इजरायल के फिलिस्तीन में इस कदर वहशी होने की वजह क्या है?

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फिलीस्तीनियों के ऊपर इजरायल के बर्बर हमलों में आम नागरिकों और बच्चों की नृशंस हत्याएं दिखा रही हैं कि इजरायल के शासक कितने क्रूर और बहशी हैं। गाजा पट्टी पर इजरायली बमबारी से भयानक तबाही फैली हुई है। आम फिलीस्तीनी न घर के भीतर रह सकते हैं और न बाहर जा सकते हैं।

नेतन्याहू अपने देश की सुरक्षा के नाम पर बमबारी की धमकी दे रहे हैं। अमेरिकी साम्राज्यवादी नेतन्याहू के साथ खड़े हैं। वे नेतन्याहू के बर्बर हमलों का समर्थन कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य संस्थाएं नपुंसक निन्दा तक अपने को सीमित रखे हुए हैं।

इजरायल के शासकों की शह पर पलने वाले घोर नस्लवादी फासिस्ट यहूदी गिरोहों ने जानबूझ कर रमजान के महीने में अरबों के खिलाफ हमले संगठित किए। ये हमले ऐसे समय में संगठित किये गये जब इजरायल घोर राजनैतिक संकट के दौर से गुजर रहा है। दो वर्ष में चार आम चुनाव के बाद भी वहां एक स्थिर सरकार का गठन नहीं हो सका है। पिछले दिनों इजरायली संसद में इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू बहुमत साबित करने में नाकामयाब हो चुके हैं।

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राजनैतिक रूप से नाकामयाबी ने नेतन्याहू को घोर अंधराष्ट्रवादी यहूदीवाद की ओर धकेला है। अपनी सत्ता को बनाये रखने के लिए नेतन्याहू और घोर दक्षिणपंथी गुट ने जानबूझकर येरूशलम में हिंसा का तांडव रचा और इजरायल में रह रहे अरबी और फिलिस्तीन के लोगों को उकसाया। रमजान के पवित्र महीने में अल अक्सा मस्जिद में नमाज अदा करने से रोकने में फासिस्ट यहूदी गिरोहों के अलावा इजरायल के सैन्य बलों का विशेष हाथ था।

इजरायल के धूर्त और क्रूर शासक अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए दशकों से यही तरीका अपनाते रहे हैं कि फिलिस्तीनियों पर और इजरायल में बसे अरब लोगों के खिलाफ हिंसा को अंजाम देते रहें। घोर अंधराष्ट्रवाद और यहूदीवाद के जरिए अपने घृणित शासन को बनाए रखें। जो कोई भी बेंजामिन नेतन्याहू जैसे भ्रष्ट शासकों के खिलाफ मुंह खोले उसे अंधराष्ट्रवाद और युद्धोन्माद के जरिए चुप करा दिया जाए।

नेतन्याहू पर वर्षों से भ्रष्टाचार के मुकदमे चल रहे हैं लेकिन वह सत्ता पर अपनी पकड़ के चलते अपने आपको आज तक बचाने में कामयाब रहे। इजरायल घोर राजनैतिक संकट के साथ आर्थिक संकट के दौर से भी गुजर रहा है। बेरोजगारी महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ आए दिन इजरायली मेहनतकश सड़कों पर उतरते रहे हैं।

इजरायल के बर्बर हमलों के खिलाफ गाजा पट्टी से हमास के राकेट और मिसाइली हमलों के जवाबी हमले भी जारी हैं। हमास के इन हमलों से इजरायल के सीमावर्ती इलाकों में दहशत का माहौल कायम हो गया है। इन हमलों की तीव्रता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इजरायल को अपने सीमावर्ती शहर लॉड में आपातकाल लगाना पड़ा है।

1967 के बाद से यह पहली दफा है कि इजरायल को किसी शहर में आपातकाल लगाना पड़ा है। फिलिस्तीनियों के मुकाबले इजरायल को जान-माल का नुकसान कम हुआ है। हमास के हमलों में 7 इजरायली मारे गये हैं और घायलों की संख्या दर्जनों में है।

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हमास यद्यपि इजरायली सैन्य ताकत के सामने नहीं टिकता है परंतु इतनी ताकत अवश्य रखता है कि इजरायल के भीतर कम से कम दस से बीस किलोमीटर तक कहर बरपा सके। हमास को ईरान सहित कई अन्य देशों से राकेट-मिसाइल की तकनीक व संसाधन खुले-छिपे तौर पर मिलते रहे हैं।

इजरायली सेना गाजा पट्टी पर भीषण हवाई हमलों के साथ जमीनी हमले की तैयारी कर रही हैं। 2014 में इजरायली सेना ने गाजा पट्टी पर जमीनी हमला करके करीब 2300 फिलिस्तीनी लोगों को मार डाला था, जिनमें से आधे से अधिक आम निर्दोष नागरिक थे। इजरायल को भी ठीक-ठाक नुकसान उठाना पड़ा था। 2014 के युद्ध में उसके करीब 74 लोग मारे गए थे, जिनमें से 67 सैनिक थे।

इजरायल के साथ वर्षों से संबंध रखने वाला देश तुर्की इस वक्त फिलीस्तीनियों का नया रहनुमा बनने की कोशिश कर रहा है। तुर्की के तानाशाह राष्ट्रपति एर्दोगन का यह पैंतरा अपनी घोर इस्लामिक छवि को चमकाने और आंतरिक राजनीति में गिरते प्रभाव को बचाने की कवायद है।

यही हाल सऊदी अरब सरीखे देशों का है। पाकिस्तान भी इसी कतार में खड़ा है। जबकि भारत की पिछले सात साल में फिलिस्तीनी जनता के साथ एकता की जगह इजरायल से नजदीकियां जगजाहिर हैं।

(मूल रूप से पाक्षिक समाचार पत्र ‘नागरिक अधिकारों को समर्पित’ के ताजा अंक में प्रकाशित लेख का संपादित अंश)

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