अमेरिका के जॉर्ज फ्लॉयड और इंदौर के बब्लू को मास्क न लगाने पर पीटती पुलिस-दोनों घटनाओं में आपने क्या समानता देखी

0
358
George Floyd United States Police Beating Indore Babloo
सोशल मीडिया पर वायरल फोटो में एक अमेरिका की है और दूसरी इंदौर घटना की.

अतीक खान


मध्यप्रदेश में मास्क न पहनने पर बब्बलू की पिटाई पर केवल एक पुलिसकर्मी को निलंबित कियाा जाना भर काफी नहीं है .सरकार को दोनों पुलिसवालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए. जिससे भविष्य में इस तरह की अमानवीय घटनाएं न हों.

 

अमेरिका के जॉर्ज फ्लॉयड याद हैं न. वही अश्वेत अमेरिकी नागरिक, जिन्हें पिछले साल 25 मई को मिनिपोलिस शहर में डैरेक चौविन नामक पुलिस अफसर ने अपने घुटनें से दबाकर मार डाला था. इस घटना के खिलाफ अमेरिकी जनता सड़कों पर आ गई. और पुलिस के आला अफसरों को घुटनों के बल आकर माफी मांगनी पड़ी थी. घटना के वक्त ट्रंप सरकार थी. पिछले ही साल जब, जो बाइडन राष्ट्रपति बने. तब उन्होंने जॉर्ज के बेटे के सामने घुटनों पर झुककर सॉरी बोला था. (George Floyd United States Police Beating Indore)

इस केस का राजीनामा करने के लिए मिनिपोलिस ने जॉर्ज फ्लॉयड के परिवार को कितनी रकम की पेशकश की है, जानते हैं. 27 मिलियन डॉलर. जॉर्ज के परिवार ने पुलिस कस्टडी में हत्या को आधार बनाकर केस दायर कर रखा है. जाहिर है कि उनका पक्ष मजबूत है, इसलिए सुलह में मोटी रकम का ऑफर मिला है.


यूपी : एनएसए के गलत इस्तेमाल का हवाला देकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 120 में से 94 आदेशों को रद किया


 

हमारे यहां तो हर दूसरे-तीसरे दिन पुलिस हिरासत में हत्या के आरोप सामने आते रहते हैं. पिछले 26 मार्च की ही घटना है. आजमगढ़ के अकबरपुर में जियाउद्​दीन की पुलिस हिरासत में मौत हो गई. परिवार ने हत्या का आरोप लगाया. इसमें आठ पुलिसकर्मियों पर हत्या के आरोप में मामला दर्ज किया गया और विस्तृत जांच जारी है.

अब मध्यप्रदेश में 6 अप्रैल की घटना ले लीजिए. इंदौर के दो जांबाज पुलिस वालों ने बब्लू उर्फ कृष्णा को जमीन पर पटककर किस कदर बेरहमी से पीटा. सिर्फ इस बात पर कि बब्लू मास्क नहीं लगाए थे. भला हो, उन औरतों का, जो आगे आईं. और पुलिस को पिटाई से रोका. ये सब वीडियो में रिकॉर्ड होता रहा. बाद में जब ये वीडियो वायरल हुआ.

और पुलिस की थू-थू हुई. तब आनन-फानन में थाना परदेशीपुरा के पुलिसकर्मी महेश प्रजापति को निलंबित किया गया. पुलिस अधीक्षक आशुतोष बागरी के पत्र के मुताबिक निलंबन एक ही पुलिसवाले का हुआ है. जबकि वीडियो में दो पुलिसकर्मी पिटाई करते देखे जा सकते हैं. दूसरे को क्यों नहीं निलंबित किया गया. ये प्रश्न तो बना ही है.


तस्लीमा नसरीन को समझना चाहिए कि मोईन अली जैसे मुस्लिम खिलाड़ियों ने अपने हुनर और किरदार से दुनिया का दिल जीता


 

एक बात और, अगर आपने जॉर्ज और बब्लू दोनों की पिटाई के वीडियो देखें हों, तो एक समानता नजर आएगी. जैसे अमेरिकी पुलिस अफसर डैरेक चौविन ने जॉर्ज की गर्दन को घुटनेें से दबाया था. इंदौर का पुलिसकर्मी भी बब्लू को की गर्दन को घुटने से दबाने की कोशिश करता साफ नजर आता है. ये अलग बात ये कि सफल नहीं हो पाता.

डैरेक चैविन हो या महेश प्रजापति और उनके दूसरे साथी. असल दिक्कत मानसिकता है. डैरेक को काले चमड़ी वाले जॉर्ज से घृणा थीं तो महेश प्रजापति को बब्लू की गरीबी से. दोनों घटनाओं में एक समानता ये भी नजर आती है.

इंदौर भारत का सबसे स्वच्छ शहर है. पिछले तीन सालों से स्वच्छता रैंकिंग में उसका पहला स्थान आता है. लेकिन पिछले कुछ दिनों से वो कुछ अमानवीय घटनाओं के कारण चर्चा में है. पिछले साल इसी शहर में बेसहारा बुुजुर्गों को कूड़ा गाड़ी में भरकर शहर से बाहर फेंके जाने का एक वीडियो वायरल हुआ था.


स्मार्ट सिटी इंदौर से मानवता की सबसे गंदी तस्वीर, बेसहारा बुजुर्गों को डंपर में भरकर शहर से बाहर फेंकने भेजा


 

ऐसी घटनाएं हमारी चेतना को झकझोर रही हैं. इस पर संदेह है. नहीं तो घटनाओं की पुनरावृत्ति क्यों हो रही है. हर एक घटना का शोर थमते ही दूसरा हादसा सामने आ जाता है. हमारा विरोध सोशल मीडिया पर ट्रेंड तक सीमित रहता. शायद इसीलिए शासन-प्रशासन को जवाबदेय बनाने में नाकाम हैं.

आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं. इसमें नागरिक अधिकार और कर्तव्यों की पाठशाला, साक्षरता मिशन चलाए जाने की जरूरत नजर आती है. वो इसलिए लोकतंत्र के इतने लंबे सफर के बावजूद हम अपने लोकतांत्रिक मूल्यों, अधिकारों को नहीं जान पाए हैं.

हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस ने यूपी में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA)के तहत कार्रवाई पर एक अध्ययन रिपोर्ट प्रकाशित की है. रिपोर्ट बताती है कि साल 2018 से 2020 तक इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 120 में से एनएसए के 90 आदेशों को रद किया है.


अंग्रेजी हुकूमत के किन कानूनों के खिलाफ भगत सिंह ने संसद में फेंका था बम, पढ़िए उनका ये पर्चा


 

ये रिपोर्ट जिलाधिकारियों के काम करने के तरीकों को सामाने लाती है. मतलब जिले का सबसे ताकतवर अफसर भी अपने विवेक से कामा नहीं कर रहा है. रिपोर्ट ये समझाती है. इस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट उन मजिस्ट्रेटों के आदेशों को रद करके जनता में नागरिक अधिकारों की ताकत का हौसला भरती है.

ये हमारी समझ पर निर्भर है कि हम इसे किस रूप में देख रहे हैं. ये क‍िसी की हार या जीत का मसला नहीं है, बल्‍क‍ि लोकतंत्र में उसके नागर‍िकों को म‍िले अध‍िकारों की रक्षा का व‍िषय है. हमारी अदालतों ने पहले भी कई ऐसे ऐति‍हास‍िक फैसले द‍िए हैं, इसके बावजूद हम न अपने कर्तव्य जान पाए, न अधिकार.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here