द लीडर हिंदी, नई दिल्ली। कोरोना वायरस के डेल्टा प्लस वेरिएंट को लेकर इस समय पूरी दुनिया में खौफ फैला हुआ है. यह वेरिएंट फेफड़ों की कोशिकाओं के रिसेप्टर पर बाकी वेरिएंट की तुलना में ज्याद तेजी से चिपकता है. लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं कि, इससे बीमारी के लक्षण गंभीर होंगे या ये ज्यादा संक्रामक होगा.
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11 जून को हुई डेल्टा प्लस वेरिएंट की पहचान
नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑफ इम्यूनाइजेशन इन इंडिया (NTAGI) के प्रमुख डॉ. एनके अरोड़ा ने खुद इस बात की जानकारी दी है. कोरोना वायरस के नए डेल्टा प्लस वेरिएंट की पहचान 11 जून को हुई थी और अब इसे ‘वेरिएंट ऑफ कन्सर्न’ के रूप में लिस्टेड कर दिया गया है.
डेल्टा वेरिएंट की चपेट में 12 राज्य
भारत के 12 राज्य अब डेल्टा वेरिएंट की चपेट में हैं और यहां कुल मिलाकर 51 मामले सामने आ चुके हैं. डेल्टा प्लस वेरिएंट के सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में देखने को मिले हैं.
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NTAGI के चेयरमैन ने कहा कि, डेल्टा प्लस वेरिएंट अन्य स्ट्रेन्स के मुकाबले फेफड़ों की कोशिकाओं से जल्दी जुड़ जाता है. ये फेफड़ों की म्यूकस लाइनिंग के साथ जल्दी कनेक्ट हो जाता है. लेकिन इसका ये अर्थ निकालना ठीक नहीं कि, ये वेरिएंट ज्यादा संक्रामक और बीमारी को एक घातक रूप देने वाला है.
डॉ. अरोड़ा ने कहा कि, डेल्टा प्लस वेरिएंट के बारे में स्पष्ट रूप से तभी कहा जा सकता है जब कुछ और मामलों की पुष्टि हो जाए. हालांकि मौजूदा मामलों को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि, वैक्सीन के सिंगल या डबल डोज ले चुके लोगों में इसका संक्रमण हल्का ही रहता है.
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उन्होंने कहा कि, हमें इसके ट्रांसमिशन पर नजर रखनी होगी ताकि इससे फैल रहे इंफेक्शन का पता चल सके.
डॉ. अरोड़ा ने कहा कि, डेल्टा प्लस वेरिएंट के मामलों की संख्या दर्ज किए गए मामलों से ज्यादा हो सकती है, क्योंकि इसकी चपेट में आनी वाले कई लोग एसिम्प्टोमैटिक भी हो सकते हैं. ऐसे मरीजों में कोरोना के लक्षण भले ही न दिख रहे हों, लेकिन वो संक्रमण को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं.
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उन्होंने कहा कि, ये महत्वपूर्ण है कि, जीनोमिक को लेकर हमारा काम काफी तेज हुआ है और हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. राज्यों को पहले सूचित कर दिया गया है कि ये एक चिंताजनक वेरिएंट है और हमें तैयार रहने की जरूरत है. कई राज्यों ने तो उन जिलों में इसे लेकर योजनाएं बनानी भी शुरू कर दी हैं जहां इस वेरिएंट की पहचान की गई है.
डॉ. अरोड़ा ने कहा कि, महामारी की लहरें नए वेरिएंट और नए म्यूटेशन से जुड़ी होती हैं. चूंकि ये एक नया वेरिएंट है तो इसकी संभावनाएं हो सकती हैं. हालांकि ये वेरिएंट तीसरी लहर का कारण बनेगा, ये तीन-चार चीजों पर निर्भर करता है.
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पहली बात ये कि, पिछले तीन महीनों से हम कोरोना की दूसरी लहर का सामना कर रहे हैं जो कि, अभी भी जारी है. पिछले 8-10 दिनों से इन मामलों की संख्या 50,000 पर अटकी हुई है. कुछ जगहों पर तो मामले लगातार सामने आ रहे हैं. यानी अभी तक दूसरी लहर का प्रभाव पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है.
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उन्होंने कहा कि, तीसरी लहर इस बात पर निर्भर करेगी कि, दूसरी लहर में जनसंख्या का कितना अनुपात संक्रमित हुआ. अगर लोग बड़ी संख्या में संक्रमित हुए हैं तो अगली लहर में उन्हें सिर्फ सर्दी-जुकाम जैसे लक्षण ही महसूस हो सकते हैं. शायद बीमारी का घातक रूप हमें न देखने को मिले.
लोगों को वैक्सीनेट करना जरूरी
दूसरा, लोगों को तेजी से वैक्सीनेट करना भी जरूरी हो गया है. फिर चाहे उन्हें सिंगल डोज ही क्यों न मिले. अगर हम जल्दी इम्यूनाइज होंगे तो संभव है कि तीसरी लहर से नुकसान भी कम ही होगा. अगर हम आने वाली लहर को शांत रखेंगे तो हमें पहले आ चुकी दो लहरों जितना नुकसान नहीं होगा.
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