बिलकिस बानो के गुनाहगारों के ख़िलाफ़ सुप्रीमकोर्ट पहुंचीं TMC सांसद महुआ मोईत्रा, क्या बोले CJI

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Bilkis Bano Case Gujrat Riots
बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करती महिलाएं.

द लीडर : (Bilkis Bano Case) गुजरात दंगों की पीड़ित बिलकिस बानो के सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के 14 लोगों की हत्या के 11 आरोपियों की रिहाई का मामला सुप्रीमकोर्ट पहुंच गया है. तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोईत्रा के अलावा माकपा नेता सुभासिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार-फिल्म निर्माता रेवती लौल और दर्शनशास्त्र की प्रोफ़ेसर रेखा वर्मा ने गुजरात सरकार के फ़ैसले को चुनौती दी है. (Bilkis Bano Case Gujrat Riots)

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अपर्णा भट्ट ने चीफ़ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस सीटी रवि कुमार की पीठ के समक्ष याचिका प्रस्तुत की और इस मामले में सुनवाई का अनुरोध किया.. सीजेआई केस देखने के लिए सहमत हो गए हैं. उन्होंने पूछा-क्या दोषियों को सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर रिहा किया गया है… वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा-हम सुप्रीमकोर्ट के आदेश को नहीं बल्कि रिहाई को चैलेंज कर रहे हैं.

उधर टीएमसी सांसद महुआ मोईत्रा की ओर से एडवोकेट शादान फ़रासत ने भी सुप्रीमकोर्ट में जनहित याचिका लगाई है. जिसमें कहा है कि राज्य सरकार ने जाति के आधार पर ”बाहरी विचारों” पर गुनाहगारों को रिहा किया है. रिहाई पैनल ने कथित तौर पर कहा कि दोषी-ब्राह्म्ण हैं उनके संस्कार अच्छे हैं. इतना ही नहीं बाद में दोषियों की रिहाई पर विश्व हिंदू परिषद द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया है.

बिलकिस बानो का केस साल 2002 के (Gujrat Riots 2002) गुजरात दंगों का एक ख़ौफ़नाक दृश्य है. जब भीड़ ने उनके घर में घुसकर 7 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. बिलकिस और उनकी मां के साथ बलात्कार किया. इस हमले में उनके घर के आधा दर्जन लोग लापता हो गए, जिनका कोई सुराग नहीं मिला, इसलिए उन्हें भी मृत माना गया. भीड़ द्वारा मारे गए 12 लोगों में बिलकिस बानो की एक तीन साल की बेटी भी शामिल थीं. (Bilkis Bano Case Gujrat Riots)


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इस मामले में 11 आरोपी पिछले 14 सालों से जेल काट रहे थे, जिन्हें 15 अगस्त के दिन गुजरात सरकार ने रिहा कर दिया है. बिलकिस के दोषियों में जसवंत नई, गोविंद नाई, शैलेष भट्ट, राधेशम शाह, बिपिन चंद्र, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप मोर्धिया, बकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चंदना शामिल हैं.

गुजरात के अतिरिक्त मुख्य सचिव-गृह राज कुमार ने कथित तौर पर कहा कि दोषियों को “14 साल पूरे होने” की जेल और दूसरे तमाम कारणों-मसलन “उम्र, अपराध की प्रकृति, जेल में उनके आचर-व्यवहार के आधार पर रिहा किया गया था.

बिलकिस का परिवार गुजरात के दाहोद ज़िले के लिमखेड़ा तालुका में रहता था. जब ये घटना हुई, तब बिलकिस 5 महीने की गर्भवती थीं. इसके बावजूद भीड़ ने उनके प्रति कोई हमदर्दी नहीं दिखाई, बल्कि इंसानियत को शर्मसार करने वाली हर घिनौनी हरकत को अंजाम दिया था. (Bilkis Bano Case Gujrat Riots)

अपने गुनाहगारों को सज़ा दिलाने के लिए बिलकीस को लंबा संघर्ष करना पड़ा. स्थानीय अदालत में जब उनका केस खारिज हो गया था. तो बिलकिस राष्ट्रीय मानवाधिकारी आयोग गईं और फिर सुप्रीमकोर्ट में याचिका लगाई. सुप्रीमकोर्ट ने नए सिरे से इसकी सीबीआई जांच कराई. इस मामले में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने 2008 आरोपियों को दोषी ठहराया था. जिसमें 11 को सामूहिक बलात्कार और हत्या के आरोप में उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई थी.

साल 2019 में सुप्रीमकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि बिलकिस बानो को 50 लाख रुपये का मुआवजा दियाय जाए. भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने राज्य सरकार को बिलकिस को नौकरी और आवास मुहैया कराने का भी निर्देश दिया था.

लेकिन अब जब राज्य सरकार ने बिलकिस बानो के दोषियों को रिहा कर दिया है. और जेल से बाहर आने पर उनका भव्य स्वागत हुआ, तो एक बार फिर गुजरात दंगों की वो भयानक दास्तां अंतरराष्टीय सुर्ख़ियों में बनी है. जिसमें सैकड़ों बेकुसूर लोग मारे गए थे. (Bilkis Bano Case Gujrat Riots)

बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई को लेकर विपक्षी दल राज्य की सत्तारूढ़ भाजपा पर हमलावर हैं. कांग्रेस से लेकर समाजवादी पार्टी, टीएमसी, एआइएमआइएम समेत दर्जनों राजनीतिक दल और सामाजिक-नागरिक संगठन इस फ़ैसले की आलोचना कर रहे हैं. और जघन्य अपराध के दोषियों के आदर-सत्कार और स्वागत को मानवता-महिलाओं के आत्मसम्मान और न्याय की आत्मा के वितरीत मान रहे हैं.

यही वजह है कि अब इस केस में जनहित याचिकाएं दायर की जाने लगी हैं. सांसद महुआ मोईत्रा ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि दोषियों की रिहाई में साफ़तौर पर राजनीतिक रंग दिखाई देता है. रिहाई के इर्दगिर्द की घटनाओं से ऐसा मालूम पड़ता है कि यह सत्ता का दुर्भावनापूर्ण प्रयोग है, जिसमें सांप्रदायिक एजेंडे की झलक दिखती है. इससे पहले महुआ मोईत्रा ने इंडियन एक्सप्रेस में बिलकिस बानो मामले पर एक आर्टिकल लिखा था, जो काफी चर्चा में रहा. (Bilkis Bano Case Gujrat Riots)


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