द लीडर हिंदी, नई दिल्ली । CGST के रिफंड के मामले को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि CGST कानून और नियमों के तहत इस्तेमाल नहीं किए गए इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) के रिफंड के मामले में वस्तुओं और सेवाओं को समान नहीं माना जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि ‘रिफंड’ मांगना कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है बल्कि यह विधि के तहत संचालित है। शीर्ष अदालत ने केंद्रीय माल एवं सेवा कर (CGST) कानून की धारा 54 (3) की वैधता को बरकरार रखा। यह धारा उपयोग में नहीं आये आईटीसी की वापसी से जुड़ी है। जानकारों का कहना है कि इससे रिफंड के मुद्दे सुलझाने में मदद मिलेगी।
फैसले में क्या कहा गया ?
फैसले में कहा गया है, ‘‘जब रिफंड के लिये न कोई संवैधानिक गारंटी है और न ही कानून में इसका अधिकार हो, ऐसे में यह दलील स्वीकार नहीं की जा सकती कि बिना उपयोग वाले आईटीसी की वापसी के मामले में वस्तुओं और सेवाओं को समान रूप से माना जाना चाहिए।’’
इस संदर्भ में पूर्व के फैसलों का जिक्र करते हुए न्यायालय ने कहा कि कराधान के क्षेत्र में शीर्ष अदालत ने फार्मूले की व्याख्या के लिये तभी हस्तक्षेप किया है, जब उसका विश्लेषण सहीं नहीं जान पड़ता है या अव्यवहारिक है।’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘हालांकि वर्तमान मामले में, फार्मूला अस्पष्ट प्रकृति या अव्यवहारिक नहीं है और न ही यह बिना उपयोग वाले आईटीसी के संचय पर सीमित धनवापसी देने के विधायिका के इरादे का विरोध करता है।
हालांकि, शीर्ष अदालत ने इस दलील को स्वीकार किया कि फार्मूले में व्यावहारिक प्रभाव के परिणामस्वरूप कुछ विसंगतियां हो सकती हैं।
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जीएसटी अधिनियम और रिफंड पर नियम
सीजीएसटी एक्ट की धारा 54 में टैक्स रिफंड का प्रावधान है। उप-धारा (3) में शामिल मामलों में अप्रयुक्त इनपुट टैक्स क्रेडिट की वापसी का प्रावधान है: (i) कर के भुगतान के बिना शून्य रेटेड आपूर्ति; और (ii) “उत्पादन आपूर्ति पर कर की दर से अधिक इनपुट पर कर की दर के कारण” क्रेडिट संचय।
नियम 89(5) “इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर के कारण रिफंड के मामले में” इनपुट टैक्स क्रेडिट की वापसी के लिए एक फॉर्मूला प्रदान करता है। इस नियम के स्पष्टीकरण (ए) में प्रावधान है कि कुल आईटीसी का मतलब इनपुट टैक्स क्रेडिट के अलावा प्रासंगिक अवधि के दौरान इनपुट पर लिया गया इनपुट टैक्स क्रेडिट होगा, जिसके लिए उपनियम 4 (ए) या (4 बी) या दोनों के तहत रिफंड का दावा किया गया है।
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याचिकाकर्ताओं का तर्क
उच्च न्यायालयों के समक्ष याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि धारा 54(3) इनपुट के साथ-साथ इनपुट सेवाओं में उत्पन्न आईटीसी की वापसी की अनुमति देता है, नियम 89(5) विपरीत है क्योंकि यह सूत्र दायरे से इनपुट सेवाओं पर कर को बाहर करता है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि यदि धारा 54 (3) को केवल इनपुट पर कर तक सीमित करके संचित आईटीसी की वापसी के दावे के खिलाफ प्रतिबंध के रूप में व्याख्या की जाती है, तो यह असंवैधानिक होगा क्योंकि इससे इनपुट और इनपुट सेवाओं के बीच भेदभाव होगा।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया है
‘इनपुट’ का अर्थ लगाना ताकि इनपुट सामान और इनपुट सेवाओं दोनों को शामिल किया जा सके, धारा 54(3) के प्रावधानों का उल्लंघन होगा और स्पष्टीकरण-I की शर्तों के विपरीत होगा जो पहले नोट की गई हैं। नतीजतन, यह निर्धारिती के तर्क को स्वीकार करने के लिए न्यायालय के लिए खुला नहीं है कि धारा 54(3) को प्रासंगिक रूप से लागू करने की प्रक्रिया में, न्यायालय को माल और सेवाओं दोनों को कवर करने के लिए अभिव्यक्ति ‘इनपुट्स’ को व्यापक बनाना चाहिए।”
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