द लीडर हरिद्वार।
कहाँ तो हरिद्वार में हर साल रामनवमी पर 10 लाख तक लोग पहुंचते थे औऱ इस बार कुम्भ के बावजूद सन्नाटा रहा। कुछ हजार लोग भी नहीं पहुंचे। संत भी डेरों में ही डरे से रहे।
देहरादून का ऐतिहासिक झंडे का मेला रामनवमी के दिन शहनशाही आश्रम में शिफ्ट हो जाता था, लेकिन इस बार कोरोना के चलते झंडा मेला भी तीन दिन ही चला। हरिद्वार कुंभ में भी आज के दिन श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान से परहेज करने में ही भलाई समझी। हरकी पैड़ी में अंगुलियो में गिनने लायक श्रद्धालु ही नजर आए। उत्तराखंड के ज्यादातर इलाकों में लोगों ने घर में ही पूजा की। वहीं, कई मंदिरों में कोरोना के नियमों के तहत प्रतीकात्मक आयोजन किए गए।
21 अप्रैल को तीर्थनगर हरिद्वार में अधिकतर गंगा घाट खाली थे। मंगलवार को दिल्ली-हरिद्वार हाईवे पर पूरे दिन सन्नाटा पसरा रहा। अगर दिल्ली में लॉकडाउन बढ़ता है तो इसका प्रभाव चैत्र पूर्णिमा के अंतिम महाकुंभ स्नान पर भी दिख सकता है।
ऋषिकेश रघुनाथ मंदिर में महामारी से बचने के लिए बहुत ही सूक्ष्म रूप से भगवान को निकट गंगा जी में स्नान कराकर मंदिर में स्थापित कर दिया गया।
अखाड़ों की जंग जारी
हरिद्वार कुंभ मेले में आखिरी शाही स्नान से पहले अखाड़ा परिषद में विवाद जारी है। 27 अप्रैल के शाही स्नान को लेकर निर्मोही अखाड़े के अध्यक्ष श्रीमहंत राजेन्द्र दास महाराज और वैष्णव संप्रदाय के संतो ने सरकार से सन्यासी अखाड़ों के शाही स्नान करने पर रोक लगाने की माँग की है।
राजेंद्र दास ने कहा कि सन्यासी अखाड़ों ने कुम्भ मेले से पहले ही मेला विसर्जन कर कर दिया है अब उन्हें शाही स्नान करने का कोई औचित्य नही रह जाता । वे बार बार मेले के समापन को लेकर बयान बदल रहे है इसलिए उनकी सरकार और मेला प्रशासन से मांग है कि सन्यासी अखाड़ों को शाही स्नान करने रोका जाए 27 अप्रैल के शाही स्नान में केवल बैरागी संतो के तीन अखाड़े, उदासी अखाड़े, निर्मल अखाडा और सनियासियो का महानिर्वाणी अखाड़े के साधु संत ही शाही स्नान करें ।
अखिल भारतीय चतुर संप्रदाय के महामंडलेश्वर सांवरिया बाबा का भी कहना है कि जिन सन्यासी अखाड़ों ने उनके समाप्ति की घोषणा की है हम मेला प्रशासन मुख्यमंत्री गृहमंत्री सबसे निवेदन करते हैं कि आप उनको शाही स्नान नहीं करने दिया जाए।