सुप्रीमकोर्ट ने बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई पर गुजरात सरकार को दिया नोटिस

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Bilkis Bano Gujrat Supreme Court
बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई के ख़िलाफ प्रदर्शन करती महिलाएं.

द लीडर : सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस एनवी रमना की अगुवाई वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई पर गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया है. बिलकिस बानो साल 2002 के गुजरात दंगों की पीड़िता हैं. 21 साल की उम्र में, जब वह पांच महीने की गर्भवती थीं, तब भीड़ ने उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया था. उनकी मां और बहन के साथ भी रेप किया. और परिवार के 7 लोगों का क़ल्त कर दिया था. इस दिल दहलाने वाले कांड में बिलकिस के परिवार के क़रीब 14 लोग मारे गए थे. जिनके अपराधियों को इसी 15 अगस्त को राज्य सरकार ने अच्छे बर्ताव के तर्क पर रिहा कर दिया है. (Bilkis Bano Gujrat Supreme Court)

माकपा नेता सुभासिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार-फ़िल्म निर्माता रेवती लौल और दर्शनशास्त्र के प्रोफ़ेसर-एक्टिविस्ट रूप रेखा वर्मा ने गुजरात सरकार के इस फ़ैसले को सुप्रीमकोर्ट में चैलेंज किया. गुरुवार को याचिका पर सुनवाई हुई. मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस विक्रमनाथ की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है. और रिहा किए गए 11 दोषियों को मामले में पक्षकार बनाने का निर्देश दिया.

शीर्ष अदालत ने कहा-नोटिस जारी करें और अपना जवाब दाख़िल करें. हम 11 दोषियों को मामले में पक्षकार बनाने का निर्देश देते हैं. बिलकिस बानो के दोषी, जो रिहा किए गए हैं-उनमें जसवंत नई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राधेशम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप मोर्धिया, बकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चंदना शामिल हैं. (Bilkis Bano Gujrat Supreme Court)


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सुप्रीमकोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि हम ये देखेंगे कि क्या इस मामले में छूट देते समय दिमाग का इस्तेमाल किया गया है. क्या दोषी गुजरात नियमों के तहत छूट के हक़दार हैं? याचिकाकर्ताओं की ओर वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा-हम यही देखना चाहते हैं कि क्या इसमें दिमाग का उपयोग किया गया था. (Bilkis Bano Gujrat Supreme Court)

दरअसल, बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई के बाद से हंगामा मचा है. और गुजरात सरकार के इस फ़ैसले को राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है. तो कई लोग इस फ़ैसले को न्याय व्यवस्था के ख़िलाफ़ और महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुंचाने के तौर पर देख रहे हैं.


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