द लीडर हिंदी, पटना। राजनीति में कब कौन दोस्त बन जाए और कौन दुश्मन, इसकी बानगी लोक जनशक्ति पार्टी का नया सियासी विवाद साफ जाहिर कर रहा है. चाचा पशुपति और भतीजे चिराग पासवान के बीच की राजनीतिक लड़ाई पहले जुबानी तल्खी पर पहुंची, फिर पार्टी टूटी और अब यह संविधान और कानून की दहलीज पर पहुंच चुकी है.
20 जून को लोजपा राष्ट्रीय कारिणी की बैठक
रविवार यानी 20 जून को लोजपा राष्ट्रीय कारिणी की बैठक होने वाली है और यह तय करेगा कि आखिर लोजपा किसकी है. हालांकि सबके बीच सबकी नजर इस बात पर भी टिकी हुई है कि, चुनाव आयोग इस मामले पर क्या फैसला करता है.
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इस बीच जो खबर सामने आ रही है इसके अनुसार, पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्यों की सूची भी महत्वपूर्ण रोल में सामने आ गई है, जो चुनाव आयोग से लेकर न्यायालय तक पारस गुट और चिराग गुट के लिए बेहद अहम साक्ष्य साबित होगा.
पारस गुट ने नहीं सौंपी सूची
दूसरा बड़ा तथ्य यह भी है कि लोजपा मे दो वर्षों से राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सूची अपडेट नहीं हुई है. ऐसे में यह मामला थोड़ा उलझा हुआ भी प्रतीत हो रहा है. इसी क्रम में बीता शुक्रवार का दिन भी बेहद महत्वपूर्ण था. दरअसल चिराग पासवान गुट की ओर से चुनाव आयोग के पास अपना पक्ष रखा गया.
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वहां चिराग गुट ने पशुपति पारस को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित किए जाने को असंवैधानिक बताया. इस दौरान चिराग गुट ने 77 सदस्यों के नाम आयोग को सौंप भी दिए. हालांकि पारस गुट ने चुनाव आयोग को कार्यसमिति की सूची अब तक नहीं सौंपी है.
पटना में बुलाई गई बैठक पूरी तरह से असंवैधानिक
चिराग पासवान ने चुनाव आयोग से साफ कहा कि, पशुपति नाथ पारस को पार्टी अध्यक्ष बनाने के लिए पटना में बुलाई गई बैठक पूरी तरह से असंवैधानिक थी. इसमें राष्ट्रीय कार्यकारी के सदस्यों की उपस्थिति ना के बराबर थी. केवल नौ सदस्यों ने पारस को पार्टी का अध्यक्ष चुना.
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उन्होंने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर पार्टी के चुनाव चिह्न और झंडे के इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग की है.अब चिराग ने रविवार को दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई हैं. माना यह भी जा रहा है कि इस बैठक में वो बड़ा बदलाव कर सकते हैं.
5 सांसदों ने पारस को माना अध्यक्ष
आपको यह भी बता दें कि लोजपा में पशुपति पारस और भतीजे चिराग पासवान के बीच पार्टी पर कब्जे को लेकर संघर्ष जारी है. पशुपति पारस बृहस्पतिवार को पार्टी के नए अध्यक्ष चुन लिए गए हैं. उनके साथ पार्टी के छह में से पांच लोकसभा सदस्य हैं.
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इन सदस्यों में चंदन सिंह, सूरजभान सिंह, महबूब अली कैसर, प्रिंस राज और वीणा देवी शामिल हैं. ऐसे में पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान अलग-थलग पड़ गए हैं. पारस को लोकसभा में लोजपा संसदीय दल का नेता नियुक्त किया गया है.
लोकसभा स्पीकर ने कही यह बात
बता दें कि, इस मामले में लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला की भी प्रतिक्रिया आई थी. उन्होंने संसद के मानसून सत्र के पूर्व कहा है कि लोजपा में जारी विवाद से हमारा कोई वास्ता नहीं है. एक दन पहले ही उन्होंने कहा कि हम यह नहीं देखते कि पार्टी का अध्यक्ष कौन है.
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वे लोजपा के साथ हैं. हम तब तक कार्रवाई नहीं कर सकते जब तक कि दलबदल विरोधी कानून के तहत एक याचिका प्राप्त नहीं हो जाती है और इसका निपटारा नहीं हो जाता है.
अब सबकी नजरें चुनाव आयोग पर
बहरहाल इस बीच खुद के अध्यक्ष चुने जाने के बाद पशुपति पारस शुक्रवार को ही दिल्ली पहुंच चुके हैं. उन्होंने दावा करते हुए कहा कि वे जल्द ही अपनी कार्यसमिति की सूची आयोग को सौंपेगे. साथ ही उन्होंने कहा कि फिलहाल राष्ट्रीय अध्यक्ष का नियुक्ति पत्र और पार्टी संविधान की प्रति आयोग को सौंपी है.
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इस बाबत चिराग ने आयोग से आग्रह किया कि, LJP संवैधानिक रुप से उनकी पार्टी है. बहरहाल अब रविवार को एक तरफ चिराग गुट के राष्ट्रीय कारिणी की बैठक के बीच अब दोनों गुटों की नजरें चुनाव आयोग के फैसले पर टिकी हैं कि आखिर आयोग क्या फैसला लेता है.