सऊदी अरब में दशकों से चली आ रही परंपरा टूट गई। अब यहां पांचों नमाज़ के वक़्त दुकानें और प्रतिष्ठान खुले रहेंगे। अब तक यही होता था कि नमाज़ के लिए अज़ान सुनते ही कारों की कतार लग जाती थी और ग्राहक मस्जिद की ओर दौड़ पड़ते थे।
अरबी मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, सऊदी अरब प्रशासनिक इकाई ने घोषणा की है कि अब नमाज़ के समय दुकानें और व्यवसाय खुले रहेंगे। इस सिलसिले में सऊदी चैंबर्स के प्रमुख ने शुक्रवार को सर्कुलर जारी कर दिया।
सऊदी चैंबर्स के प्रमुख अजलान बिन अब्दुल अजीज अल-अजलान ने सर्कुलर में कहा है कि यह फैसला सऊदी अरब में खरीदारी के तजुर्बे को बेहतर बनाने की कोशिश है।
इस मामले पर मध्य पूर्व की राजनीति और अर्थशास्त्र के लेखक और टिप्पणीकार अली समीर शिहाबी ने कहा कि कर्मचारियों ने नमाज के समय प्रतिष्ठान बंद होने का फायदा उठाया और ज्यादा समय तक ब्रेक लिया जिससे ग्राहकों को घंटों इंतजार करना पड़ा।
यहां यह गाैर करने लायक बात है कि पूरी दुनिया में कर्मचारियों की सहूलियतों में कटौती हो रही है। भारत में नए लेबर कोड लागू होने से पहले ही कई राज्यों में 12 घंंटे काम कराने का अध्यादेश लाया गया। लॉकडाउन में भी कर्मचारियों को जोखिम भरी सेवाओं के लिए मजबूर किया गया या उन्हें काम से निकाल दिया गया। विश्व श्रम संगठन की रिपोर्ट है कि पूरी दुनिया में करोड़ों लोग बेरोजगारी की चपेट में आ गए हैं और जो काम पर बचे हैं, उनका वर्कलोड खासा बढ़ गया है और वेतन में कमी आई है।
महामारी ने जहां कर्मचारियों को दिक्कत में डाला है, वहीं व्यापारी वर्ग भी आमदनी का प्रतिशत कम होने से परेशान है। तमाम प्रतिष्ठान इस दौरान तबाह हो गए, जबकि कई बड़े प्रतिष्ठान या कंपनियों ने उनके कारोबार को खरीदकर अपनी पूंजी बेतहाशा बढ़ा ली।
व्यापार का दबाव इस कदर है कि राजनीति में तो धर्म का प्रतिशत बढ़ रहा है, जबकि व्यापार में धार्मिक बाधाओं को तोड़ा जा रहा है। सऊदी अरब की इस घटना के अलावा यूएई समेत कई खाड़ी देशों की इजराइल से नजदीकी और इजराइल का उइगर मुसलमानों के लिए हमदर्दी इसकी ताजा मिसाल हैं।