द लीडर : हिंदू संस्कृति और सभ्यता में गंगाजल का काफी महत्व है. मरणासन्न व्यक्ति के मुंह में गंगाजल डालकर उसके मोक्ष की कामना की जाती है. इसलिए गंगा में शव बहाकर गंगाजल को दूषित करने वाली कुरीतियों को दूर करने की जरूरत है. इसके लिए हमें समाज को जागरुक बनाना होगा. राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के निवर्तमान अध्यक्ष और सुप्रीमकोर्ट के रिटायर जस्टिस स्वतंत्र कुमार ने बरेली कॉलेज के छात्रों के एक सवाल के जवाब में ये बातें कहीं.
बरेली कॉलेज की राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई-प्रथम और उद्भव वेलफेयर सोसायटी ने पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर शुक्रवार को एक वर्चुलल संगोष्ठी की. स्वस्थ पर्यावरण, स्वस्थ समाज विषय पर आयोजित संगोष्ठी के मुख्य अतिथि जस्टिस स्वतंत्र कुमार रहे. इसमें एक छात्र ने जस्टिस कुमार से प्रश्न किया कि वर्तमान माहौल में मोक्षदायिनी गंगा नदी में पाए जाने वाले शवों को रोकने के लिए किया क्या जाना चाहिए? इसी पर उन्होंने उपरोक्त जवाब दिया.
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जस्टिस स्वतंत्र कुमार ने कहा कि प्रकृति को अपने वजूद के लिए इंसानों की जरूरत नहीं है. बल्कि धरती पर अपनी उत्पत्ति बनाए रखने के लिए मनुष्यों को शुद्ध हवा-पानी और पर्यावरण की बेहद जरूरत है. इसीलिए हमारे पूर्वज न सिर्फ प्रकृति को पूजते थे, इसके सरंक्षण को दृढ़ संकल्पित भी थे. यहां तक कि प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वालों का सामाजिक बहिष्कार तक कर दिया जाता था.
भारतीय संविधान की रौशनी में छात्रों को समझाते हुए कहा कि हर नागरिक कर्तव्य भी वर्णित हैं. इनका निर्वहन करते हुए हमें प्राकृतिक स्रोत, नदी-तालाब, वृक्षों का संरक्षण करना है. अनुच्छेद 21 में स्पष्ट है कि नागरिकों को अपने मूल अधिकारों में प्रकृति का संरक्षण भी करना चाहिए.
उन्होंने कहा कि स्वच्छ पर्यावरण के लिए केवल शारीरिक श्रम-प्रयास भर काफी नहीं है. कानूनी पहलुओं की जानकारी भी आवश्यक है. केवल सरकारों को कोसने भर से पर्यावरण सुरक्षित नहीं होगा. हम सभी को व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास करने होंगे.
एनएसएस, यूपी-उत्तराखंड के क्षेत्रीय निदेशक डा. अजय कुमार श्रोत्रीय ने अपने संबोधन में कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के लिहाज से भारत सबसे अमीर देश है. लेकिन पर्यावरण संरक्षण के लिए हमारे नागरिक बौद्धिक रूप से बेहद गरीब हैं. आज एनएसएस क्लबों, संस्थाओं, युवक मंगल दल, सोसायटी के साथ तालमेल बनाकर सामाजिक समस्याओं के प्रयास में जुटा है. जिसमें सफलता भी मिल रही
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विशिष्ट अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय से प्रोफेसर डा. सुनीता जेटली ने कहा कि पर्यावरण को संरक्षित करने में छात्रों का अहम योगदान है. इसलिए ऐसे सभी छात्र जो किसी ना किसी प्रकार से पर्यावरण को संरक्षित कर रहे हैं. संस्थानों को उनके शुल्क माफ करने या छूट देनी चाहिए. इससे छात्र प्रोत्साहित होकर और अच्छा काम करेंगे. डीयू के जागरुकता कार्यक्रमों को भी साझा किया. और ईको क्रेडिट स्कीम का सुझाव दिया.
एमजेपी रुहेलखंड यूनिवर्सिटी, जिससे बरेली कॉलेज संबदद्ध है-के एनएसएस समन्वयक डॉ. सोमपाल सिंह ने कहा हम सभी को पर्यावरण संरक्षण के लिए स्थाई कदम उठाने चाहिए. जिससे कि हमारा प्रयास परिणाम को भी प्रदर्शित करे. मुख्य वक्ता बाबा साहब भीमराव आंबेडकर यूनिवर्सिटी लखनऊ के प्रोफेसर व पर्यावरणविद जीवन सिंह ने अपशिष्ट पदार्थों से जैविक उर्वरक बनाकर पर्यावरण संरक्षित करने की प्रक्रिया साझा की.
संचालन योगेश गंगवार ने किया. बरेली कॉलेज एनएसएस-प्रथम इकाई के प्रभारी और वनस्पति शास्त्र के प्राध्यापक डॉ. राजीव यादव ने अतिथियों का धन्यवाद किया. इस दौरान शिवम दिवाकर, नैतिक सक्सेना, वैभव गुप्ता, पुनीत यादव, जयप्रकाश, जितिन गौड़, अनिल गंगवार आदि स्वयंसेवक मौजूद रहे.