द लीडर : उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी, जहां अक्टूबर में किसानों को गाड़ी से कुचल दिया गया था. पत्रकार रमन कश्यप भी उन्हीं गाड़ियों से कुचलकर मारे गए थे. यूपी सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में मौखिक रूप से इसकी जानकारी दी है. जिसमें कहा है कि, पत्रकार की मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या) नहीं हुई, बल्कि उन्हें गाड़ी से कुचला गया था. (Lakhimpur Violence Supreme Court)
सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हेमा कोहली की पीठ एक जनहित याचिका पर मामले की सुनवाई कर रही है. यूपी सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने शीर्ष अदालत में कहा कि, किसानों और पत्रकार को कार ने कुचला.
लखीमपुर में 3 अक्टूबर को ये घटना घटी थी. केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसान प्रदर्शन के लिए तिकुनिया में जमा हुए थे. जहां केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा-टेनी के बेटे आशीष मिश्रा के काफिले ने किसानों को तेज रफ्तार गाड़ियों से कुचल दिया.
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इसमें 4 किसान, एक पत्रकार, गाड़ी के ड्राईवर और 2 भाजपा कार्यकर्ताओं समेत कुल 8 लोग मारे गए थे. राज्य सरकार ने मामले की जांच एसआइटी को सौंपी है, जिसकी निगरानी हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस कर रहे हैं.
लेकिन सुप्रीमकोर्ट न तो एसआइटी जांच से संतुष्ट न है कि इसकी निगरानी के लिए गठित संवैधानिक आयोग से. इसलिए कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के दो रिटायर्ड जस्टिसों के नाम सुझाए हैं, जिनकी निगरानी में जांच कराने को कहा है.
इस मामले में तीन एफआइआर दर्ज हैं. पत्रकार रमन कश्यम की मौत की जांच को एफआइआर 220 से एफआइआर 219 में बदल दिया गया है. जिस पर सुप्रीमकोर्ट की बेंच ने सवाल भी उठाया है.
सरकारी वकील की दलीलों को सुनने के बाद बेंच ने मुख्य आरोपी के विरुद्ध मामले पर चिंता जाहिर की. जिसमें जांच को मॉब लिंचिंग के काउंटर-केस से जोड़कर किसानों पर हमले को कमजोर किया जा रहा है.
चीफ जस्टिस ने कहा कि, हम कोई राजनीतिक रंग नहीं चाहते. एक स्वतंत्र न्यायाधीश को इस मामले की निगरानी करने दें. ये एकमात्र समाधान है, जो हम सोच रहे हैं. आप अपनी सरकार से मालूम करें. इस इसे शुक्रवार को देखेंगे. बेंच ने इस बात पर भी चिंता जताई कि, जांच उस तरीके से नहीं हो रही है, जैसी हमें उम्मीद थी.