50 साल बाद खुला खरबूजा महल, यहां है मुगलकालीन ‘खजाना’

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जावेद शाह खजराना-

बुरहानपुर और अजमेर मुगलकालीन वो मुक़ाम रहे हैं, जहां अधिकतर मुगल राजवंश के सदस्यों का जन्म और मृत्यु हुई है, लिहाजा इन जगहों पर उनके मकबरे भी खूब बने हुए हैं। चूंकि इन गुमनाम से मकबरों में दफ़्न ज्यादातर मुगल शहजादे और शहजादियां थीं, इसलिए इन मकबरों को वो मकबूलियत हासिल नहीं हुई जो खास मुग़ल सम्राटों के मकबरों को मिली। (Kharbooza Mahal Opened)

इन्हीं में से एक गुमनाम, लेकिन खूबसूरती में आला मकबरा है खरबूजा महल। मुगल सम्राट शाहजहां के दूसरे बेटे शाह शुजा की बेग़म बिलकिस बानो का आखिरी आरामगाह। जिसे बुरहानपुर के लोग खरबूजा महल बोलते हैं।

शाहजहां के बेटे शाह शुजा बंगाल के गवर्नर थे। उनकी शादी रुस्तम मिर्जा की बेटी बिलकिस बानो से 5 मार्च सन 1633 ईस्वी बरोज शनिचर की रात में हुई। बिलकिस बानो और शाह शुजा हमउम्र थे। दोनों की पैदाइश गरीब नवाज की नगरी अजमेर में 1616 में हुई। शादी के ठीक एक साल बाद बुरहानपुर में बेटी दिलपज़ीर बानो को जन्म देते समय बिलकिस बानो का इंतकाल हो गया।

हूबहू हादसा शाह शूजा की मां मुमताज बेग़म के साथ ठीक 3 बरस पहले गौहरआरा को जन्म देते समय इसी सरजमीन पर हुआ था। वो भी यही दफ़्न की गई थीं। (Kharbooza Mahal Opened)

आश्चर्य की बात है कि सास और बहू दोनों का इंतक़ाल लड़की को जन्म देते समय बुरहानपुर में ही हुआ और दूजा इन दोनों के मकबरों को महल कहा जाता है। तीसरा दोनों नदी किनारे बने हैं।

गौरतलब है कि शाहजहां के भाई परवेज भी यहीं मरे, उनकी सबसे लाडली बेगम मुमताज महल भी यही अल्लाह को प्यारी हुई। इसके अलावा शाहजहां के बेटे बेटियों से लेकर दूसरी बेगमों और बहुओं के भी ढेरों मक़बरे हैं।

मकराना की खानों से संगमरमर लाना-ले जाना अगर आसान होता तो ताजमहल भी शायद यहीं बनता। फिलहाल बात करते हैं खरबूजा महल की।

शाह शुजा और बिलकिस बेगम की शाही शादी में लाखों रुपए खर्च किए गए थे। ये शाह शूजा की पहली पत्नी थी, वो उससे बहुत मोहब्बत करता था। अपनी लाडली बेग़म को दफनाने के लिए उसने अलग हटकर एक युक्ति सोची।

उसने ऐसे मकबरे का निर्माण करवाया जो गोलमटोल चबूतरे के बीचोंबीच कमलनुमा कंगूरों से सुसज्जित है। गोल मटोल चबूतरें के घुमावदार हिस्सों की हर तरफ कमल की पत्तियों की तरह ढेरों कंगूरे बने हुए हैं। मक़बरे को ऊंचाई से देखने पर ऐसा लगता है मानो किसी ने खिले हुए कमल के बीचोबीच मक़बरा रख दिया हो। चबूतरे पर पानी के निकास के लिए पत्थरों की नालियां भी बनी हुई हैं, जो इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देती हैं। (Kharbooza Mahal Opened)

