द लीडर डेस्क
अपनी बहुचर्चित, बहु प्रतीक्षित सऊदी अरब यात्रा पर इमरान खान शविवार को रियाद पहुंच गए। दिलचस्प है कि वलीअहद (क्राउन प्रिंस) मोहम्मद बिन सलमान ने चार दिन पहले पाकिस्तान के सेना प्रमुख बाजवा को बुलाया। उनसे अब तक बात हो रही थी इमरान और उनकी कैबिनेट के लोगों को अब बुलाया है। इमरान क्या लेने गए हैं क्या देकर आएंगे ये अटकलों का विषय है। जिस तरह से इस दौरे की भूमिका बनाई गई है उस लिहाज से महज दो देशों के बीच की बात नहीं, दुनिया की सियासत के लिए भी अहम है और इसका असर कुछ तो भारत पर भी पड़ेगा।
सबसे खास बात ये तैर रही है कि अमेरिका की इच्छा पर सऊदी इस बार पाकिस्तान से इजराइल के लिए समर्थन मांग रहा है। यूएई, जॉर्डन समेत कई मुसलिम मुल्क पहले ऐसा कर चुके और तब भी सऊदी का किरदार अहम था। अब पाकिस्तान की बारी है। चूंकि पाकिस्तान में सेना सियासत पर भारी है, इसलिये पहले बाजवा से लंबी बात की गई। यह मसला टल भी गया तो भी अफ़ग़ानिस्तान, तुर्की आदि की सामरिक स्थितियों की वजह से इस खित्ते में पाकिस्तान की आगे की भूमिका के लिहाज से भी ये दौरा बहुत अहम है।
बहरहाल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान शुक्रवार को दो दिन के दौरे पर सऊदी पहुंचे। इमरान सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस से मुलाकात करेंगे और द्विपक्षीय रिश्ते को मजबूत बनाने की कोशिश करेंगे। प्रतिनिधिमंडल में विदेश मंत्री और कैबिनेट के अन्य सदस्य शामिल हैं।
क्यों नाराज है सऊदी
पाक ने जबसे तुर्की और इरान के साथ मिलकर नया खेमा बनाने की कोशिश की है, तब से सऊदी नाराज है। सऊदी ने पाकिस्तान को 2018 में तीन अरब डॉलर का कर्ज और 3.2 अरब डॉलर ऑयल क्रेडिट दिया था। कश्मीर मसले पर जब पाक ने रियाद से समर्थन मांगा तो सऊदी ने कर्ज लौटाने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया था। पाकिस्तान के सऊदी के साथ रिश्तों में 2015 में भी तब तनाव आ गया था जब पाकिस्तान ने यमन में सऊदी जंग के लिए सैनिक भेजने से मना कर दिया था।
अमेरिका भी खुश नहीं
पाकिस्तान से दूरी बना कर चलने की अमेरिका की नीति अभी भी जारी है। डोनाल्ड ट्रंप के ह्वाइट हाउस से विदा होने के बाद पाकिस्तान ने अमेरिका से अपने संबंधों को नया रूप मिलने की जो उम्मीद जोड़ी थी, वह अब टूटने लगी है। अफगानिस्तान की शांति वार्ता में पाकिस्तान का अहम रोल है, इसके बावजूद अमेरिका ने पाकिस्तान के प्रति कोई नरमी नहीं दिखाई है। बाइडन के राष्ट्रपति बने साढ़े तीन महीने हो गए हैं, लेकिन अभी तक उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से सीधी बातचीत नहीं की है। बाइडन प्रशासन का ये आकलन है कि अफगानिस्तान में पाकिस्तान चीन और रूस के एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है।
पिछले महीने जलवायु परिवर्तन मुद्दे पर अमेरिकी राष्ट्रपति के दूत जॉन केरी ने भारत और बांग्लादेश की यात्रा की, लेकिन वे इस्लामाबाद नहीं गए। इसी तरह अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने मार्च में भारत और अफगानिस्तान की यात्रा की, लेकिन वे भी पाकिस्तान नहीं गए। हांगकांग की वेबसाइट एशिया टाइम्स के मुताबिक पाकिस्तान सरकार के वरिष्ठ अधिकारी निजी बातचीत में यह मानते हैं कि बाइडन प्रशासन सोचे-समझे ढंग से पाकिस्तान की उपेक्षा कर रहा है।
अमेरिकी पत्रकार डैनियल पर्ल की हत्या के दोषी अहमद उमर सईद शेख और उसके तीन साथियों को हाल में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने रिहा कर दिया। इससे भी अमेरिकी प्रशासन खफा हुआ है। पर्ल की हत्या 2002 में हुई थी। जब पाकिस्तान के शहर एबटाबाद में अल-कायदा का प्रमुख ओसामा बिन लादेन मारा गया था तब से अमेरिका का पाकिस्तान के प्रति नज़रिया ही बदल गया। ओसामा की हत्या अमेरिकी सेना ने एक गुप्त कार्रवाई में की थी।
कई समझौते संभव
दोनों देशों के नेता आर्थिक, व्यापार, निवेश, ऊर्जा, पाकिस्तानी कामगारों के लिए नौकरी, वहां पर रह रहे पाकिस्तानी प्रवासियों के कल्याण समेत द्विपक्षीय सहयोग के सभी क्षेत्रों पर बात करेंगे। कई समझौतों पर दस्तख्त किए जाने की उम्मीद है।
इमरान इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) के महासचिव यूसुफ अल ओसैमीन, वर्ल्ड मुस्लीम लीग के महासचिव मोहम्मद बिन अब्दुल करीम अल ईसा और मक्का औरी मदीना की दो पवित्र मस्जिदों के इमामों से मुलाकात करेंगे।
इजरायल पर ईरान की कड़ी टिप्पणी
इस दौरे से पहले ईरान के शीर्ष नेता अयातुल्लाह खामनेई ने इजरायल को लेकर कड़ी टिप्पणी की है। खामनेई ने शुक्रवार को इजरायल एक देश नहीं है बल्कि आतंकी ठिकाना है। फलीस्तीन के समर्थन में मनाए जाने वाले कुद्स दिवस (येरुशलम डे) के मौके पर खामनेई ने कहा, ‘इजरायल एक देश नहीं है बल्कि फलीस्तीन और अन्य मुस्लिम देशों के खिलाफ एक आतंकी ठिकाना है।’ यही नहीं खामनेई ने इजरायल के खिलाफ मुस्लिम देशों से एकजुट होने की भी अपील की है। खामनेई ने कहा, ‘ऐसे निरंकुश देश के खिलाफ लड़ना आतंकवाद और अन्याय से जंग जैसा है। इजरायल से लड़ना हम सभी का कर्तव्य है।’यूएई समेत कई मुस्लिम देशों के साथ इजरायल के संबंध सामान्य होने को लेकर उन्होंने कहा कि इजरायल ने मुस्लिम देशों की एकता में सेंध लगाने के लिए ऐसा किया है।