द लीडर : पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया से जुड़े लोगों की देशभर में ताबड़तोड़ गिरफ़्तारियों के बीच भारत सरकार ने PFI को पांच साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया है. गृहमंत्रालय से आदेश जारी होने के बाद हंगामा मच गया. सरकार के इस फ़ैसले पर मुसलमानों के अंदर ही दोराय हैं. एक धड़ा प्रतिबंध की आलोचना कर रहा है, तो दूसरा समर्थन. पीएफ़आई के अलावा इससे जुड़े क़रीब आठ और संगठनों पर शिकंजा कसा है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इससे जुड़े हैं. गृहमंत्रालय का दावा है कि पीएफ़आई देश में कट्टरता बढ़ा रहा है. और आतंकी संगठनों से इसके कनेक्शन के सुबूत हैं. (Popular Front Of India Ban)
पीएफ़आई कैसे बना. इसका गठन कहां हुआ. इसके बनाए जाने का मक़सद क्या था. पीएफ़आई के साथ वो कौन से संगठन हैं, जो गृहमंत्रालय की नज़र में खटक गए. इस पर बैन लगाने की पहल कब शुरू हो गई थी. और जब बैन हो गया है तो मुस्लिम समुदाय की क्या प्रतिक्रिया है. ऐसे कई बिंदुओं पर हम बात करेंगे.
PFI की तरह जितने भी नफ़रत और द्वेष फैलाने वाले संगठन हैं सभी पर प्रतिबंध लगाना चाहिए जिसमें RSS भी शामिल है। सबसे पहले RSS को बैन करिए, ये उससे भी बदतर संगठन है।
आरएसएस पर दो बार पहले भी बैन लग चुका है। सनद रहे, सबसे पहले RSS पर प्रतिबंध लौह पुरुष सरदार पटेल ने लगाया था।
— Lalu Prasad Yadav (@laluprasadrjd) September 28, 2022
पहले इसके गठन पर नज़र डाल लेते हैं. आज से ठीक 12 साल पहले साउथ दिल्ली में साल 2010 में पीएफ़आई का गठन हुआ था. ये सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत पंजीकृत सामाजिक संस्था है. गृह मंत्रालय के प्रतिबंध आदेश के मुताबिक पीएफ़आई सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक क्षेत्र में काम कर रहा था. लेकिन इसके साथ ही ये समाज एक के ख़ास वर्ग को कट्टर बनाने का एजेंडा चलाने लगा. Popular Front Of India Ban)
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रिहाब इंडिया फ़ाउंडेशन, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया इमाम काउंसिल, नेशनल कंफ़ेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑग्रेनाइज़ेशन, नेशनल वूमेंस फ्रंट, जूनियर फ्रंट, इंपावर इंडिया फ़ाउंडेशन, इन संगठनों का जुड़ाव पीएफ़आई से है. गृह मंत्रालय के मुताबिक पीएफ़आई के सदस्य ही इन संगठनों की निगरानी और संचालन करते हैं. मतलब एक तरह से इन संगठनों को पीएफ़आई की सहयोगी शाखाएं माना गया है.
मंत्रालय ने कहा कि पीएफ़आई ने समाज के विभिन्न वर्गाें में, जिनमें छात्र, नौजवान, महिला, इमाम, वकील और कमज़ोर वर्गाें के लोग शामिल हैं-उनके बीच अपनी पकड़ बनाने के लिए सहयोगी संगठन बनाए हैं.
सरकार का दावा है कि पीएफ़आई का जुड़ाव अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रतिबंधित संगठनों से है, जिनमें इस्लामिक स्टेट, बांग्लादेश का जमात उल मुजाहिद्दीन आदि शामिल हैं. Popular Front Of India Ban)
पीएफ़आई और इससे जुड़े संगठनों के ख़िलाफ़ देशव्यापी जांच जारी है. नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी के नेतृत्व में अब तक कोई 300 लोगों की गिरफ़्तारियां हो चुकी हैं. और प्रतिबंध के बाद अब प्रवर्तन निदेशालय हवाला के पैसे की जांच में जुट गई है. इसके अलावा कई ख़ुफ़िया एजेंसीज मामले की जांच कर रही हैं.
पीएफ़आई पर बैन के बाद मुस्लिम समुदाय का एक वर्ग सवाल उठा रहा है. और इसे मुस्लिम समाज को निशाना बनाए जाने के तौर पर देख रहा है. दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व चेयरमैन ज़फ़रुल इस्लाम ख़ान ने इसे काला दिवस बताया है. ज़फ़रुल इस्लाम ने कहा कि जैसे सिमी के ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई थी, उसी तरह पीएफ़आई को प्रतिबंधित कर दिया गया है. जबकि इन्होंने कुछ ग़लत या ग़ैरक़ानूनी नहीं किया है. ये एक वैध संगठन है. वह हिंदूवादी संगठनों का ज़िक्र करके सवाल भी उठाते हैं. Popular Front Of India Ban)
वहीं, सून्नी-सूफ़ी विचार से जुड़े कुछ लोग पीएफ़आई पर बैन के समर्थन में हैं. इसमें मुस्लिम स्टूडेंट्स आॅफ़ इंडिया, जोकि सुन्नी-सूफ़ी थॉट के फॉलोवर छात्रों का छात्र संगठन है-उसने कहा कि समाज में किसी तरह की कट्टरता पैदा करने वाले संगठन की गुंजाइश नहीं है. ऑल इंडिया सूफ़ी सज्जादानशीन कांउसिल के अध्यक्ष सैयद नसरुद्दीन चिश्ती, बरेलवी विचार से जुड़े संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रज़वी ने भी पीएफ़आई पर बैन का समर्थन किया है. अजमेर की दरगाह ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ से जुड़े सज्जादागान ने भी प्रतिबंध का समर्थन किया है.