शंकराचार्य परिषद ने कहा- अखाड़ों के संत नेताओं की चाटुकारिता छोड़ें

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कुम्भ समाप्त करना था तो फिर शंकराचार्य को क्यों नहीं पूछा?

द लीडर हरिद्वार।

कुंभ समापन कराए जाने के निर्णय को लेकर साधु संतों में नई बहस छिड़ गई है। प्रधानमंत्री के एक महामंडलेश्वर से बात करने पर उनकी घोषणा का अब शंकराचार्य परिषद ने उपहास उड़ाया है ,साथ ही सवाल उठाया है कि संत परम्परा में महामंडेश्वर बड़ा है या शंकराचार्य?
शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष स्वामी आनंद स्वरूप के मुताबिक अखाड़ों ने राजनैतिक दबाव में ही कुंभ के विसर्जन की घोषणा की है । संतो को राजनीतिक चाटुकारिता न करने की सलाह देते हुए उन्होंने बताया कि इस दौरान कुंभ में देवताओं को प्रतीकात्मक स्नान कराया जा सकता था मगर सही लोगों से बात होनी चाहिए थी। शंकराचार्य सबसे बड़े धर्मगुरु और ज्ञानी होते हैं उन्हें नहीं पूछा गया। कुम्भ कराने की जिम्मेदारी अखाड़ा परिषद की है।अवधेशानंद एक अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर से हैं प्रधानमंत्री के बात की तो अति उत्साह में आ गए और घोषणा कर दी।राजनैतिक तत्वों को खुश करने के लिए अखाड़ों ने कुंभ के विसर्जन का निर्णय ले लिया।
मेला प्रशासन पर भी सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि अधिकारी भी धार्मिक परंपरा से हट कर उन लोगों के यहाँ हाज़िरी दे रहे हैं जो सत्ता के करीब हैं।
प्रधानमंत्री की इच्छा पर उन्होंने कहा कि कुम्भ एक प्राकृतिक घटना है।सूर्य ग्रहण और चंद्रग्रहण भी प्रधानमंत्री की इच्छा से नहीं होते। जो अखाड़े चौथा स्नान नहीं करते उन्हें यह कहना चाहिए था कि यह हमारी परंपरा नहीं है। उन्हें कुम्भ समाप्ति की घोषणा का अधिकार नहीं है।
दरअसल देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील के बाद नागा बाबाओं के सबसे बड़े श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा ने हाल ही में देर किए बिना विसर्जन की घोषणा कर दी थी वही जूना अखाड़ा के सहयोगी अग्नि अखाड़ा, आह्वान और किन्नर अखाड़ा भी इनके समर्थन में आ चुका है जिसके बाद पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी और श्री तपो निधि आनंद अखाड़े द्वारा शनिवार को महाकुंभ का विसर्जन कर दिया गया। इसका विरोध तब देखने को मिला जब कुछ अखाड़ों पर आसीन सन्यासी पदाधिकारियों द्वारा इसका खुलकर विरोध किया जाने लगा इतना ही नहीं विरोध करने वाले संतो द्वारा कुंभ विसर्जन करने वाले संतों को शून्य तत्व घोषित कर उन्हें और उनके इस निर्णय को दरकिनार किया जा रहा है ।

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