चिताओं को अग्नि देकर नफरत के राक्षस का मार रहे आबाद कुरैशी और रईस जैसे नमाजी

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द लीडर देहरादून

रमजान का मुकद्दस महीना है, हरिद्वार जिले में ज्वालापुर कस्साबान के आबाद कुरैशी भी रोजे से हैं। उनके साथी इसरार मंसूरी, आफताब, दिलशाद कुरैशी, नदीम कुरैशी भी रोजेदार हैं। मुहल्ले में एक हिन्दू का शव पड़ा है। ये हिंदुओं की धर्मनगरी है लेकिन राजू की अर्थी श्मशान तक ले जाने का धर्म आसपास का कोई निभाना नहीं चाहता । जौलीग्रांट स्थित हिमालयन अस्पताल में राजू की मौत कोरोना से हुई थी। घर में 10 साल का छोटा बच्चा है और सुनील की पत्नी बिलख रही है।
खबर पाकर पहले आबाद कुरैशी दौड़ते हैं फिर अपने साथियों को बुलाते हैं। फिर तो उनके साथ राजेश भट्ट, सुनील व पंकज आदि भी आ जाते हैं। सभी लोग मिलकर राजू का शव कनखल स्थित श्मशान घाट ले गए। जहां रीति रिवाज के अनुसार मुस्लिम युवकों ने शव का दाह संस्कार कराया।
जिस समाज में सब्जी बेचने वाले मुसलमान को तबलीगी और सीधे कोरोना कह कर भगाया जा रहा हो,वहां आबाद कुरैशी जैसे नमाजियों को सलाम तो बनता है।
आबाद कुरैशी कहते हैं कि देश में रहने वाले हम सब भाई हैं और यही हमारे देश की गंगा-जमुनी तहजीब है। मुसीबत में एक भाई दूसरे के काम नहीं आए तो कौन आएगा।
पिछले रविवार नैनीताल जिले के हल्द्वानी शहर में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। रविवार दोपहर बहेड़ी निवासी एक व्यक्ति की सुशीला तिवारी में कोरोना से मौत हो गई। इस पर बनभूलपुरा के लाइन नंबर आठ निवासी मुस्लिम समाज के पांच लोग मदद को आगे आए। मुस्लिम समाज के ही एक युवक ने चिता को मुखाग्नि दी। मृतक के छोटे भाई ने भी लिखित में दिया था कि शव इन्हीं लोगों के सुपुर्द किया जाए।
बहेड़ी बरेली के मंगलपुर निवासी 40 वर्षीय पंकज गंगवार दस दिन पहले कोरोना की चपेट में आ गए थे। जिसके बाद उन्हें उपचार के लिए हल्द्वानी लाया गया। शहर में पहचान नहीं होने पर स्वजनों द्वारा लाइन नंबर आठ निवासी रइसुल हुसैन को फोन कर मदद करने को कहा। रइसुल ने एसटीएच प्रशासन से वार्ता कर पंकज को कोविड वार्ड में भर्ती करा दिया। जहां उसने दम तोड़ दिया।
इसके बाद मृतक के छोटे भाई गजेंद्र ने अंत्येष्टि में सहयोग करने के लिए दोबारा सहयोग मांगा। उसी दिन दोपहर में रइसुल की मौसी की बेटी का इंतकाल होने के कारण शाम तक का वक्त कब्रिस्तान में लग गया। अंधेरे होने की वजह से अगले दिन अंत्येष्टि का निर्णय लिया गया। इस वजह से गजेंद्र घर चला गया। वहां परिवार के अन्य सदस्य की तबीयत खराब होने पर उसने रइसुल को फोन कर कहा कि मौजूदा स्थिति में वो लोग आने में असमर्थ है। इसलिए अंतिम संस्कार भी वे ही करा दें। इस संबंध में मृतक के छोटे भाई गजेंद्र ने मेडिकल चौकी को लिखित में दिया कि पूर्व परिचय नहीं होने के बावजूद रइसुल हसन ने उपचार के दौरान काफी मदद की गई। इसलिए मैं चाहता हूं कि अंत्येष्टि के लिए भी शव इनके सुपुर्द कर दिया जाए।
इस पर रइसुल ने साथियों संग बात की और लाइन नंबर आठ निवासी मोहम्मद शादाब, मो. मौसीन, इकरार हुसैन व मो. उस्मान भी रविवार दोपहर मदद को आगे आए। राजपुरा स्थित मुक्तिधाम घाट पर पंकज का अंतिम संस्कार किया गया। पीपीइ किट पहन इकरार हुसैन ने चिता को मुखाग्नि दी। लकड़ी व अन्य चीजों की व्यवस्था मुक्तिधाम समिति के मंत्री रामबाबू जायसवाल व दशांक्ष सेवा समिति द्वारा की गई।

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