ताउम्र भेदभाव से लड़ने वाले आंबेडकर दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता कैसे बने

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Bhimrao Ramji Ambedkar
सुधीर कुमार

आज भीमराव आंबेडकर दुनिया के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं. भारत की जनता के बीच लोकप्रियता के मामले में वे महात्मा गांधी से बहुत आगे दिखाई देते हैं. भारत में दूरदराज तक के पिछड़े गाँवों तक में ऐसी कोई जगह मिलना असंभव है जहां आंबेडकर की गौरवशाली प्रतिमा न मिले. प्रायः ये मूर्तियाँ देश की वंचित, पिछड़ी आबादी द्वारा स्वयं के संसाधनों से स्थापित की गयी होती है.

इस मूर्ति में आंबेडकर संविधान की प्रति हाथ में थामे हुए होते हैं. सरकार द्वारा बनाए गए बुतों के मामले में भले ही गाँधी बाजी मारे हुए हों मगर जनता द्वारा स्थापित मूर्तियों में वे आंबेडकर के आगे कहीं नहीं टिकते. मूर्तियों की संख्या के मामले में भारत की कोई भी हस्ती आंबेडकर का मुकाबला नहीं कर सकती. इस देश में सबसे अधिक मूर्तियां जिस महापुरुष की हैं वे दलितों के मसीहा माने जाने वाले भीमराव रामजी आंबेडकर ही हैं. (Bhimrao Ramji Ambedkar )

दयालु सवर्ण अध्यापक का मिथ

14 अप्रैल 1891 के ब्रिटिश शासित हिंदुस्तान के एक निर्धन अछूत परिवार में जन्म लेने के बावजूद 32 विषयों में डिग्रियां हासिल करने के साथ-साथ 9 भाषाओँ का विद्वान होना आंबेडकर जैसी विलक्षण प्रतिभा के मेहनती शख्स के लिए ही संभव था. इसके बावजूद कि आंबेडकर गुलाम भारत के एक अछूत परिवार की चौदहवीं संतान थे.

प्रारंभिक शिक्षा तक हासिल करने के लिए उन्हें जिस तरह के सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा आज उसकी कल्पना तक करना संभव नहीं है. लेकिन वे आंबेडकर थे, विपरीत परिस्थितियों के बावजूद वे डिगे नहीं. आंबेडकर विदेश जाकर अर्थशास्त्र की डिग्री हासिल करने वाले पहले भारतीय हैं. वे अर्थशास्त्र और कानून के मर्मज्ञ और 21 धर्मों के गहरे जानकार हुए.

उनके इस गौरवशाली शैक्षिक सफर के पीछे उनके पिता रहे न कि कोई सवर्ण अध्यापक, जैसा कि स्थापित करने का प्रयास किया जाता है. उन्हें आंबेडकर नाम उनके गांव अम्बावाडेकर से मिला न कि किसी दयालु ब्राह्मण शिक्षक की बदौलत जैसा कि अब स्थापित करने के प्रयास किये जा  रहे हैं.

नागरिक अधिकारों के सतत योद्धा

आंबेडकर की दुर्लभ शैक्षिक योग्यताएं, ज्ञान, आजाद भारत की संविधान समिति का चैयरमैन और भारत का कानून मंत्री होना मात्र ही उन्हें महान नहीं बनाता. आंबेडकर महान इसलिए हैं कि वे भारत की बहुसंख्यक अछूत जातियों के दार्शनिक, राजनीतिज्ञ हैं. इसलिए भी कि वे सदियों से जानवरों से भी बदतर जिंदगी जीने के लिए अभिशप्त इन जातियों के नागरिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले सबसे बड़े योद्धा हैं.

आंबेडकर पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने अछूतों का दर्शन दिया उनका प्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिक विचार दिए. इन विचारों पर इंसान तक न समझे जाने वाले दलितों, वंचितों का आन्दोलन खड़ा हुआ. समान नागरिक अधिकारों वाले आधुनिक भारत का निर्माण भी उन्हीं के विचारों कि बदौलत संभव हो पाया.

विपरीत दौर की बेहद प्रतिकूल परिस्थितीयों में शैक्षिक योग्यताओं के नए मानदंड खड़े करने के बाद उन्होंने खुद का अकादमिक या राजनीतिक, प्रशासनिक कैरियर बनाकर व्यक्तिगत आजादी का रास्ता नहीं चुना. उन्होंने वंचितों की राजनीति पर अपना ध्यान केन्द्रित किया.

आजादी के आन्दोलन में दलितों, वंचितों के सवाल को प्रमुखता से उठाया. सार्वजनिक तालाबों से पेयजल प्राप्त करने का आन्दोलन हो, मनुस्मृति दहन या फिर मंदिर प्रवेश का आन्दोलन, आंबेडकर ने जान तक की परवाह न करते हुए सभी आंदोलनों की अगुवाई की.

