दुर्गा प्रसाद
नए कृषि कानूनों पर दिल्ली को बीस दिन से घेरे किसानों के निशाने पर विद्युत संशोधन विधेयक-2020 भी है। इसका विरोध बिजली कर्मचारियों के संगठन पहले ही कर रहे हैं। दिलचस्प बात ये है कि जैसे सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी रहने की बात कर रही है, ठीक वैसे ही केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने कहा है कि ‘विद्युत सब्सिडी पूर्व की भांति लागू रहेगी’।
ऊर्जा मंत्री का दावा या वादा जो भी हो, सच्चाई यही है कि फिलहाल तक औद्योगिक व वाणिज्यिक उपभोक्ताओं से अधिक दरों (क्रॉस सब्सिडी) पर विद्युत मूल्य वसूली कर सब्सिडी की भरपाई की जा रही है।
विद्युत कानून-1948 देश के समग्र विकास को ध्यान में रखकर बनाया गया था, जिसमें विद्युत विभाग को सरकारों द्वारा 3% लाभ सुनिश्चित करने का प्रावधान भी किया गया था। सरकारों द्वारा अपना दायित्व निर्वहन न करने के कारण आज विद्युत विभाग हजारों करोड़ के घाटे में चला गया है।
1991 से शुरू किये गये आर्थिक सुधारों के क्रम में विद्युत संशोधन कानून-2003 लागू होने के बाद इस घाटे में बेहद तेजी से वृद्धि हुई है। असल में 2003 की ही नीतियों का नया संस्करण विद्युत संशोधन विधेयक-2020 है। इसके लागू होने का किस पर असर होगा?
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अभी तक रिपोर्टों के आधार पर गणना करने से अनुमान है कि विद्युत संशोधन विधेयक-2020 पारित होने पर बिजली की कीमत 10 रुपए प्रति यूनिट हो जाएगी। अगर ऐसा होता है तो 10 एचपी (हॉर्स पॉवर) निजी नलकूप का 10 घंटे रोजाना उपयोग करने पर 24 हजार रुपए प्रति माह बिल भरना होगा। अब तक ये बिल 1700 रुपए आता है।
इसी तरह आम उपभोक्ताओं को भी जेब ज्यादा ढीली करना होगी। अभी तक 1 किलोवाट के उपभोक्ता का 100 यूनिट बिजली खर्च लगभग 367 रुपए मासिक है, जो लगभग 1100 रुपए हो जाएगा। वहीं आम शहरी उपभोक्ता के 2 किलोवाट कनेक्शन पर 250 यूनिट बिजली खर्च पर मासिक बिल 1726 रुपए के स्थान पर 2856 रुपए हो जाएगा।
विद्युत उत्पादन क्षेत्र में निजीकरण का ही परिणाम है कि बिजली के लागत मूल्य में गुणात्मक वृद्धि हुई है। साथ ही उच्च दरों पर बिजली बेचने के बावजूद निजी विद्युत उत्पादक बैंकों से लिए ऋण भी वापस नहीं कर रहे हैं। ब्याज देना तो दूर, उनका लाखों करोड़ रुपए मूलधन भी बट्टेखाते में डाल दिया गया है।
सरकार किसानों को डीबीटी के माध्यम से सब्सिडी का भुगतान कर भी दे तो भी किसानों को पहले बिजली बिल का भुगतान करना होगा, नहीं तो कनेक्शन काट दिया जाएगा। फसल बुवाई से पकने तक किसानों को बीज, खाद, सिंचाई, कीटनाशक इत्यादि में काफी पैसा लगाना होता है, ऐसे में ये बड़ी समस्या बन सकती है।
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एक्सपर्ट्स की रिपोर्ट के अनुसार क्रॉस सब्सिडी समाप्त होने से राज्यों पर भी एक लाख करोड़ प्रति वर्ष से अधिक का भार पड़ेगा जिसे पूरा करना राज्यों के लिये भी दुरूह कार्य हो जाएगा। कुछ का ये भी आरोप है कि विद्युत सुधार कानून वर्ल्ड बैंक व एशियन डेवलपमेंट बैंक के दबाव में निजी निवेशकों के हित में बनाए व लागू किए जा रहे हैं।
आंदोलनकारी किसानों का आरोप है कि कृषि नलकूपों पर बिजली के मीटर लग रहे हैं, जिसको लेकर सिंचाई व्यवस्था संकट में आएगी और इसके साथ ही कृषि उत्पादन से किसानों को हाथ धोना पड़ सकता है।
(लेखक यूपीपीसीएल में अधिशासी अभियंता पद से रिटायर हैं, वर्कर्स फ्रंट के उपाध्यक्ष हैं)