Uttarakhand politics—- दिल्ली क्या लेने गए हैं त्रिवेंद्र! अपना ताज या ताज का वादा!

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द लीडर देहरादून।

ये उत्तराखंड है देवभूमि। यहां पहले राजा होते थे और उन्हें बोलन्दा बद्री ( ऐसे भगवान जो बोलते भी हैं) कहा जाता था। टिहरी नरेश के वंशजों तक में लोग उस बद्री को ढूंढते हैं लेकिन वो तो कभी लोप हो चुका। श्रीदेव सुमन की शहादत और तिलाड़ी कांड जैसे इतिहास के पन्नों में वो राजा कहीं नहीं है। अब तो ये देवभूमि भारतीय लोकतंत्र का हिस्सा है और यहां के सिंघासन पर विराजने वाले मुख्यमंत्री तक दिल्ली जाकर वहां के राजा को बोलन्दा बद्री मानकर पूज आते हैं। जिन्हें कुछ चाहिए वो भी मनौती लेकर दिल्ली जाते हैं।

इस विशेष राज्य के मुख्यमंत्री अभी तीन दिन की दिल्ली परिक्रमा कर लौटे हैं। करोड़ों की योजनाएं लाये हैं। दिल्ली के शाह वहां बुला कर अपने घोड़ों को नई चालें सिखाते हैं,नए चरागाहों पर जाने का इशारा करते हैं,जो जिस भाव से है उसे उसी किस्म के मंत्र मिलते हैं। प्रसाद मिलता है। देहरादून की बड़ी कुर्सी भी दिल्ली के बद्री की कृपा से मिलती है इसलिए श्रद्धाभाव बना रहता है। 21 साल में यहां ऐसे ही क्षत्रप स्थापित किये गए। अब अगर कोई दिल्ली के शाह के मंदिर और राम कृष्ण की तरह उनके पूजे जाने की बात करता है तो इस बात को इस इतिहास से जोड़ कर सहजता से स्वीकारा जाना चाहिए। अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान वाली कहावत तो सुनी होगी।
अब इस दिव्य ज्ञान को पृष्ठभूमि में लादकर यहां का आज का जमीनी सच देखते हैं। हाल ही में दिल्ली गए या बुलाये गए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह की तीर्थ यात्रा पर गौर करें। परिक्रमा पथ में अमित शाह , जे पी नड्डा और कुछ मंत्रियों के दरबार पड़े फिर प्रधानमंत्री के श्री चरणों तक पहुंच कर यात्रा पूरी हुई। समझा दिया होगा कि उपचुनाव लड़ना है या नहीं लड़ना है। अगले साल शुरू होते ही चुनाव हैं। इशारा तो कर ही दिया होगा कि आपका चेहरा दिल्ली से कैसे दिख रहा है। श्रद्धावनत तीरथ को अगर कहा गया होगा कि इस चेहरे के भरोसे ना हो पायेगा तो वे इतने गौ टाइप हैं कि सर झुका कर जी सर ! कह दिया होगा। सब योगी आदित्यनाथ नहीं होते। हो सकता है चेहरे के लिए कोई खास पालिश सुझाई हो। या फिर ऐसा कुछ न कह कर सिर्फ कुछ मंत्रियों द्वारा की गई उनकी रेटिंग उन्हें दिखा दी हो। ये यहां की परंपरा है कि मुख्यमंत्री को मंत्री नंबर देते हैं। बाकी ऑब्ज़र्वर भी अपनी रिपोर्ट बनाते ही हैं। आते ही मुख्यमंत्री ने एक मीटिंग की कुछ फैसले हो गए। योजनाओं और कार्यदायी संस्थाओं के बारे में जैसा निर्देश मिला होगा किया जाएगा। जब 100 में से 90 टका दिल्ली का लगना है तो डिटेल्स तय करने का हक़ भी उसका ही बनता है।
अब दूसरे टीएसआर यानी त्रिवेंद्र दिल्ली परिक्रमा पर निकले हैं। पहले पड़ाव की तस्वीर उन्होंने कल ही नड्डा जी के दरबार से भेज दी थी। तमाम खास लोगों से समय मांगा है। जाते हुए कहा कर गए हैं कि अगला चुनाव उनके चार साल के कामों पर ही लड़ा जाएगा। बड़े कॉन्फिडेंस से गये हैं और पहली तस्वीर जो भेजी उसमें भी गज़ब का आत्म विश्वास झलक रहा है। जब अचानक मुख्यमंत्री की गद्दी से उतारे गए थे तो नए साहब द्वारा दिल्ली की इच्छानुसार थोड़ा धकियाये भी गए। उनके फैसले बदलने की घोषणाओं की झड़ी सी लगी। फिर जाने क्या हुआ कि फैसले बदलने वाली घोषणाएं लटक गई। त्रिवेंद्र अपने स्तर से जनसेवा करने लगे। ब्लड डोनेशन कैम्प जैसे उनके आयोजन उनके ही थे। लोगों की मदद करते दिखे। बीच में भावुक होकर खुद को अभिमन्यु और अपने दिल्ली के सरदारों को कौरव तक कह गए लेकिन फिर संभल कर बोलने लगे। यह साबित करके दिखाया कि नए पात्र के मुकाबले कम फम्बलिंग करते हैं। वैसे फम्बलिंग तो बड़े बड़ो से हो जाती है। इतिहास और विज्ञान के मामले में उनसे भी बड़े ज्ञानी रोज प्रवचन करते हैं।
बहरहाल यहां लोग ये जानने को बेचैन हैं कि पुराने मुख्यमंत्री दिल्ली के बद्री से क्या मांगने गए हैं? क्या कुछ महीने के राज से नए वाले तृप्त हो चुके या फिर चैलेंज लेने को तैयार हैं। वो चुनाव लड़ेंगे क्या? मतलब चुनाव तक बने रहेंगे? या फिर कहेंगे – ये ले अपनी लकुटि कमरिया… क्या त्रिवेंद्र अपनी कुर्सी वापस मांग कर लौटेंगे। जिस तरह विधानसभा सत्र के बीच मंत्रियों को एयरलिफ्ट कर दिल्ली ने उनकी हनक झटके से उतार दी थी वैसे ही फिर कुछ झटके से होने वाला है क्या? या फिर त्रिवेंद्र आने वाले चुनाव के लिए भावी मुख्यमंत्री का चेहरा बन कर लौटेंगे ! अब तीरथ ने तीन दिन लगाए तो त्रिवेंद्र भी कुछ समय तो पूजा में लगाएंगे ही। वैसे भी उनके लिए अब तक कोई भूमिका तय नहीं की गई है। उनके अनुज मदन कौशिक को तो तुरंत ही पार्टी सौंप दी गई थी। अभी तक ये राज भी नहीं खुला कि त्रिवेंद्र भाई की असली खता कौन सी मानी गई। वैसे खता करने का नाम ही सियासत है और माफ करना भी सियासत ही है। बहरहाल इस बार दून वाले त्रिवेंद्र की वापसी का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं। कुछ कथित मीडिया वाले तो अपने पोर्टल पर उनकी छवि निखारने में जुट गए हैं। पता नहीं माजरा क्या है।

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