आधुनिक भारत में राष्ट्र निर्माण के अगुआ

आंबेडकर ने राष्ट्र निर्माण की अवधारणा को आधुनिक स्वरूप प्रदान किया. दलितों के राजनीतिक अधिकारों और सामाजिक सशक्तिकरण की बात करने वाले आंबेडकर का सामाजिक एवं धार्मिक भेदभाव के उन्मूलन की बात करने वाले महात्मा गाँधी से गहरे राजनीतिक मतभेद थे. जब आंबेडकर के प्रयासों से 1932 में दलितों को पृथक मताधिकार का अधिकार मिला तो गाँधी ने खुलकर इसका विरोध किया. गाँधी की धमकियों के बाद पृथक मताधिकार की जगह संयुक्त मताधिकार में आरक्षण का प्रावधान किया गया.

वे गाँधी को महात्मा नहीं मानते थे 

आंबेडकर आधुनिक भारत के निर्माण के लिए हिन्दू धर्म की मूल मान्यताओं को ध्वस्त करने के हिमायती थे, वे हिन्दू धर्म में सुधार किये जाने के पक्षधर नहीं थे. 1935 उन्होंने घोषित किया कि ‘मैं हिन्दू पैदा हुआ और छुआछूत की मार झेलता रहा. में हिन्दू के रूप में नहीं मरूँगा.’ इस पर गाँधी ने तीखी प्रतिक्रिया दी. आंबेडकर आजादी के आन्दोलन के एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिनमें महात्मा गाँधी का राजनीतिक विरोध कर सकने का विवेक और साहस था. वे गाँधी को महात्मा नहीं माने थे, न ही उन्हें महात्मा संबोधित करते थे.

महिलाओं की बराबरी के स्वप्नदृष्टा 

ऐसा नहीं है कि आंबेडकर सिर्फ अछूत जातियों के ही हिमायती थे बल्कि वे समान नागरिक अधिकारों के प्रबल पक्षधर थे. 1951 में हिन्दू कोड बिल का मसविदा रोके जाने को लेकर उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा भी दिया. यह बिल भारतीय महिलाओं को कई नागरिक अधिकार प्रदान करता था.

इस मसौदे में महिला उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक बराबरी की मांग की गयी थी. प्रधानमंत्री नेहरू, कैबिनेट और कुछ अन्य कांग्रेसी नेताओं ने इस मसौदे का समर्थन किया पर राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद एवं बल्लभभाई पटेल सांसदों की बहुसंख्य इसके खिलाफ़ खड़ी रही. इस तरह भारतीय महिलाओं के लिए बराबरी के नागरिक अधिकारों की अलख जगाने वाले वे पहले व्यक्ति थे.

हिन्दुत्ववादियों की आंख में खटकते योद्धा

आंबेडकर का नायकत्व एक अलग स्तर पर दिखाई देता है. वे दलितों, वंचितों के लिए मसीहा जैसे हैं, उन्हें इंसानी पहचान दिलाने वाले योद्धा. हिंदुत्ववादियों को वे हमेशा से ही अस्वीकार्य रहे. 2014 के बाद भारत के राजनीतिक परिदृश्य में आंबेडकर और भी ज्यादा प्रासंगिक हो चले हैं.

इस दौरान हिंदुत्व की राजनीति की झंडाबरदारी करने वाले राजनीतिक दलों के निशाने पर आंबेडकर ही रहे. देश के विभिन्न इलाकों में उनकी मूर्तियों को खंडित किया गया. हिंदुत्ववादियों हमेशा से ही आंबेडकर की मूर्तियों को जूते-चप्पलों की माला पहनाकर अपना विरोध व्यक्त करते रहे हैं, लेकिन इस दौरान यह विरोध चरम पर जा पहुंचा है.

हिन्दू धर्म मुस्लिमों, अल्पसंख्यकों के लिए बाद में घातक होगा पहले वह निचली समझी जाने वाली जातियों का विरोधी है. आंबेडकर दलितों, वंचितों के प्रतिनिधि तो हैं ही वे हिंदुत्व के सबसे बड़े तार्किक विरोधी भी हैं. वे दलितों, वंचितों को हिन्दुत्ववादियों के हाथों इस्तेमाल होने से बचाते हैं. इसलिए वे हिन्दुत्ववादियों को खटकते हैं.

आंबेडकर सदियों से मनुष्य न समझे जाने वाली देश की दलित, वंचित आबादी के योद्धा रहे और आज भी इस लड़ाई के पथप्रदर्शक बने हुए हैं. आंबेडकर भारत के बहुसंख्यक हिन्दू धर्म के घोर विरोधी रहे और उन्होंने एक हिन्दू के रूप में मरना नहीं चुना. लिहाजा वे हिन्दू धर्म के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं. इसलिए वे हमेशा हिन्दुत्ववादियों के निशाने पर रहे भी और हैं.

भीमराव रामजी आंबेडकर (14 अप्रैल 1891 – 6 दिसंबर 1956)

 

(लेखकर स्वतंत्र पत्रकार व दलित मामलों के जानकार हैं)

 

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