पंजाब सीएम ने कृषि कानून आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के परिवार के 27 सदस्यों को नियुक्ति पत्र सौंपा

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द लीडर। कृषि कानूनों के विरोध में जहां किसानों ने कई महीने प्रदर्शन किया। वहीं आखिरकार सरकार ने किसानों की बात मानते हुए उनकी मांगे पूरे कर दी। लेकिन कृषि कानूनों के विरोध प्रदर्शन के दौरान कई किसानों की जान भी चली गई। वहीं पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने कृषि कानूनों के विरोध प्रदर्शन के दौरान मरने वाले किसानों के परिवारों के 27 सदस्यों को मंगलवार को सरकारी नौकरी के नियुक्ति पत्र सौंपे।

407 परिवारों में से प्रत्येक को 5 लाख का मुआवजा

मुख्यमंत्री ने किसानों को राज्य के आर्थिक ढांचे की बुनियाद बताते हुए कहा कि, सरकार पीड़ित परिवारों के हित को सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कदम उठाएगी। विशेष रूप से अब तक राज्य सरकार ने कृषि कानूनों के खिलाफ साल भर के आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के लगभग 407 परिवारों में से प्रत्येक को 5 लाख रुपये का मुआवजा दिया है, जिसे अब केंद्र ने निरस्त कर दिया है। उन्होंने इन मृतक किसानों के 169 निकट संबंधी को नौकरी भी प्रदान की है।


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मृतक किसानों के परिजनों को दी जाएगी सरकारी नौकरी

एक सरकारी प्रवक्ता के अनुसार, पंजाब सरकार ने सभी जिलों से मृतक किसानों के कुल 407 मामले पाए हैं, जहां उनके परिजनों को सरकारी नौकरी दी जा सकती है। लेकिन अब मृतक किसानों के परिजनों के 120 नए नामों को राज्य स्तरीय समिति ने मंजूरी दे दी है, जिसमें से 27 उम्मीदवारों को नौकरी के प्रस्ताव पत्र प्रदान किए गए हैं और शेष 93 पत्र अगले कुछ दिनों में जारी किए जाएंगे.

प्रवक्ता ने कहा कि, यह एक सतत प्रक्रिया है और जैसे ही सरकार को जिला स्तर से सत्यापन रिपोर्ट मिलती है, परिवार के पात्र सदस्यों को उनकी योग्यता के अनुरूप नियुक्ति पत्र जारी किया जाता है. पंजाब सरकार ने पहले ही निर्णय ले लिया है कि मृतक किसान के माता, पिता, विवाहित भाई या बहन, विवाहित बेटी, बहू और पोते-पोती अनुकंपा के आधार पर एकमुश्त रोजगार के पात्र होंगे। मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) के अनुसार, नियुक्ति पत्र प्राप्त करने वाले कुल 27 व्यक्तियों में से 15 पटियाला जिले से, तीन अमृतसर से, दो एसएएस नगर (मोहाली) से और सात फतेहगढ़ साहिब से थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को राष्ट्र के नाम संबोधन में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का एलान किया था। इन तीनों कानूनों के विरोध में कई राज्यों के किसान पिछले एक साल से दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए थे।


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