दूसरे विश्वयुद्ध के अंत के समय अमेरिका ने जापानी शहर हिरोशिमा और नाकासाकी पर परमाणु बम गिराकर तबाही मचा दी थी। ऐसा पहली बार हुआ था, जब परमाणु बम का इस्तेमाल किया गया। दोनों ही घटनाओं में लाखों लोग मारे गए और रेडियोएक्टिविटी का असर आज तक इन शहरों पर है।
बताया जाता है कि अमेरिका ने 6 अगस्त को जापानी शहर हिरोशिमा पर ‘लिटिल बॉय’ नाम का परमाणु बम गिराया, जो यूरेनियम पर से बना था, जिसका वजन 4000 किलो और लंबाई 10 फुट थी।
नागासाकी पर गिराया गया परमाणु बम ‘फैट मैन’ प्लूटोनियम-239 पर आधारित था, जिसका वजन 4500 किलो और लंबाई 11.5 फुट थी। जापान के बंदरगाह शहर नागासाकी पर ‘फैट मैन’ नामक बम 9 अगस्त को 11 बजकर 1 मिनट पर गिराया गया, जो गिरने के सिर्फ 43 सेकेंड बाद जमीन से 1540 फीट की ऊंचाई पर फटा। जिसने तुरंत लगभग 75 हजार लोगों को झुलसाकर मार डाला। कुछ जगह मरने वालों की संख्या दो लाख तक बताई जाती है।
दोनों परमाणु बमों के फटने से कुछ समय के लिए इनके आस-पास 4-5 किलोमीटर के दायरे का तापमान 6 हजार डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। यह भी बताया जाता है कि हिरोशिमा पर जो बम गिराया गया उसे ले जाने वाले विमान में साइनाइड की 12 गोलियां भी रखी गई थीं, कि अगर मिशन फेल हो जाए तो विमान में मौजूद सारे ऑफिसर उन गोलियों को खा लें। यानी कि यह अमेरिका का आत्मघाती दस्ता था।
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नागासाकी परमाणु हमले के 6 दिन बाद जापान के राजा हिरोहित्तो ने अमेरिकी सेना के सामने सरेंडर कर दिया। अगर जापान सरेंडर नहीं करता तो अमेरिका जापान के अन्य शहरों पर और बम गिराता।
हिरोशिमा और नागासाकी पर बम गिराने से पहले अमेरिका ने जापान पर 49 बम प्रैक्टिस के तौर पर भी गिराए थे। उन बमों की वजह से भी 400 लोगों की मौतें हुई थीं और 1200 लोग घायल हुए थे। हिरोशिमा हमले के एक महीने बाद शहर में एक चक्रवात आया, जिसमें दो हजार लोग मारे गए थे।
सत्यप्रकाश दूबे की कविता- प्रेम और परमाणु
मुझे नफरत है
उस वैज्ञानिक और विज्ञान से
जिसने बंदूक बनाई है
इसने जितने लोगों को
बचाया नहीं है
उससे कई गुना ज्यादा
लोगों को मौत के
घाट उतार दिया है
मुझे नफरत है
उस वैज्ञानिक और विज्ञान से
जिसने बम बनाए
इसने जितना सरहदों
को सुरक्षित नहीं किया है
उससे ज्यादा इंसान
के अंदर डर और
दहशत फैलाई है
मुझे नफरत है
उस वैज्ञानिक और विज्ञान से
जिसने परमाणु बम बनाया है
जो जीत रूपी अहंकार को
पूरा करने के लिए
बेकसूर लोगों के
शरीर का पूरा जल
सोख लेता है
और तड़प-तड़प कर
मरने के लिए छोड़ देता है
हिरोशिमा और नागासाकी
का इतिहास आज
भी इंसान को डराता है
फिर भी तरक्की की दौड़ में
परमाणु बम से भी ज्यादा
खतरनाक हथियार बनाने
में लगे हुए हैं
अगर विज्ञान यही है
तो आने वाली पीढ़ियों से
मैं यही कहूंगा कि
इस विज्ञान को ना पढ़े
अगर विज्ञान को पढ़े
तो कुछ ऐसा आविष्कार करें
जो मानव कल्याण के लिए हो
न कि उसके अंदर दहशत
और डर फैलाने के लिए
मैं प्रेम से जीने में
विश्वास रखता हूं,
इंसान एक दिन
इंसान बनेगा
ऐसा आस
रखता हूं
अटल बिहारी वाजपेयी की कविता- हिरोशिमा की पीड़ा
हिरोशिमा की पीड़ा
किसी रात को
मेरी नींद अचानक उचट जाती है
आंख खुल जाती है
मैं सोचने लगता हूं कि
जिन वैज्ञानिकों ने अणु अस्त्रों का
आविष्कार किया था
वे हिरोशिमा-नागासाकी के भीषण
नरसंहार के समाचार सुनकर
रात को कैसे सोए होंगे?
क्या उन्हें एक क्षण के लिए सही
ये अनुभूति नहीं हुई कि
उनके हाथों जो कुछ हुआ
अच्छा नहीं हुआ!
यदि हुई, तो वक़्त उन्हें कटघरे में खड़ा नहीं करेगा
किंतु यदि नहीं हुई तो इतिहास उन्हें
कभी माफ़ नहीं करेगा!
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सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ की कविता- हिरोशिमा
हिरोशिमा
एक दिन सहसा
सूरज निकला
अरे क्षितिज पर नहीं,
नगर के चौक पर
धूप बरसी
पर अंतरिक्ष से नहीं,
फटी मिट्टी से।
छायाएं मानव-जन की
दिशाहीन
सब ओर पड़ीं-वह सूरज
नहीं उगा था वह पूरब में, वह
बरसा सहसा
बीचों-बीच नगर के:
काल-सूर्य के रथ के
पहियों के ज्यों अरे टूटकर
बिखर गए हों
दसों दिशा में।
कुछ क्षण का वह उदय-अस्त!
केवल एक प्रज्वलित क्षण की
दृश्य सोख लेने वाली एक दोपहरी।
फिर?
छायाएं मानव-जन की
नहीं मिटीं लंबी हो-हो कर:
मानव ही सब भाप हो गए।
छायाएं तो अभी लिखी हैं
झुलसे हुए पत्थरों पर
उजरी सड़कों की गच पर।
मानव का रचा हुआ सूरज
मानव को भाप बनाकर सोख गया।
पत्थर पर लिखी हुई यह
जली हुई छाया
मानव की साखी है।
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