अगर कोयले की आपूर्ति घटी तो कई राज्यों में दिखेगा बिजली संकट का असर

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द लीडर। विश्व में फैली कोरोना महामारी के बाद पटरी पर लौट रही भारत देश की अर्थव्यवस्था एक बार फिर से पटरी से उतर सकती है। देश में एक बार फिर से बिजली की कमी देखने को मिलेगी। अगर कोयले की आपूर्ति घटी तो कई राज्यों में बिजली संकट साफ तौर पर दिखाई देगा। घरेलू कोयला उत्पादन में ज्यादा वृद्धि नहीं हो रही है जबकि बिजली की मांग बढ़ने से कोयला आधारित बिजली संयंत्रों पर ज्यादा उत्पादन का दबाव है।

दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयला इतना महंगा हो चुका है कि, आयातित कोयले से बिजली बनाने वाले संयंत्रों ने तकरीबन आयात बंद कर दिया है। हालात की जानकारी केंद्रीय बिजली मंत्रालय को भी है।

बिजली मंत्री ने की कोयले की स्थिति समीक्षा

यही वजह है कि मंगलवार को बिजली मंत्री आरके सिंह ने आयातित कोयला आधारित संयंत्रों के साथ-साथ राज्यों की तरफ से आयात किए जाने वाले कोयले की स्थिति समीक्षा की।

उन्होंने घरेलू कोयले की दिक्कत को देखते हुए सभी ताप संयंत्रों को 10 प्रतिशत तक आयातित कोयला घरेलू कोयले में मिलाने का सुझाव दिया है, लेकिन जिस तरह से कोयला मंहगा हुआ है उसे देखते हुए इस सुझाव पर अमल होना असंभव दिख रहा है।


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कोयले की आपूर्ति घटकर 8.4 दिनों की रह गई

केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, एक अप्रैल 2022 को देश में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के पास बिजली बनाने के लिए 9.4 दिनों का कोयला था। 12 अप्रैल को इनके पास कोयले की आपूर्ति घटकर 8.4 दिनों रह गई है।

जबकि नियमानुसार इन संयंत्रों के पास 24 दिनों का स्टाक होना चाहिए। वैसे पिछले वर्ष के अक्टूबर-नवंबर, 2021 के मुकाबले कोयला आपूर्ति की स्थिति अभी अच्छी है लेकिन जिस तरह के संकेत बन रहे हैं वो चिंताजनक हैं।

इन राज्यों में कटने लगी है बिजली

गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, हरियाणा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों से आधिकारिक तौर पर की जाने वाली बिजली कटौती बढ़ने की खबरें आने लगी हैं। एक वजह यह है कि, भयंकर गर्मी से बिजली की मांग बढ़ने लगी है और दूसरी वजह यह है कि, आयातित कोयले पर आधारित निजी क्षेत्र की बिजली कंपनियों के संयंत्रों से उत्पादन का स्तर लगातार घट रहा है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमत कुछ समय पहले 400 डालर प्रति टन हो गई थी जो अब घटकर 300 डालर प्रति टन के स्तर पर है। दूसरी तरफ आयातित कोयले पर आधारित बिजली संयंत्रों का कहना है कि, 150 डालर प्रति टन से ज्यादा कीमत पर कोयला देश में लाकर बिजली बनाने का कोई फायदा नहीं है।

वजह यह है कि, पहले इन्हें घरेलू बाजार में 20 रुपये प्रति यूनिट की कीमत तक बिजली बेचने की इजाजत थी। लेकिन अप्रैल, 2022 के पहले हफ्ते में बिजली नियामक आयोग ने यह सीमा घटाकर 12 रुपये प्रति यूनिट कर दी है। देश में आयातित कोयले पर आधारित बिजली संयंत्रों की क्षमता 16,730 मेगावाट है।

कई बिजली संयंत्र कोयले की तंगी झेल रहे

भारत में आने वाले वक्त में अप्रत्याशित बिजली संकट खड़ा हो सकता है। भारत में 135 कोयले पर आधारित बिजली संयंत्र हैं जिनमें से आधे से अधिक कोयले की तंगी झेल रहे हैं क्योंकि कोयला भंडार में गंभीर कमी आ गई है। भारत में 70 फ़ीसदी से अधिक बिजली कोयले से उत्पादित होती है, ऐसे में ये चिंता का विषय है क्योंकि इससे महामारी के बाद पटरी पर लौट रही अर्थव्यवस्था फिर से पटरी से उतर सकती है।

जानिए ऐसा क्यों हो रहा है?

ये संकट कई महीनों से पैदा हो रहा है। कोविड महामारी की दूसरी लहर के बाद भारत की अर्थव्यवस्था में तेज़ी आई है और बिजली की मांग भी अचानक बढ़ी है। बीते दो महीनों में ही बिजली की ख़पत 2019 के मुकाबल में 17 प्रतिशत बढ़ गई है। इस बीच दुनियाभर में कोयले के दाम 40 फ़ीसदी तक बढ़े हैं जबकि भारत का कोयला आयात दो साल में सबसे निचले स्तर पर है।

भारत में यूं तो दुनिया में कोयले का चौथा सबसे बड़ा भंडार है, लेकिन ख़पत की वजह से भारत कोयला आयात करने में दुनिया में दूसरे नंबर पर है।


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