द लीडर हिंदी, लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर हर पार्टियां तैयारियों में जुटी हुई है, हर कोई जनता को लुभाने में लगा है. बता दें कि, उत्तर प्रदेश में अगले साल की शुरुआत में विधानसभा के चुनाव होने हैं. इसे लेकर सभी प्रमुख राजतीनिक दल सड़क पर उतर गए हैं. अखिलेश यादव जहां साइकिल यात्रा के जरिए से सत्ता में वापसी का रास्ता तलाश रहे हैं. तो वहीं ब्राह्मण सम्मेलन के जरिए मायावती भी बीएसपी में जान फूंकने की तैयारी कर रही हैं. सत्ताधारी बीजेपी भी लखनऊ से लेकर दिल्ली तक लगातार बैठकें कर रही है. वहीं अब भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा 7 और 8 अगस्त को उत्तर प्रदेश का दौरा करेंगे. इसके साथ ही कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी जोर शोर से तैयारी में लगी हैं.
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बता दें कि, साल 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पहली बार ऐतिहासिक जीत हासिल करते हुए 312 सीटों पर विजय हासिल की थी. उस वक्त अपने सहयोगियों के साथ मिलकर बीजेपी 325 सीटों पर काबिज हुई, लेकिन इस आंधी में भी लगभग 80 सीटें ऐसी थी जिनपर ना तो बीजेपी और ना ही उसके सहयोगी जीत पाए, यहां विपक्षी पार्टियों को जीत मिली थी. अब जब विधानसभा चुनाव बेहद करीब है तो पार्टी इस रणनीति में जुटी है कि कैसे इस बार भी ज्यादा से ज्यादा सीटों पर कमल खिलाया जाए, इनमें खास फोकस उस वक्त हारी हुई लगभग 80 सीटों पर है, जहां 2017 में पार्टी को जीत हासिल नहीं हुई थी.
60 से ज्यादा सीटों पर आज तक नहीं खिला कमल
2017 में 78 ऐसी सीटें ऐसी थी जहां बीजेपी और उसके सहयोगी नहीं जीत पाए थे, फिर उसके बाद ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा गठबंधन से अलग हो गई तो उसकी 4 सीटों को भी पार्टी ने हारी हुई सीटों में शामिल कर लिया. जिसके बाद ऐसी सीटों की संख्या 82 हो गई. वहीं, उपचुनाव में 2 सीट गंवाने के बाद इन सीटों की संख्या बढ़कर हो गई 84. अब इन 84 सीटों पर जीत की अलग रणनीति तैयार की गई है. इन 84 सीटों में भी 60 से ज्यादा सीटें ऐसी हैं जहां बीजेपी का कमल आज तक नहीं खिला है.
इन सीटों पर नहीं जीती बीजेपी
अब आपको बताते हैं कि ऐसी वो कौन सी सीटें हैं जहां बीजेपी आज तक जीतने में सफल नहीं हो पाई है और पार्टी का इस बार फोकस इन सीटों को जीतने पर है. इनमें अगर हम बात करें तो अंबेडकर नगर की अकबरपुर, आजमगढ़ की निजामाबाद सीट, सीतापुर की सिधौली सीट, रायबरेली की हरचंदपुर सीट, लखनऊ की मोहनलालगंज सीट, रायबरेली की रायबरेली सदर सीट, कानपुर की सीसामऊ सीट, आजमगढ़ की आजमगढ़ सदर सीट, प्रतापगढ़ की रामपुर खास सीट, इटावा की जसवंतनगर सीट, रायबरेली की ऊंचाहार सीट, जौनपुर की मल्हनी सीट, आजमगढ़ की अतरौलिया सीट, आजमगढ़ की मुबारकपुर सीट आजमगढ़ की गोपालपुर सीट शामिल है. जौनपुर की मल्हनी सीट जो पहले रारी विधानसभा थी वहां भी बीजेपी आज तक कभी नहीं जीती है. इसके अलावा प्रतापगढ़ की कुंडा सीट बीजेपी 1993 के बाद कभी नहीं जीती.
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बीजेपी बना रही है ये रणनीति
दरअसल, ऐसी सीटों की संख्या 60 से ज्यादा है जहां पार्टी अभी तक कमल नहीं खिला पाई है और इसीलिए इस बार इन सीटों पर भी कमल खिले इसके लिए रणनीति तय करते हुए अलग-अलग लोगों को प्रभारी भी नियुक्त किया गया है. पार्टी का पूरा फोकस है कि, कैसे 2022 में इन सीटों पर भी कमल खिलाया जाए. इसके लिए पार्टी ने हर सीट पर अलग-अलग प्रभारी भी नियुक्त किए हैं, इन सीटों को जिताने की जिम्मेदारी पार्टी ने अपने विधान परिषद के सदस्यों, राज्यसभा सांसदों, निगम, बोर्ड और आयोग के अध्यक्षों को सौंपी है, जो लगातार इन सीटों पर जीत की रणनीति बनाने में जुटे हैं.
7 और 8 अगस्त को उत्तर प्रदेश का दौरा करेंगे जेपी नड्डा
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में फिर से काबिज होने के लिए बीजेपी जोरों शोरों से तैयारियों में जुटी है. भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा 7 और 8 अगस्त को उत्तर प्रदेश का दौरा कार्यकर्ताओं को जीत का मंत्र देंगे। वहीं चुनाव के लिहाज से जेपी नड्डा का यूपी दौरा काफी अहम माना जा रहा है.
खास रणनीति पर हो सकती है चर्चा
2022 का सियासी संग्राम जीतने के लिए बीजेपी ने इस बार एक रणनीति बनाई है. पार्टी का फोकस 60 से ज्यादा उन सीटों पर है जहां पार्टी आज तक कभी भी विधानसभा का चुनाव ही नहीं जीती है.
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Bharatiya Janata Party National President JP Nadda to visit Uttar Pradesh on 7th & 8th August, to hold meeting with state leadership
(file photo) pic.twitter.com/erayKuUJFC
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) August 3, 2021
दिलचस्प होगा मुकाबला
2022 के विधानसभा चुनाव में जुटी सत्ताधारी बीजेपी की कोशिश यही है कि, इस बार सरकार के कामकाज के जरिए उन सीटों पर भी जीत हासिल की जाए जहां अब तक पार्टी को कभी भी जीत नहीं मिली है. इसीलिए वहां पार्टी ने अलग रणनीति के तहत प्रभारी भी नियुक्त किए हैं. इन सीटों की जिम्मेदारी इन्हीं प्रभारियों के कंधों पर है. हालांकि, इनमें से ज्यादातर सीटें विपक्षी दलों की परंपरागत सीट मानी जाती रही हैं और ऐसे में उनके इस अभेद्य दुर्ग को बीजेपी कैसे फतह करेगी ये देखना काफी दिलचस्प होगा.
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