द लीडर : भारत के चुनाव आयोग के एक अधिवक्ता मोहित डीराम ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. ये कहते हुए कि उनके आदर्श, आयोग की मौजूदा कामकाज की शैली से मेल नहीं खाते हैं. मैं सुप्रीमकोर्ट के सामने आयोग के अधिवक्ता पैनल की जिम्मेदारियों से खुद को आजाद करता हूं. मोहित डीराम सुप्रीमकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं. और लंबे समय से आयोग का कानूनी कामकाज देख रहे थे.
उनका इस्तीफा ऐसे समय आया है, जब निर्वाचन आयोग अपनी प्रतिष्ठा को बरकरार रखने को जूझ रहा है. हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट ने इलेक्शन कमीशन पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि विधानसभा चुनाव में कोविड-प्रोटेकॉल का पालन नहीं हुआ है. इसके लिए अयोग के अधिकारियों पर हत्या का हत्या का केस चलाया जाना चाहिए.
भारतीय निर्वाचन प्रक्रिया के इतिहास में चुनाव आयोग पर अब तक की ये सबसे सख्त टिप्पणी मानी जा रही है. यही वजह है कि मद्रास हाईकोर्ट की इस मौखिक टिप्पणी को हटाए जाने के लिए आयोग सुप्रीमकोर्ट पहुंचा. लेकिन सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट की टिप्पणी पर दखल से इनकार कर दिया. ये कहते हुए कि हाईकोर्ट और चुनाव आयोग. दोनों संवैधानिक संस्थाएं हैं.
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हाल ही में पांच राज्यों, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु, असम और पुडुचेरी के विधानसभा चुनाव संपन्न हुए हैं. इन चुनावों में राजनैतिक दल आयोग पर लगातार हमलावर रहे. खासतौर से पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस लगातार आयोग की भूमिका पर सवाल उठाती रही. पहले बंगाल में 8 चरणों में चुनाव कराने को लेकर आयोग की आलोचना हुई और मामला कोर्ट तक पहुंचा.
बाद में चुनाव के दौरान हिंसा और बंगाल व असम में मतपेटियां राजनेताओं के वाहनों में पकड़े जाने को लेकर भी आयोग को आलोचना का सामना करना पड़ा था. नंदीग्राम विधानसभा सीट से बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भाजपा के शुभेंदु अधिकारी से हार का सामना करना पड़ा था. इस सीट पर टीएमसी ने मतों की गिनती में भी गड़बड़ी का आरोप लगाया था.
ऐसे माहौल में आयोग के एक अधिवक्ता का अपने पद से इस्तीफा देना और ये कहते हुए कि उनके मूल्य आयोग की कार्यशैली से मेल नहीं खाते हैं. निश्चित रूप से आयोग की साख के लिए गहरा आघात है.
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आज लोग भारत के 10वें चुनाव आयुक्त रहे टीएन शेषन के कार्यकाल को याद कर रहे हैं, जिन्हें भारतीय चुनाव प्रक्रिया में सुधार के नायक के रूप में जाना जाता है. टीएन शेषन के जमाने में राजनैतिक दल चुनाव आयोग के सामने सहमे नजर आते थे. वह पहले ऐसे आयुक्त माने जाते हैं, जिन्होंने आयोग की स्वतंत्र ताकत का भरपूर इस्तेमाल किया था. लेकिन आज आयोग जिस स्थिति में है, उस पर आए दिन बुद्धिजीवियों की चिंताएं सामने आती रहती हैं.