रूस-उक्रेन युद्ध का फैसला लगभग हो चुका है- नजरिया

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         Mukesh Aseem

युद्ध का फैसला लगभग हो चुका है। साम्राज्यवादी रूसी हमले के सामने उक्रेनी फौज का बहुत बडा हिस्सा इस जद्दोजहद में है कि घेराबंदी में फंसने से बच जाए। पर दूर बैठे दूसरे साम्राज्यवादी अमरीकी अभी भी उक्रेन को उकसाए जा रहे हैं। ब्लिंकेन ने दोबारा कह दिया कि उक्रेन अभी भी युद्ध में रूस को हरा सकता है। अमरीकी साम्राज्यवादी संभवतः इस बात से दुखी हैं कि अब तक उक्रेनी नागरिकों की जानें बडे़ पैमाने पर क्यों नहीं गईं ताकि वे उसका राजनीतिक सौदेबाजी में लाभ उठा सकते। रूसी व अमरीकी साम्राज्यवाद द्वारा अपना अपना-अपना प्रभुत्व कायम करने के इस टकराव में शिकार उक्रेनी जनता है। (Russia-Ukraine War Viewpoint)

उधर उक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की, जिसे पश्चिमी मीडिया हीरो बना रहा है, उसका शर्मनाक रवैया अपने नागरिकों के लिए ही घातक सिद्ध हो रहा है। जो 7 घंटे का युद्धविराम हुआ था नागरिकों को निकलने का रास्ता देने के लिए, उक्रेनी फौज ने उसमें अपने नागरिकों को युद्धक्षेत्र से निकलने का रास्ता नहीं दिया, निकलने की कोशिश करने वालों पर गोलियां चलाईं।

उक्रेनी फौज नागरिकों को अपने कवच की तरह इस्तेमाल कर रही है, जो किसी भी फौज के लिए अत्यंत घृणित तरीका है।

मजबूत दुश्मन के खिलाफ युद्ध में जब उपाय नहीं बचे तो समर्पण कर भी समझौता किया जाता है ताकि गैरजरूरी जानमाल की हानि नहीं हो और भविष्य में फिर कभी ताकत जुटाकर दोबारा लड़ा जा सके। इसमें कुछ भी शर्मनाक नहीं माना जाता। दुनिया का सैनिक इतिहास यही कहता है। जर्मनों ने नेपोलियन के सामने यही किया था। लेनिन ने जर्मनों के सामने ब्रेस्ट लिटोव्स्क में यही किया था। पूरी दुनिया के इतिहास में बड़े नेताओं या जनरलों के ऐसा करने के तमाम उदाहरण हैं। (Russia-Ukraine War Viewpoint)

पर जीत की कोई संभावना न होने पर भी अपने ही नागरिकों की जानों की कीमत पर युद्ध को लंबा खींचते जाना बेहद घृणित है। जेलेंस्की और उसका गिरोह सिर्फ इसलिए ऐसा कर रहा है कि उनकी नजर में अमरीका-नाटो इससे खुश होंगे जिससे उनका व्यक्तिगत लाभ होगा। उक्रेनी सेना द्वारा उक्रेन से बाहर निकलने वाले शरणार्थियों की लाइनों में अफ्रीकी-एशियाई गैर अश्वेत लोगों के साथ नस्ली दुर्व्यवहार की निरंतर घटनाएं भी इस गिरोह के प्रति किसी भी हमदर्दी की गुंजाइश नहीं छोड़ता, हालांकि रूसी साम्राज्यवाद के हमले का विरोध और उक्रेनी जनता का समर्थन बिल्कुल सही नजरिया है।

असलियत नाटो को भी पता है कि युद्ध का फैसला हो चुका है। जेलेंस्की खुद सीधे नाटो को युद्ध में उतरने, युद्धक विमानों व घातक हथियारों की आपूर्ति और रूसी तेल-गैस आयात पर पाबंदी के लिए ललकार रहे हैं, कह रहे हैं- अन्यथा बहुत जानें जायेंगी। पर ऐसा करना नाटो के लिए मुमकिन नहीं। लिहाजा अमरीकी-जर्मन नेता भागकर इजरायल गए। वहां के प्रधानमंत्री बेनेट को मॉस्को भेजा गया है पुतिन के साथ समझौते का रास्ता निकालने के लिए।

युद्ध छेड़ने के लिए रूसी साम्राज्यवादियों का विरोध करते हुए भी इस सच्चाई से नहीं बचा जा सकता कि उक्रेन तक नाटो विस्तार की जिद इस युद्ध का बुनियादी कारण है और उस जिद को छोड़ना इसके समाधान की राह। बल्कि नाटो जैसे साम्राज्यवादी सैनिक गठजोड़ का भंग किया जाना दुनिया में जंगी उन्माद को कम करने के लिए जरूरी है।

रूसी मजदूर वर्ग और उक्रेन की रूसी भाषी अल्पसंख्यक आबादी, जिनके हितों की रक्षा के नाम पर रूसी साम्राज्यवादियों ने उक्रेन पर हमला किया, हमले के विरोध में रूसी फौज के सामने प्रदर्शन कर रहे हैं। सभी देशों की जनता को जंगी उन्माद व हथियारों की दौड़ का विरोध करना होगा। (Russia-Ukraine War Viewpoint)

(लेख द ट्रुथ पत्रिका के संपादक हैं, यह उनके निजी विचार हैं, फेसबुक वॉल से साभार)


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