द लीडर : बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव… एक ऐसा चेहरा जिसने हमेशा दबे-कुचले लोगों की आवाज उठाई. लोकतंत्र को बचाने के लिए तानाशाही तंत्र के सामने कभी घुटने नहीं टेके. जेपी (जय प्रकाश नारायण) आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई.
उनकी अगुवाई में जेपी आंदोलन बिहार से निकलकर पूरे देश में फैल गया. जिससे देश की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हुआ. जब केंद्र में जनता दल के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी और आइके गुजराल को प्रधानमंत्री चुना गया, तब लालू प्रसाद को अध्यक्ष बनाकर पार्टी की कमान सौंपी गई थी.
मगर जब लालू यादव को अध्यक्ष पद से हटाने के लिए शरद यादव ने रंजन यादव के साथ मिलकर रणनीति बनानी शुरू कर दी तो इसकी भनक लगने पर उन्होंने पांच जुलाई 1997 को अलग नई पार्टी राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया. इससे बिहार की राजनीति भी दो धड़ों में बंट गई.
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लालू यादव की राजनीति में एंट्री
लालू प्रसाद यादव पटना यूनिवर्सिटी से एलएलबी करते समय छात्र राजनीति में सक्रिय हो गए थे. वर्ष 1974 में जब बिहार आंदोलन शुरू हुआ तो वे पटना यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन (पुसू) के छात्रसंघ अध्यक्ष चुने गए. उन्हें पटना यूनिवर्सिटी में हुए एक सम्मेलन में बिहार के विभिन्न छात्र संगठनों ने बिहार छात्र संघर्ष समिति का अध्यक्ष भी चुना.

लालू के नेतृत्व में छात्र संघर्ष समिति जेपी आंदोलन से जुड़ी और देखते ही देखते आंदोलन बिहार से निकलकर पूरे देश में फैल गया. जिससे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की दिल्ली में कुर्सी तक हिलने लगी. उस वक्त शरद यादव सांसद थे, लेकिन जय प्रकाश नारायण से प्रभावित होकर आंदोलन में कूद पड़े.
25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी लगी तो आंदोलन से जुड़े नेताओं को जेल भेज दिया गया. 1977 में आपातकाल के बाद जनता पार्टी के टिकट पर लालू प्रसाद यादव ने लोकसभा चुनाव लड़ा और छपरा सीट से जीत हासिल मुख्यधारा की राजनीति में एंट्री ली.
जब किंग मेकर कहे जाने लगे लालू
दिग्गज नेता चंद्रशेखर, देवीलाल और मुलायम सिंह के जनता दल से अलग होने के बाद लालू यादव अकेले बचे थे. उनके नेतृत्व में जनता दल गठबंधन ने 1991 का लोकसभा चुनाव चुनाव लड़ा. और संयुक्त बिहार की 54 में से 48 सीटों पर जीत हासिल की. जबकि अन्य राज्य में जनता दल का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा.
इससे उनके राजनीतिक जीवन में नया मोड़ आया और वे केंद्र की राजनीति में मजबूत नेता बनकर उभरे. प्रधानमंत्री पद के लिए देवगोड़ा हो या गुजराल, उनकी दावेदारी पक्का करने में लालू की भूमिका अहम थी. इसलिए लालू को किंग मेकर भी कहे जाने लगे.
लालू का कद घटाने की होने लगी थी रणनीति
1991 के लोकसभा चुनाव के बाद जनता दल में लालू का कद काफी बढ़ चुका था. शरद यादव और रंजन यादव इसे लेकर खासा चिंतित थे. जनता दल में संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई तो शरद यादव ने दूसरे प्रदेशों के अपने वफादारों को कार्यकारिणी में जोड़ लिया.
शरद और रंजन चुनाव में लालू को अध्यक्ष पद से हटाने की तैयारी में थे. जब इसकी जानकारी लालू को हुई तो उन्होंने जनता दल के 46 में से अपने खास 21 सांसदों को साथ लेकर नई पार्टी बनाने के बारे में सोचा. आखिरकार 5 जुलाई 1997 को दिल्ली के बिहार निवास में राजद का गठन हुआ और लालू को सर्वसम्मति से इसका नेता चुना गया.

आडवाणी की रथयात्रा रोकने पर मच गया था सियासी भूचाल
1990 में भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी रथयात्रा लेकर पूरे भारत में निकले थे, लेकिन बिहार के समस्तीपुर जिले में उनकी रथयात्रा को रोक लिया गया था. जिससे देश की राजनीति में भूचाल मच गया था. लालू यादव उस वक्त बिहार के मुख्यमंत्री थे.