फ़ाज़िल-ए-बरेलवी आला हज़रत के पीर घराने मारहरा का दिमाग़ को झकझोरने वाला सफ़र

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वसीम अख़्तर


द लीडर. प्रोफेसर सय्यद मुहम्मद अमीन मियां ( अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उर्दू विभाग के सदर बने), सय्यद मुहम्मद अशरफ़ मियां (रिटायर चीफ इंकम टैक्स कमिश्नर) और मरहूम सय्यद मुहम्मद अफ़ज़ल मियां (एडीशनल डायरेक्टर जनरल आफ पुलिस) तीनों नाम ज़हन को झकझोरते हैं. ये ख़ानक़ाह नूरिया बरकातिया के साहबज़दगान हैं. इन्होंने दीन की सरज़मीन मारहरा से निकलकर दुनियावी तालीम का आसमान छुआ. आख़िर यह कैसे मुमकिन हुआ, यह जानने की दिलचस्पी फ़ाजिल-ए-बरेलवी इमाम अहमद रज़ा ख़ां के दो अक्टूबर से शुरू हो रहे तीन रोज़ा उर्स से पहले हमें जिला एटा में स्थित मारहरा ले गई.

मारहरा की सरज़मीन पर क़दम रखते ही हमें कुछ अलग सा अहसास होना शुरू हो गया. लोगों का लहजा नर्म मिला, जो अख़लाक़ी क़द्रों की बानगी पेश कर रहा था. फूल वाले भी ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ देने के बजाय ख़ामोश रहकर नसीब की रोज़ी के हामी दिखे. अमूमन दरगाह या किसी ख़ानक़ाह में दाख़िल होने से पहले वाले माहौल से यह नज़ारा जुदा था. ख़ानक़ाह नूरिया बरकातिया में क़दम रखते ही वजूद को रुहानियत की ताज़ा हवा के झोंके महसूस होने लगे. ख़ामोशी अपनी तरफ खींचने लगी. मानो दिलो-दिमाग़ के लिए सुकून की तलाश पूरी हो गई हो.

ख़ानक़ाही एतबार से एक ही जगह सात क़ुतुब का आराम फरमाना अक़ीदत व एहतराम के कुछ ऐसे ही मंज़र का पेशखेमा होना चाहिए था, जो द लीडर की टीम को दिखाई भी देने लगा. ख़ानक़ाह से निकलकर जब चीफ इंकम टैक्स कमिश्नर से रिटायर होने वाले आइआरएस सय्यद मुहम्मद अशरफ़ मियां से मिले तो मेहमाननवाज़ी के क़ायल हुए बगैर नहीं रह पाए. वह बातचीत के लिए हमें मेहमानखाने से उठाकर घर के अंदर वाले हिस्से में ले गए. एक घंटे की गुफ्तगू में साफ हो गया कि आख़िरकार ख़ानक़ाह नूरिया बरकातिया का नाम दीनी गलियारों के साथ प्रशासनिक हलकों में क्यों इज़्ज़त-ओ-एहतराम से लिया जाता है.

अशरफ मियां ने बता दिया कि किस तरह दीनी और दुनियावी तालीम का तालमेल बैठा और प्रोफेसर अमीन मियां से शुरू होकर तरक़्क़ी का सफर अब भी जारी और तारी है. अमीन मियां एएमयू में पढ़ाने के साथ ख़ानक़ाह के सज्जादा की ज़िम्मेदारी भी पूरी कर रहे हैं. छोटे भाई नजीब मियां सीबीएससी से एफीलेटेड हाई स्कूल को अब इंटर में तब्दील करना चाहते हैं. ख़ुद अशरफ मियां अलबरकात के नाम से अलीगढ़ में बड़ा इंस्टीट्यूट चला रहे हैं.

अशरफ़ मियां ने द लीडर के साथ इंटरव्यू में दुनियावी एतबार से तरक़्क़ी का फलसफा पेश किया. बताया कि किस तरह उनके वालिद हज़रत अहसनुल उलमा ने चारों साहबज़दगान से कहा-कुछ भी नहीं करोगे तो लोगों के नज़राने की बदौलत ज़िंदगीभर दाल-रोटी चलती रहेगी लेकिन हम चाहते हैं कि पढ़-लिखकर पैरों पर खड़े हो, अपने साथ दूसरों का भी भला करो. दुनियावी तालीम को लेकर ख़ानक़ाह नूरिया बरकातिया और दूसरी दरगाहों-ख़ानक़ाहों की सोच क्या है, यह भी साफ किया.


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साथ में अशरफ़ मियां ने यह भी बता दिया कि अल्लाह के रसूल का तालीम को लेकर फरमान क्या है. उसका उलमा ने ग़लत मतलब निकाला. अशरफ़ मियां गुस्से में यहां तक कह जाते हैं कि कुछ उलमा ने माड्रन तालीम को गाली बना दिया. इसी सोच से मुसलमान माड्रन तालीम के मैदान में पिछड़े लेकिन अब अल्लाह का शुक्र है, तस्वीर तेज़ी के साथ बदल रही है. अशरफ़ मियां का यह इंटरव्यू सभी को ज़रूर सुनना चाहिए. ख़ासतौर से यूपीएससी की तैयारी करने वाले नौजवानों को उनकी सीख और सुझावों पर अमल करना चाहिए.

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