रामपुर में कांग्रेस के पास बस अब एक मां ही रह गईं-पढ़ें राजनीति

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द लीडर हिंदी : यूपी के ज़िला रामपुर का वो नूरमहल जिसकी नींव नवाब रज़ा अली ख़ान ने अपने शहज़ादे नवाबज़ादा ज़ुल्फ़िक़ार अली ख़ान उर्फ़ मिक्की मियां के लिए रखी, जो बाद में कांग्रेस का मज़बूत क़िला बना. जिसके दर-ओ-दीवार से मुश्किल दौर में भी नेहरू, इंदिरा, राजीव अमर रहें कि आवाज़ें सुनाई देती रहींं. वो जहां मुल्क के प्रधानमंत्री, सूबों के मुख्यमंत्री, राज्यपाल और दिलीप कुमार जैसी फ़िल्मी हस्तियां चहलक़दमी करती रहीं. जहां से मिक्की मियां पांच और उनकी बेगम एक मर्तबा सांसद रहीं. उनसे पहले भी रामपुर लोकसभा की सीट नवाब ख़ानदान की बपौती रही.

पहली बार चुनाव हुआ तो नवाबीन के कहने पर ही अवाम ने मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को सांसद बना दिया. दौर बदला और रामपुर की सियासत में मुहम्मद आज़म ख़ान का उदय. उन्होंने ख़ूब नूरमहल की ईंट से ईंट बजाई लेकिन मिक्की मियां और उनके बाद बेगम नूरबानो मज़बूती से उनका सामना करती रहीं लेकिन अब आकर उन्हीं के शहज़ादे एक्स एमएलए नवाबज़ादा क़ाज़िम अली ख़ान और उनके बाद उनके साहबज़ादे हैदर अली ख़ान उर्फ़ हमज़ा मियां भारतीय जनता पार्टी के बग़लगीर हो गए हैं.

रामपुर कांग्रेस का बहुत मज़बूत क़िला बेहद कमज़ोरी के आलम में है. रामपुर कांग्रेस के पास अब कहने भर के लिए सत्तर के दशक की मशहूर फ़िल्म दीवार का डॉयलॉग- मेरे पास मां है. वो जिसके शशि कपूर के कहने पर अमिताभ बच्चन लाजवाब हो गए थे लेकिन रामपुर के कांग्रेसियों के लिए ये शायद ही यह संतोष का सबब बने, क्योंकि मां यानी बेगम नूरबानो अपने ही महल में अब उतनी मज़बूत नहीं हैं, होतीं तो पहले बेटे और फिर नाती को भाजपा में जाने से रोक लेतीं. हर ऊरूज को ज़वाल है.

नूरमहल का भी यही हाल है, जिस पर अवाम के वोट बरसते थे, अब चुनाव में उस एम्पायर के चश्म-ओ-चराग़ को ज़मानत बचाने के लाले पड़ रहे हैं. यही वजह है कि पावरफुल रहा नूरमहल ताक़तवर भाजपा की तरफ़ तेज़ी से बढ़ चुका है. बस अकेली बेगम नूरबानो पुरखों की बेमिसाल विरासत की पहचान को बाक़ी रखने की नाकाम कोशिश में लगी हैं. जिस नूरमहल का नाम ही कांग्रेस हुआ करता था, वहां भाजपा परचम लहराने जा रहा है.