मुहर्रम की पहली तारीख़-ताजा हो गईं यादे कर्बला, जहां हक़-इंसाफ़ के लिए हज़रत इमाम हुसैन ने दे दी थी शहादत

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Karbala Imam Hussain Muharram
हज़रत इमाम हुसैन के रोजे के पास उमड़ा हुसैन के चाहने वालों का हुजूम. Photo Credit : Twitter

द लीडर : इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक आज यानी 31 जुलाई को नया साल है. मतलब मुहर्रम (Muharram) की पहली तारीख़. शनिवार को चांद तो नज़र नहीं आया लेकिन मुहर्रम का एलान हो गया. रविवार से 1444 हिजरी शुरू हो गई है. इस्लामी तारीख़ में मुहर्रम का विशेष स्थान है. इसी माह में पैग़ंबर-ए-इस्लाम (Prophet Muhammad) के नवासे हज़रत इमाम हुसैन अपने 72 जां-निसार साथियों के साथ कर्बला के मैदान में शहीद हुए थे. एक से लेकर 10 मुहर्रम तक मुस्लिम समाज कर्बला (Karbala) की उस जंग को याद करते हुए नबी के नवासों पर बेशुमार मुहब्बत और दुआओं का नज़राना पेश करता है. (Karbala Imam Hussain Muharram)

मुहर्रम में यौमे आशूरा का ख़ास महत्व है, जो इस बार 9 अगस्त को पड़ेगा. मुहर्रम पर मुस्लिम समुदाय के लोग अलग-अलग तरीक़े से हज़रत इमाम हुसैन (Imam Hussain) और उनके साथियों के प्रति अकीदत का इज़हार करते हैं. कुछ सुन्नी मुसलमान ताजियेदारी और नज़्र-ओ-नियाज़ करते हैं. तो कुछ बिना ताजियों के अपनी अकीदत पेश करते. शिया समाज के लोग इस दरमियान मातम मनाते हैं. मुहर्रम की पहली तारीख़ से ही इमामबाड़ों में रंजो-ग़म और मातम का सिलसिला शुरू हो जाता है.

कर्बला ईराक़ में है. यह बग़दाद शहर से कोई 100 किलोमीटर की दूरी पर है. इसी मैदान में कर्बला की जंग हुई थी. आज की तारीख़ में कर्बला की आबादी 7 लाख के आसपास है. मुहर्रम के महीने में भारत समेत दुनिया भर से मुसलमान कर्बला पहुंचते हैं. और हज़रत इमाम हुसैन के साथ कर्बला के उन तमाम शहीदों को ख़िराजे अकीदत पेश करते हैं, जिन्होंने हक़ और इंसानियत की ख़ातिर अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया था. (Karbala Imam Hussain Muharram)


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कर्बला की जंग को ज़ुल्म और इंसाफ़ की लड़ाई के तौर पर भी देखा जाता है. जिसमें एक तरफ़ यजीद की फौज थी तो दूसरी तरफ हुसैनी लश्कर. अंग्रेजी तारीख़ के लिहाज से देखेंगे तो 680 ईसवी को कर्बला में फज्र की नमाज़ के वक़्त यजीदी सैनिकों ने हज़रत इमाम हुसैन के काफिले पर हमला कर दिया था. हालांकि इसे सीधे जंग कहना ठीक नहीं होगा, क्योंकि यह पूरा संघर्ष हक़-इंसाफ़ और ज़ुल्म को लेकर था. नबी के नवासे हज़रत इमाम हुसैन हक़ और इंसाफ़ की तरफ़ खड़े थे, तो यजीदी सेना तानाशाह शासक यजीद के ज़ुल्म के पक्ष में लड़ रही थी.

कर्बला के मैदान में यजीदियों ने हज़रत इमाम हुसैन को शहीद कर दिया था, जब वह नमाज़ के दौरान सिज्दे में थे. इस दौरान उनके सभी 72 साथी भी शहीद कर दिए गए थे. इतिहास में कर्बला का वाक़िया काफी महत्वपूर्ण है. जो इंसाफ़, हक़ और इंसानों पर इंसानों के ज़ुल्म के ख़िलाफ जंग के तौर पर भी याद किया जाता है. (Karbala Imam Hussain Muharram)

दरगाह आला हज़रत के सज्जादानशीन मुफ़्ती मुहम्मद अहसन रज़ा क़ादरी ने कहा कि मुहर्रम इस्लाम के मुबारक महीनों में से एक है. इसके दस दिन तक महफ़िल मिलाद, लंगर जायज़ ही नहीं बल्कि बरकत का काम है. शहीदाने कर्बला को ख़िराजे अकीदत पेश करने लिए रोज़ा रखें, अल्लाह की इबादत करें, ग़रीब, कमज़ोर और ज़रूरतमंदों की मदद की जाए . दरगाह के मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने सज्जादानशीन के हवाले से यह अपील भी की है कि मुहर्रम में पेड़-पौधे लगाएं और छात्रों को किताबें भी उपलब्ध करवा सकते हैं. कौमी एकता और भाईचारे का ख़ास ख़्याल रखें.

दरगाह ताजुश्शरिया के सज्जादानशीन और क़ाजी-ए-हिंदुस्तान मुफ़्ती मुहम्मद असजद रज़ा ख़ान क़ादरी के हवाले से जमात रज़ा-ए-मुस्तफ़ा के मीडिया प्रभारी समरान ख़ान ने कहा है कि, रविवार को मुहर्रम की पहली तारीख़ है. नौ अगस्त को यौमे आशूरा होगा. चूंकि मुहर्रम के चांद की शहादत नहीं मिली थी, अगर शहादत मिलती है तो दोबारा से एलान किया जा सकता है. जमात के उपाध्यक्ष सलमाान हसन ख़ान, महासचिव फ़रमान हसन ख़ान ने इस्लामिक नए साल की मुबारक़बाद दी है. (Karbala Imam Hussain Muharram)


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