द लीडर. दरगाह आला हज़रत से नेपाली उलमा के रिश्ते तेज़ी के साथ मज़बूत हो रहे हैं. बरेलवी उलमा के प्रतिनिधिमंडल ने एक बार फिर नेपाल पहुंचकर वहां मस्जिदों और मदरसों का जायज़ा लिया. उलमा, छात्रों और वहां के लोगों से मिलकर उन्हें दरगाह आला हज़रत के प्रमुख सुब्हान रज़ा खां सुब्हानी मियां और सज्जादानशीन मुफ़्ती मुहम्मद अहसन रज़ा क़ादरी अहसन मियां का पैग़ाम सुनाया. ग़ौस-ए-आज़म की महफिल को ख़िताब करके तालीम पर ज़ोर दिया.
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नेपाल गए प्रतिनिधिमंडल में दरगाह आला हज़रत स्थित मदरसा मंज़र-ए-इस्लाम के मुफ़्ती मुहम्मद सलीम नूरी, मौलाना शहाबुद्दीन रज़वी शामिल हैं. ये दोनों उलमा बिहार में दरभंगा होकर सनवरसा बार्डर के रास्ते नेपाल में दाख़िल हुए. दरभंगा एयरपोर्ट में आफीसर जितेंद्र झा ने ख़ैरमक़दम किया. प्रतिनिधिमंडल ने नेपाल में चार दिन में मलंगवा, सरलाही इत्यादि में मस्जिदों, मदरसों को देखा. बड़ी संख्या में वहां लोगों से मुलाक़ात की. मुफ़्ती मुहम्मद सलीम नूरी ने बताया कि मस्जिदों में दरगाह आला हज़रत जैसे गुंबद देखकर बेहद ख़ुशी हासिल हुई.
उस मदरसा जीलानिया को भी देखा जिसकी स्थापना में आला हज़रत के पोते और सुबहानी मियां के दादा मौलाना मुफ्ती इब्राहीम रज़ा खां मुफ़स्सिर-ए-आज़म का रोल रहा था. इस मदरसे में जलसे के दौरान आला हज़रत की तालीमी ख़िदमात पर तफ़सील के साथ चर्चा भी हुई. यहां सुबहानी मियां साहब के वालिदे मोहतरम हज़रत रेहाने मिल्लत की भी बहुत सी यादगारों से भी रूबरू हुए. सब की तफसीलात नोट कीं.
इससे पहले दरगाह आला हज़रत की तरफ से सुब्हानी मियां ने नेपाल में कोरोनाकाल में खाद्य सामग्री भी भेजी थी, ताकि लोगों को परेशानी से राहत मिल सके. बाद में नेपाल से उलमा का एक प्रतिनिधिमंडल दरगाह आला हज़रत आया था. यहां की तालीम और आला हज़रत की दीनी ख़िदमात का जायज़ा लेकर गए थे. रिश्तों को पहले से और ज़्यादा मज़बूत करने का यक़ीन भी दिला गए थे. उसी का नतीजा रहा कि जब दरगाह के मुफ़्तियाने कराम का प्रतिनिधिमंडल दूसरी बार नेपास पहुंचा तो गर्मजोशी से ख़ैरमक़दम किया गया.