दंगल फिल्म देखी होगी। कहानी तो वह भी सच ही थी। अब एक खुशखबरी है। वह भी वहां से, जहां की जिंदगी बेहद मुश्किल है। खासतौर पर आदिवासियों के लिए। इन मुश्किलों के बीच ही एक उम्मीद से देश चकाचौंध है। हम बात कर रहे हैं झारखंड की उरांव जनजाति के आदिवासी किसान परिवार की बच्ची चंचला कुमारी की।
अभी साढ़े चौदह साल ही हैं चंचला। अपने हुनर, साहस, मेहनत की बदौलत वे अब कुश्ती की विश्व चैंपियनशिप में खेलेंगी। यह वर्ल्ड कैडेट कुश्ती चैंपियनशिप 19 से 25 जुलाई के बीच हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में होगी।
वहां जाना और देश का परचम लहराने की हसरत न सिर्फ चंचला की है, बल्कि पूरे देश है। जैसे कभी मिल्खा सिंह से हुई थी। चंचला का इस चैंपियनशिप में पहुंचना पूरे आदिवासी समाज के लिए फख्र की बात है, क्योंकि उनके इतिहास और तरक्की के रास्ते हमेशा रोके गए। बीते दिनों तो आदिवासी समाज की बेटी डॉ.पायल तड़वी, जो मेडिकल स्टूडेंट थीं, उनको जातिगत उलाहना के चलते खुदकुशी को मजबूर कर दिया गया था।
खैर, अभी मौका खुशी साझा करने का है, चंचला पर बात करने का है।
चंचला का घर हटवाल गांव में है, जो रांची जिला मुख्यालय से 33 किलोमीटर दूर है। इन दिनों यह बच्ची इतनी मशहूर हो गई है कि घर आने वालों, बधाई देने वालों की भीड़ लग रही है। रिश्तेदार से लेकर राजनेता तक, आते ही जा रहे हैं, मिठाई और तोहफे भी साथ ला रहे हैं।
चंचला का पूरा गांव ही नहीं प्रदेश सरकार भी गर्व से सीना फुलाए है। आदिवासी बहुल राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन चंचला की इस कामयाबी को बड़ी उपलब्धि मानकर हर सुविधा देने का वादा कर चुके हैं।
बीते 21 जून को दिल्ली में ट्रायल ने चंचला की सीट विश्व चैंपियनशिप में पक्की की। इस ट्रायल में खरा उतरने के बाद वे 40 किलोग्राम भार वर्ग के अंडर-15 में भारत की ओर से एकमात्र खिलाड़ी बन गईं।
इससे पहले दो महीने पहले कर्नाटक के बेल्लारी में सब जूनियर नेशनल चैंपियनशिप हुई थी। वहां चंचला को ब्रांज मेडल मिला था। गोल्ड मेडल काजल नाम की बच्ची को मिला था। मेडलिस्ट बच्चों का 21 जून को दिल्ली में मुकाबला हुआ। तब चंचला ने काजल को हराकर बुडापेस्ट के लिए जगह बनाई।
23 जून को जब वह रांची रेलवे स्टेशन पर अपने कोच बबलू कुमार के साथ पहुंचीं और सबसे पहले झारखंड राज्य कुश्ती संघ के अध्यक्ष भोलनाथ सिंह से मिलीं, इसके बाद घर गईं। बैंड-बाजे और फूल बरसाकर पूरे गांव ने स्वागत किया।
चंचला का परिवार मेहनतकश है। पिता नरेंद्रनाथ खेतिहर मजदूर हैं, प्लंबर का भी काम कर लेते हैं। उनके तीन बेटी और एक बेटा हैं, जिसमें चंचला तीसरे नंबर की संतान हैं। एक एकड़ जमीन भी है, जिसमें पति पत्नी खेती करते हैं।
चंचला की मां चैंपियनशिप या पहलवानी के खेल के बारे में खास नहीं जानती, सिवाय इसके लिए कुछ अच्छा काम किया है बेटी ने। इतनी ही उम्मीद करती है कि बेटी के इस काम से परिवार को कुछ सहारा मिलेगा।
हाल ही में परिवार खपरैल से पक्के मकान में पहुंचा है, जिसे नरेंद्रनाथ पाहन ने खेती और मजदूरी बचाकर बनाया। इस घर को बनाने में भी बाहर के मजदूर नहीं लगे, बल्कि मां-बाप और बच्चों ने ईंटें ढोईं और मजदूर के हिस्से का सभी काम किया।
चंचला कहती हैं, जब तक गांव में थी कभी चावल सब्जी तो कभी मांड़ भात खाया करती। अब ट्रेनिंग सेंटर में आई हूं, यहां जरूरी डायट दिया जाता है। मेरे माता-पिता ने बहुत संघर्ष करके हम भाई बहनों को पढ़ाया लिखाया है। मैं उन्हें खुशियां देना चाहती हूं। साक्षी दीदी, फोगाट दीदी की तरह मेडल लाकर तिरंगा लहराना चाहती हूं।
चंचला ने 25 अक्टूबर 2020 से 12 अप्रैल 2021 तक लखनऊ में ट्रेनिंग की। फिलहाल रांची स्थित खेलगांव में इस वक्त वह अपने साथी पहलवान खिलाड़ियों के साथ अभ्यास कर रही हैं। उनकी उपलब्धि से खुश तमाम बालिकाएं ऐसे ही मौके को पाने के लिए अभी से तैयार होने लगी हैं।
चंचला के कोच बबलू कुमार कहते हैं, पूरे झारखंड से यह पहली खिलाड़ी है, लड़का-लड़की दोनों ही वर्ग में, जो इस लेवल पर पहुंची है। मैं इसका कोच हूं, मेरे लिए भी यह गर्व की बात है।