.
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एक फिलस्तीनी अथॉरिटी बनाई जाएगी. और एक दिन फिलिस्तीनियों को एक देश के तौर पर आजादी मिलेगी. समझौते से नाराज एक फंडामेंटल यहूदी ने 1995 में प्रधानमंत्री यित्साक रॉबिन का कत्ल कर दिया. समझौते के मुताबिक गाजा और वेस्ट बैंक में फिलिस्तीन अथॉरिटी की सिविल खुद मुख्तार हुकूमत क़ायम हो गई.
इस निजाम से नाराज होकर एक दूसरे फंडामेंटल ग्रुप हमास ने फौरन ही बग़ावत करके इंतिफादा नामी लड़ाई छेड़ दी. जो रुक-रुककर आज तक जारी है. हमास के मुद्दे पर हम अलग से पोस्ट सीरीज बनाकर चर्चा करेंगे.

इस तमाम जद्दोजहद के दौरान फिलिस्तीन मुद्दा बराबर UNO की सुरक्षा परिषद में छाया रहा. हर बार सिक्योरिटी काउंसिल ने फिलिस्तीन के हक में और इजराइल के विरोध में एकराय से रिजॉल्यूशन (प्रस्ताव) पास किए. जिनमें इजराइल के सबसे बड़े हामी अमेरिका की भी सहमति शामिल रही.
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तहरीर का ये हिस्सा सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील प्रोफेसर फैजान मुस्तफा के वी-ब्लॉग से फैक्ट लेकर लिखा गया है. 23 दिसंबर 2016 काे UNO सिक्योरिटी काउंसिल (जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस
,चीन और रूस शामिल हैं. पांचों के बहुमत के बाद ही रिजॉल्यूशन पास होता है.) इसका रिजॉल्यूशन नंबर 2334 कहता है कि इजराइल का फिलिस्तीन एरिया में सेटलमेंट अवैध है. इजराइल गासिब यानी जबरदस्ती कब्जाधारी ऑक्युपाई पॉवर है.

इस्राइल को कब्जा किए गए इलाके फौरन छोड़ने होंगे. पूर्वी येरूशलम में भी इजराइल की तमाम ऑक्युपाई एक्टिविटी इंटरनेशनल लॉ के मुताबिक गैरकानूनी हैं. लिहाजा इजराइल फौरन वहां से भी विदड्रॉ करे. इसी रिजॉल्यूशन में कई पुराने रिजॉल्यूशन को भी कोट किया गया है. हर एक में प्रस्ताव इजराइल के खिलाफ पारित हुआ है. इसमें 1969, 1973, 1979, 1980, 2002, 2003, 2008, इन सभी प्रस्तावों को उपरोक्त रिजॉल्यूशन में कोट करके और मज़बूत बनाया गया है.
इसी रिजॉल्यूशन में UN काउंसिल ने इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस 2004 के फैसले का भी हवाला दिया है, जिसमें कहा गया था कि किसी भी देश को दूसरे देश में घुसकर जबरदस्ती कब्जा करने की इजाज़त नहीं है. और इजराइल फिलीस्तीन में ज़बरदस्ती कब्ज़े कर रहा है. इतना ही नहीं इसी रिजॉल्यूशन में कहा गया है कि इजराइल सरकार फिलिस्तीन टेरेटरी की भौगोलिक-डेमोग्राफिक स्थिति बदलने की कोशिश कर रही है.
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वो मुसलमानों को हटाकर वहां यहूदियों को बसाकर बहुसंख्यक होना चाहती है. इसी में आगे कहा गया है कि इजराइल UNO के 1967 के उस फैसले को भी चुनौती दे रहा है, जिसमें दोनों टेरेटरी के लिए लाइनों के जरिए नए सिरे से दो राष्ट्रों की सीमा निर्धारित की गई थी. इसी रिजॉल्यूशन में सबसे खास आर्टिकल ये है कि दोनों टेरेटरी में से किसी भी टेरेटरी की तरफ से, सिविल आबादी यानी आम नागरिकों को को टारगेट करके किया गया कोई भी हिंसात्मक हमला कड़ा निंदनीय कृत्य होेगा. और इसे आतंकवाद माना जाएगा.
दरअसल, इजराइल ने इसी आर्टिकल को बुनियाद बनाकर तमाम इंटरनेशनल लॉ को पसेपुश्त डालता है. और खुद पर हुए हमले दिखाकर रिटेलिएट के अधिकार के तहत अपना जवाबी हमला शो करता है. यही वो बुनियादी केंद्रबिंदु है जहां इजराइल को ग्लोबल कम्युनिटी (वैश्विक जगत) की हिमायत हासिल होती है. क्योंकि इजराइल खुद को विक्टिम (पीड़ित) शो करता है. इसलिए ग्लोबल वर्ल्ड इजराइल के साथ खड़ा दिखाई देता है.