गिरीश मालवीय
पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कल राज्यसभा में साफ शब्दों में कहा है कि सरकार कीमत पर काबू करने के लिए कुछ नहीं कर सकती है। इसके लिए कच्चे तेल के दामों को लेकर यह मजबूरी जताई गई है। मौजूदा सरकार के समय और पिछली यूपीए सरकार के कार्यकाल में तेल की कीमतों में उतार चढ़ाव का तुलनात्मक अध्ययन करने की जरूरत है, जिससे वास्तविकता को समझा जा सके।
आज कच्चा तेल ब्रेंट क्रूड 63.57 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है और दिल्ली में पेट्रोल का रेट 89 रुपये प्रति लीटर है। अब जरा यूपीए के दौर पर नजर डालिए। यूपीए के दूसरे कार्यकाल में 2009 से लेकर मई 2014 तक क्रूड की कीमत 70 से लेकर 110 डॉलर प्रति बैरल तक थी, जबकि इस बीच पेट्रोल की कीमत 55 से 80 रुपए के बीच झूलती रही।
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साल 2014 की शुरुआत में ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत 115 डॉलर प्रति बैरल हो गई थी तब पेट्रोल की कीमत 82 रुपए प्रति लीटर हो गई और देश में हाहाकार मच गया था।
यानी कच्चे तेल की कीमत तब भी आज से लगभग दुगुनी थी, इसके बावजूद पेट्रोल की कीमत 82 रुपए लीटर थी। जबकि आज 2014 की तुलना में कच्चे तेल की कीमत लगभग आधी है और पेट्रोल की कीमत 89 रुपए लीटर है।
मई 2014 में सत्ता में आने से पहले भाजपा अंतरराष्ट्रीय कीमतों के अनुपात में तेल की कीमतों में हो रही बढ़ोत्तरी को लेकर यूपीए सरकार के खिलाफ सख्त रुख अपनाए हुए थी। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तब अपनी चुनावी रैलियों में ईंधन की बढ़ती कीमतों को लेकर यूपीए की कड़ी आलोचना कर रहे थे। भाजपा के शीर्ष नेता संसद के सामने पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों के खिलाफ गा-बजाकर प्रदर्शन करते दिखाई देते थे।
मई 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने सरकार बनाई। कुछ दिनों में फिर कच्चे तेल का बाज़ार पलटने लगा।
जनवरी 2016 तक कच्चे तेल के दाम 34 डॉलर प्रति बैरल तक लुढ़क गए। मोदी सरकार ने कच्चे तेल की गिरावट के दौरान पेट्रोल-डीज़ल पर 9 बार उत्पाद कर (एक्साइज़ ड्यूटी) बढ़ाया।
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नवंबर 2014 से जनवरी 2016 के बीच पेट्रोल पर ये बढ़ोतरी 11 रुपये 77 पैसे और डीज़ल पर 13 रुपये 47 पैसे थे। इस तरह पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री से केंद्र सरकार को मिलने वाला राजस्व लगभग तीन गुना हो गया
जून 2017 में मोदी सरकार ने एक नया फार्मूला लागू किया। अब कहा गया कि अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतों में रोज बदलाव के तर्क के आधार पर पेट्रोल-डीजल के दाम बदले जाएंगे। इससे पहले कच्चे तेल के 15 दिनों के औसत मूल्यों के आधार पर पेट्रोल डीजल के दाम तय किए जाते थे। नए निर्णय के बाद कहा गया कि यदि क्रूड गिरेगा तो कीमत घटेगी ओर बढ़ेगा तो बढ़ेगी!
पिछले 4 सालों का इतिहास गवाह है कि देश की जनता को एक बार भी कच्चे तेल की गिरी हुई कीमत से उपलब्ध लाभ लेने नहीं दिया गया, बल्कि हर बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर खजाना भरा गया। कोरोनाकाल की शुरुआत में तो अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल यानी ब्रेंट क्रूड की कीमत 14.25 डॉलर प्रति बैरल गिर गई। तब भी किसी तरह का लाभ भारत की जनता को नहीं दिया गया।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं व आर्थिक मामलों के जानकार हैं, यह उनके निजी विचार है)