दरगाह आला हजरत के छात्रों ने सुने अरुणा आसफ अली की जांबाजी के यादगार किस्से

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लीडर. अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वह जेल पर जेल जाती रहीं लेकिन ब्रिटिश हुकूमत की तमाम ज्यादतियों के बावजूद उनका हौसला आसमान पर रहा. वह अपने मकसद से डिगीं न घबराईं. आखिरकार जिंदगी में ही करोड़ों भारतीयों के साथ आजादी की गवाह बनीं. इन्हीं स्वतंत्रता संग्राम की महान नायिका अरुणा आसफ अली को दरगाह आला हजरत पर याद किया गया. जन्मदिन पर खिराज-ए-अकीदत (श्रद्धांजलि) पेश करते हुए उनके न भुलाए जाने वाले कारनामों से दरगाह पर स्थापित मदरसा मंजर-ए-इस्लाम के छात्रों को अवगत कराया गया.

दरगाह प्रमुख हजरत सुब्हानी मियां और सज्जादानशीन अहसन मियां की देखरेख में ई-पाठशाला के तहत स्वतंत्रता संग्राम में अरुणा आसफ अली के योगदान की चर्चा की गई. वरिष्ठ शिक्षक मुफ्ती मोहम्मद सलीम बरेलवी ने बताया कि आज ही के दिन 16 जुलाई 1909 ई. को आजादी ए हिन्द की अहम नायिका का जन्म पंजाब के कालका में हुआ था। ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती थीं. बचपन का नाम अरुणा गांगुली था.

उन्होंने लाहौर और नैनीताल के सेक्रेड हार्ट कान्वेंट स्कूल में शुरुआती शिक्षा प्राप्त की। स्नातक की उपाधि के बाद अरुणा आसफ अली गोखले मेमोरियल स्कूल, कलकत्ता में शिक्षिका के तौर पर कार्य करने लगीं। इलाहबाद में उनकी मुलाकात आसफ अली से हुई जो इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रख्यात नेता और स्वतंत्रता संग्राम के जांबाज़ योद्धा थे. उम्र में 23 वर्ष बड़े थे. फिर भी अरुणा ने 1928 में माता-पिता की मर्जी के खिलाफ उनसे शादी की.

शादी के उपरांत अरुणा आसफ अली भी पति के साथ स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गईं. 1930 में ‘नमक सत्याग्रह’ के दौरान उन्होंने सार्वजनिक सभाओं को सम्बोधित किया और जुलूस निकाला. ब्रिटिश हुकूमत ने उन पर बाग़ी होने का आरोप लगाकर एक साल जेल की सजा सुनाई. गांधी-इर्विन समझौते के तहत सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया गया. अरुणा को मुक्त नहीं किया. जब उनके पक्ष में जनांदोलन हुआ तब उन्हें रिहा किया गया.

‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भी अरुणा आसफ अली ने मुख्य भूमिका निभाई और मुम्बई गौलिया टैंक मैदान में ब्रिटिश फ़ौजियों की गोलियों की परवाह न करते हुए बहादुरी के साथ राष्ट्रीय ध्वज फहराकर ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का आग़ाज़ कर दिया. ब्रिटिश साम्राज्य ने इन्हें कई बार जेल में डाला. आज़ादी के बाद वह 1958 में दिल्ली की प्रथम मेयर बनीं और 1960 में उन्होंने ‘मीडिया पब्लिशिंग हाउस’ की स्थापना की. 1964 में अंतरराष्ट्रीय लेनिन शांति पुरस्कार, 1991 में अंतरराष्ट्रीय समझौते के लिए जवाहर लाल नेहरू पुरस्कार, 1998 ई. में भारत रत्न पुरस्कार दिया गया. उनके सम्मान में दिल्ली की एक सड़क का नाम ‘अरूणा आसफ़ अली मार्ग’ रखा गया. 1998 में उनके नाम पर एक डाक टिकट भी जारी किया गया.

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