सपा पर भरोसा करके मुसलमानों ने की बड़ी भूल – हार के बाद बोली मायावती

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द लीडर | देश के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत के साथ सीटें जीतकर इतिहास रच दिया है. इस चुनाव में बीजेपी गठबंधन को 273 सीटें मिली हैं, जबकि बहुमत के लिए 202 सीटें चाहिए. वहीं, समाजवादी पार्टी गठबंधन के खाते में 125 सीटें गई हैं. बड़ी बात यह है कि मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी इस चुनाव में सिर्फ एक सीट पर ही कब्जा कर पाई. जबकि कांग्रेस के खाते में भी दो सीटें गईं. बसपा की इस हार पर अब मायावती ने बड़ा बयान दिया है.


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सपा पर भरोसा करके मुसलमानों ने की बड़ी भूल- मायावती

मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा है, ”कल उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बसपा की उम्मीद के विपरीत जो नतीजे आए हैं, उससे घबराकर व निराश होकर पार्टी के लोगों को टूटना नहीं है. उसके सही कारणों को समझकर और सबक सीखकर हमें अपनी पार्टी को आगे बढ़ाना है और आगे चलकर सत्ता में जरूर आना है.” उन्होंने कहा, ”मुस्लिम समाज बसपा के साथ तो लगा रहा, लेकिन इनका पूरा वोट समाजवादी पार्टी की तरफ शिफ्ट कर गया, इससे बसपा को भारी नुकसान हुआ. मुस्लिम समाज ने बार-बार आजमाई पार्टी बसपा से ज्यादा सपा पर भरोसा करने की बड़ी भारी भूल की है.”

मायावती और ओवैसी को मिले भारत रत्न- संजय राउत

वहीं, दूसरी ओर बीजेपी की जीत को लेकर शिवसेना सांसद और प्रवक्ता संजय राउत ने मायावती और ओवैसी पर तंज कसा है. संजय राउत ने कहा है कि बीजेपी की जीत में मायावती और ओवैसी का बड़ा योगदान है. इस योगदान के लिए इन दोनों नेताओं को पद्म विभूषण और भारत रत्न देने होगा. संजय राउत ने शिवसेना की हार पर कहा कि यूपी में कांग्रेस और शिवसेना की जो हार हुई है, उससे बुरी हार बीजेपी की पंजाब में हुई है, जो एक संवेदनशील राज्य है.

उदाहरण से समझें कैसे खिसका वोट

हस्तिनापुर सीट पर बसपा पिछले चुनाव में नंबर दो पर थी और उसे 28.76 फीसदी वोट मिला था. इस बार उसका वोट बैंक मात्र 6.21 प्रतिशत ही रह गया. खुर्जा में उसे 23.46 मिला था जो 17.23, हाथरस में 26.62 से 23.31 और 28.69 से 19.35 फीसदी ही रह गया. इन सीटों पर बसपा का वोट बैंक भाजपा को शिफ्ट होता नजर आ रहा है.

दलित वोट बैंक में लगी सेंध

यूपी में बढ़ती जातिगत राजनीति को पहचान कर कांशीराम ने 14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी का गठन कर इसके साथ दलितों और पिछड़ों को जोड़ने का काम किया. लेकिन इन 15 सालों में उसका ग्राफ ऐसा गिरा कि वोटिंग प्रतिशत 12.07 प्रतिशत ही रह गया. साफ दिख रहा है कि बीएसपी के दलित वोट बैंक में भी सेंध लग गई है.

2007 में सरकार बनाने वाली बसपा सिर्फ एक सीट पर सिमटी

दरअसल, 38 साल पहले 1984 में बनी बसपा 2022 के चुनाव में आते-आते एक सीट पर पहुंच चुकी है. जिस बसपा ने 2007 में उत्तर प्रदेश में भारी बहुमत के साथ सरकार बनाई थी, वही बसपा 10 साल में सिमटकर एक विधायक पर आ गई है. 2022 के चुनाव में सिर्फ एक विधायक रसड़ा से उमाशंकर सिंह ने ही जीत हासिल की है. 1993 से बसपा ने विधान सभा चुनावों में 65 से 70 सीटों पर जीतना शुरू किया. 2002 में भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने वाली बसपा का वोट प्रतिशत 23 फीसदी पार कर गया. 2007 में बसपा को सबसे ज्यादा 40.43 फीसदी वोट मिले और उसने अपने दम पर सरकार भी बनाई. 2022 आते-आते बसपा महज 13 फीसदी पर सिमट गई.

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