विकास दुबे के अंत के साथ ही खत्म हो गया उसका साम्राज्य,बिकरू में इस बार लोकतंत्र की बयार 

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द लीडर। यूपी में पंचायत चुनाव की सरगर्मी तेज है।इस बीच एक नजर डालते हैं कुख्यात अपराधी विकास दुबे के गांव बिकरु पर जहां कभी उसकी तूती बोलती थी। सालों बाद पंचायत चुनाव में पहली बार बिकरु गांव में लोकतंत्र की बयार बहती नजर आ रही है।दरअसल कुख्यात विकास दुबे के मारे जाने के बाद अब यहां प्रत्याशियों के पोस्टर दीवारों पर नजर आ रहे हैं।  यहां लोग खुलकर चुनावों की चर्चा करते चौपाल में आपको दिख जाएंगे। इससे पूर्व विकास दुबे का यहां दबदबा था जो अपने परिवार के लोगों या चहेतों को चुनावी समर में उतारता था।  विकास दुबे के प्रत्याशी का निर्विरोध जीतना तय रहता था।

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स्थानीय लोग बताते हैं कि प्रधान की घोषणा विकास दुबे ही कर देता था, चुनाव तो खानापूर्ति के लिए करवाए जाते थे लेकिन, इस बार ठीक उससे उलट है गांव में 25 साल बाद प्रधान पद के लिए 10 प्रत्याशी मैदान में ताल ठोंक रहे हैं।  करीब डेढ़ हजार आबादी वाली इस पंचायत में गांव में लगे बैनर पोस्टर विकास दुबे की दहशत से आजादी की बात कहते दिख रहे हैं।

चुनावी मैदान में उतरे उम्मीदवारों का कहना है कि इससे पहले कभी चुनाव लड़ने की हिम्मत उनमें नहीं हुई।  विकास दुबे जिस पर हाथ रख देता था, वहीं प्रधान के पद पर काबिज हो जाता था यदि विकास दुबे जिंदा होता तो कोई चुनाव लड़ने के बारे में सोच भी नहीं सकता था।

विकास दुबे का रहता था दबदबा

विकास दुबे का पंचायत चुनावों पर अपना कब्जा रखना चाहता था उसके भाई की पत्नी अंजलि दुबे निवर्तमान प्रधान थी जबकि उसकी पत्नी ऋचा दुबे जिला पंचायत सदस्य थी। 1995 से विकास दुबे के परिवार के लोग या या उनके समर्थित उम्मीदवार ही प्रधानी के पद पर काबिज नजर आते थे।

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