फिलिस्तीन को इंसाफ़ दिलाने के लिए कर्बला के मैदान से उठी आवाज़, 60 देशों के दो सौ बुद्धिजीवी जुटे

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Iraq Karbala Palestine Al Aqsa
इराक़ के कर्बला में आयोजित अंतरराष्ट्रीय फिलिस्तीन सम्मेलन. फोटो-साभार ट्वीटर

द लीडर : जब कभी इंसाफ़ और ज़ुल्म की बात होगी. कर्बला के उस मंज़र का ज़िक्र ज़रूर आम होगा, जहां हज़रत इमाम हुसैन ने इंसाफ़ और इंसानियत की ख़ातिर अपने 72 साथियों के साथ क़ुर्बानी देना कुबूल किया. लेकिन यजीद के ज़ुल्म के सामने घुटने नहीं टेके. उसी कर्बला के मैदान में इंसाफ़ और इंसानियत को लेकर एक ‘अंतरराष्ट्रीय फिलिस्तीन सम्मेलन’ चल रहा है. जिसमें 60 देशों के क़रीब 200 से ज़्यादा विद्वान, धर्मगुरु और इंसाफ़परस्त लोगों का जुटान हुआ है. (Iraq Karbala Palestine Al Aqsa)

हज़रत इमाम हुसैन के रोज़े मुबारक के कंवेंशनसेंटर में ये सम्मेलन हो रहा है. दुनियाभर से पहुंचें बुद्धिजीवियों ने मस्जिद-ए-अल अक़्सा को लेकर अपने विचार रखे हैं. सम्मेलन के आयोजकों ने फिलिस्तीन के मुद्​दे पर दुनिया के बीच अंतरराष्टीय मदद और एकजुटता के महत्व पर चर्चा की. इंसाफ़ के लिए प्रताड़ित और उत्पीड़ित देशों के समर्थन की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है.

वक्ताओं ने कहा कि इंसाफ़ और इंसानियत की रक्षा के लिए हज़रत इमाम हुसैन की शहादत सबसे बड़ी मिसाल है. वह ज़ुल्म के ख़िलाफ़ डटकर खड़े रहे. और इंसानियत की राह में क़ुर्बान हो गए. उनकी शहादत मजलूम, पीड़ित, शोषित और वंचित लोगों के अधिकारों की रक्षा करने की प्रेरणा देती है.


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सम्मेलन में हुसैनी आंदोलन, फिलिस्तीन का मसला, फिलिस्तीन मुद्​दे की रक्षा में इराक़ की ऐतिहासिक भूमिका और फिलिस्तीन के मुद्​दे पर बौद्धिक, सांस्कृति मसले पर चर्चा हुई है. (Iraq Karbala Palestine Al Aqsa)

इस सम्मेलन का आयोजन कई संगठन मिलकर करते हैं, जिनमें अतबात हुसैनी, दार अल अफताई के जनरल सचिवालय आदि द्वारा किया जाता है. इस दौरान दुनियाभर से तमाम अक़ीदतमंद कर्बला पहुंचते हैं. दरअसल, मुहर्रम में आशूरा के दिन हज़रत इमाम हुसैन ने अपने साथियों के साथ शहादत दी थी. इसके 40 रोज़ बाद चहल्लुम मनाया जाता है. मुहर्रम से लेकर चहल्लुम के बीच दुनिया के तमाम देशों से हज़रत इमाम हुसैन के लाखों चाहने वाले उनके रोज़े की ज़ियारत करने इराक़ जाते हैं.

इराक़ में फिलिस्तीन पर चर्चा की पहली वजह यही है कि इस्लाम की बुनियाद में कर्बला की वो तारीख़ सबसे अहम मानी जाती है. जब हज़रत इमाम हुसैन ने अपना सब कुछ क़ुर्बान करके इस्लाम को ज़िंदा किया था. आज जब फिलिस्तीन के आम लोग इज़राइल के भारी ज़ुल्म का सामना कर रहे हैं, तो उसी मैदान से फिलिस्तीन को इंसाफ़ दिलाने पर चर्चा हो रही है. (Iraq Karbala Palestine Al Aqsa)


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