अचानक #BanNEET क्यों ट्रेंड करने लगा?

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आशीष आनंद-

NEET की परीक्षा तिथि घोषित होने के साथ ही पहले ओबीसी आरक्षण को लेकर सोशल मीडिया में मुद्दा छाया था, लेकिन दो-तीन दिन के अंदर ही NEET को ही बैन करने का हैश टैग ट्रेंड कर रहा है। अब यह बात हो रही है कि मामला सिर्फ ओबीसी के आरक्षण का नहीं है, बल्कि गांव-देहात की गरीब आबादी के प्रतिभान बच्चों को इससे मौका नहीं मिल रहा है।

#BanNEET ट्रेंड कराने वालों की दलील है कि NEET की व्यवस्था में सिर्फ अंग्रेजी माध्यम के बोर्ड से पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को ही मौका मिल पाता है, जो न सिर्फ आर्थिक तौर पर संपन्न वर्ग से आते हैं, बल्कि जातिगत संरचना के हिसाब से भी ज्यादातर कथित उच्च जातियों के बच्चे होते हैं।

NEET में एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के बच्चों को चिकित्सा क्षेत्र में जाने से बाधा आ रही है, इस बात को लेकर तमिलनाडु में भाजपा के सचिव के नागराजन ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की, जिसे सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसले के आधार पर रद्द कर दिया गया। इससे पहले ही इस मुद्दे पर सोशल मीडिया में एक पोस्ट तैरने लगी, जिसने लोगों को झकझोरना शुरू कर दिया।

हमें यह पोस्ट अनुज पटेल के नाम से मिली। इसमें बताया गया है कि अनुसूचित जनजाति की अनीता ने तमिलनाडु स्टेट बोर्ड की बारहवीं की परीक्षा में 98 प्रतिशत अंक हासिल किए थे। दिहाड़ी मजदूर की इस बेटी को डॉक्टर बनने के लिए NEET परीक्षा में बैठना अनिवार्य था। केंद्र सरकार के बनाए संस्थान NEET में अनीता ने कम अंक हासिल किए। अनीता ने NEET के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में याचिका दायर की और बिना बसपा, सपा, आरजेडी और डीएमके की मदद लिए अकेले भिड़ गई।

अनिता का दमदार तर्क था- तमिलनाडु स्टेट बोर्ड का पाठ्यक्रम और NEET के पाठ्यक्रम में कोई समानता नहीं, NEET में बैठने के लिए कोचिंग क्लास करना मजबूरी है, दो लाख से लेकर दस लाख तक कोचिंग संचालक NEET की पढ़ाई के लिए वसूलते हैं। यही वजह है कि राज्यों के बोर्ड में बेहतर अंक हासिल करने वाले ग्रामीण गरीब छात्र NEET में असफल हो जाते हैं।

सुप्रीम कोर्ट में NEET के पक्ष में बहस करने के लिए पी.चिदंबरम की पत्नी नलिनी चिदंबरम खड़ी हुईं। नलिनी ने बहस में कहा, मेडिकल एडमिशन NEET परीक्षा के तहत ही होना चाहिए और अगर NEET के खिलाफ दोबारा याचिका दाखिल करनी है तो वह भगवान के सामने ही हो सकती है।

नलिनी चिदंबरम जीत गईं, NEET यानी कांग्रेस सरकार ने नलिनी को करोड़ों रुपए फीस दी और हारने वाली अनीता एक सितंबर 2017 को अपनी ज़िंदगी से हार गई।

पोस्ट के आखिर में लिखा है, NEET में आरक्षण नहीं, NEET को खत्म करने की मांग होनी चाहिए, नहीं तो NEET हमारे होनहार बच्चों का भविष्य खत्म करता रहेगा।

इस मामले में क्रांति कुमार की पोस्ट भी वायरल हो रही है। इस पोस्ट में बताया गया है कि कांग्रेस सरकार ने साल 2010 में NEET की अवधारणा रखी।