इस मक़बरे तक पहुंचने के लिए आपको बुरहानपुर शहर में इतवारा गेट के आगे आजाद नगर पहुंचना पड़ेगा। उतावली नदी और ताप्ती दरिया के किनारे बेगम बिलकिस का छोटा सा किंतु बेहद खूबसूरत मकबरा दिख जाएगा।

गोलमटोल चार दिवारी के अंदर चारों तरफ बनी सुनहरी नक्काशी हर किसी का मन मोह ले। मकबरा ईंट, चूने और पत्थर के उपयोग से बना हुआ है। इसका गुंबद 12 भागों में बंटा हुआ है और फांकों का आकार लिए हुए है, जिसमें वह खरबूजे जैसा नजर आता है। आकार के कारण ही इसे कहा जाता है खरबूजा गुंबद।

ईरानी स्थापत्य शैली से बना यह मकबरा आज भी आकर्षण का केंद्र है।

इस मकबरे की बाहरी दीवार 12 गोलमटोल खंभेनुमा उभरी हुई डिजाईनों से सुसज्जित है। खरबूजे की फांक जैसे दिखने वाली उभरी हर डिजाइन के ऊपर एक छोटा ग़ुंबद बना है। बीचोंबीच मुख्य गुंबद है। अंडाकार होने से बारिश का पानी गुंबद के नीचे नीचे आता और अंदर बनी खूबसूरत पेंटिंग महफूज रहती हैं।

पहले यहां गाहे बगाहे जायरीन घूमने आ जाते थे। लेकिन आजादी तक बुराहनपुर की ये मशहूर जगह धीरे धीरे लोग भूलने लगे। इसके जर्जर होने के कारण 1970 में केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने इसे बंद करके यहां ताले जड़ दिए।

कुछ बरसों पहले इसके अंदर बनी पेंटिग देखकर पर्यटन विभाग की आंखें फ़टी की फटी रह गईं। तब उसने मकबरे के रखरखाव और पेंटिग को वापस सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी उठाई। पर्यटन और पुरातत्व समिति सदस्य कमरूद्दीन फलक और मोहम्मद नौशाद ने मकबरा खुलवाने की मांग की थी। कलेक्टर प्रवीण सिंह ने एडीएम शैलेंद्र सोलंकी को मामला सौंपा गया। (Kharbooza Mahal Opened)

एडीएम सोलंकी ने केंद्रीय पुरातत्व सहायक संरक्षक विपुल मेश्राम से चर्चा की। उन्होंने कहा मकबरे की मरम्मत कराकर केमिकल से धुलाई की जाएगी, इससे मकबरे का पुराना स्वरूप लौटेगा। बहुत जल्द यहां पक्का रोड बनाया जाएगा। इससे पर्यटकों को आवाजाही में सुविधा होगी। इसकी बाक़ी मरम्मत कर पुरानी रौनक लौटाई जाएगी।

बेगम मुमताज और शाहजहां की बहू बिलकिस के मकबरे की 388 साल पुरानी ईरानी स्थापत्य कला को पर्यटक 50 साल बाद फिर देख सकेंगे। 25 जून बरोज जुमा को मकबरा 50 साल बाद खोला गया। करीब 600 वर्गफीट एरिया में मकबरे के विस्तार की योजना बनाई गई है। (Kharbooza Mahal Opened)

यह मकबरा राष्ट्रीय स्मारक के रूप में दर्ज है।

जिन लोगों ने मुगलकालीन ईरानी पेंटिंग करीब से और सही सलामत नहीं देखी, वो इस मकबरे को निहारने जरूर जाएं। मकबरे में आकर्षक रंगीन नक्काशी है। सैकड़ों साल बाद यह आज भी पहले की तरह ही सबको लुभा रही है।

मालवा में इससे बेहतरीन मुगलकालीन पेंटिग कहीं और देखने को नहीं मिलती। जैसे ताजमहल मकबरा है, ठीक वैसे ही खरबूजा महल भी कब्रगाह ही है।

(जन संवाद ग्रुप से साभार)


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