NEET को क्यों लाया गया ? स्टेट बोर्ड के अंतर्गत स्थानीय भाषा में पढ़ने वाले छात्रों को डॉक्टर इंजीनियर बनने से रोकने के लिए NEET सिस्टम को लाया गया। राज्यों की भाषा में पढ़ाई सरकारी स्कूलों में होती है, जहां OBC, SC, ST वर्ग के गरीब घरों के छात्र पढ़ते हैं।

NEET किस तरह स्थानीय भाषा में पढ़ने वाले छात्रों का भविष्य बर्बाद कर रहा है ? NEET का पाठ्यक्रम NCERT के पाठ्यक्रम पर आधारित है। NEET का पेपर 720 अंक का होता है। स्टेट बोर्ड का पाठ्यक्रम NEET से बिल्कुल अलग होता है।

प्रमाण 1- 2018 के NEET परीक्षा में 600 से ज्यादा अंक हासिल करने वाले 3000 छात्र अंग्रेजी मीडियम से थे, केवल एक छात्र राज्य भाषा से था।

प्रमाण 2– 500 से ज्यादा अंक पाने वाले 23 हजार छात्र अंग्रेजी मीडियम से पढ़े थे और सिर्फ 84 छात्र राज्य भाषा से पढ़ने वाले थे।

इन आंकड़ों से यही लगता है कि अंग्रेजी माध्यम के छात्र बेहतर हैं और ग्रामीण इलाकों के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र कमतर हैं ? नहीं, ऐसा नहीं है। दरअसल, NEET का सिस्टम ही अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने वाले छात्रों को लाभ पहुंचाने के लिए बनाया गया है।

इसके बाद क्रांति कुमार ने भी अनीता का केस यह कहते हुए साझा किया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के नौ दिन बाद 1 सितंबर 2017 को अनिता ने आत्महत्या कर NEET और सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ विद्रोह कर दिया। NEET को पूरी तरह खत्म करने की मांग होनी चाहिए।

यह बातें किसी को भी तार्किक लगेगी। एक दलील अतिरिक्त कोई दे सकता है कि स्टेट बोर्ड से सामान्य वर्ग के भी बच्चे पढ़ते हैं। लेकिन इस दलील का जवाब पहले से मौजूद है, वह यह कि सामान्य वर्ग के बच्चों के पास विशिष्ट जातिगत अधिकार के चलते दूसरे क्षेत्रों में मौके मिल जाते हैं या फिर वे जातिगत अहंकार में अपना भविष्य बर्बाद करते हैं।

स्टेट बोर्ड से पढ़कर डॉक्टर बनने का मौका स्टेट बोर्ड के बच्चों को भी हासिल हुआ, इस बात के ढेरों उदाहरण हैं। द लीडर हिंदी ने उत्तरप्रदेश के बरेली जिले का एक उदाहरण इस मुद्दे पर एक लेख में दिया भी है कि किस तरह एक के बाद एक कई ओबीसी छात्र डॉक्टर बने। जबकि अब ऐसा नहीं हो रहा।

इसका दूसरा पहलू भी है। वह यह कि आरक्षण की बदौलत यह मौके हासिल करने वालों में एक तबका ऐसा पैदा हो चुका है, जो अपने बच्चों को शहरों में ही पाल रहा है और उनको अंग्रेजी माध्यम में पढ़ा रहा है। इस तबके की अपने ही वर्ग के लोगों से दूरी बन चुकी है और उनकी चिंता दर्द का विषय नहीं है।

सामाजिक सम्मान मिले, ज्यादातर यही कोशिश है इस नए अभिजात्य तबके की, इस सम्मान को हासिल करने के लिए वे सभी साधन जुटा लेने की ललक है, जिससे सामाजिक सम्मान मिल सके, भले इसके लिए भ्रष्टाचार से आकंठ डूब जाएं।

आज जब नीट के मुद्दे पर स्टेट बोर्ड के बच्चों के भविष्य का सवाल उठ रहा है तो यह नया अभिजात्य तबका चुप्पी साधे है, क्योंकि उनकी अगली पीढ़ी के पास सीमित मौका बरकरार है।


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