चौधरी चरण सिंह को यूं ही नहीं कहा जाता किसानों का मसीहा, पढ़िए यह किस्सा

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-चौधरी चरण सिंह जयंती-


किसानों की खुशहाली के नाम पर फर्जीवाड़ा करने वाले नेताओं के लिए पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जैसा बनना असंभव है। उस दौर में जब किसानों को कारों से कुचलकर मार दिया जा रहा हो, तब चौधरी चरण सिंह की याद आना स्वाभाविक ही है। यही वजह है कि सालभर दिल्ली बॉर्डर पर चले आंदोलन में चौधरी चरण सिंह का नाम भी प्रेरणा बना रहा। (Chaudhary Charan Singh)

आज से लगभग 42 साल पहले की बात है। सन 1979 में यूपी के इटावा जिले के ऊसराहार थाने में शाम को परेशान सा दिखने वाला किसान घुसा। उसने संकोच में इधर-उधर देखा और हेड कांस्‍टेबल के पास जाकर खड़ा हो गया।

अपनी कुर्सी पर उंघते हुए हेड कांस्‍टेबल ने सिर उठाकर देखा। सामने एक दुबला पतला ग्रामीण खड़ा था… मैला कुर्ता, पछांह स्‍टाइल में बंधी धोती और नंगे पैर। मन ही मन खीझते हुए कांस्‍टेबल बोला- हां, क्‍या काम है?

सामने खड़ा फरियादी किसान बोला तो उसकी भाषा हेड कांस्‍टेबल को समझ नहीं आई। उसने दोबारा पूछा, ‘अरे हुआ क्‍या?’ इस बार उस किसान ने बताया कि वह मेरठ से अपने रिश्‍तेदार के घर आया था, यहां से बैल खरीदने। लेकिन राह में किसी ग‍िरहकट ने उसकी जेब काट ली और पैसे चुरा लिए। लिहाजा उसे एफआईआर लिखानी थी।

हेड कांस्‍टेबल ने आंखें तिरछी करके पूछा, ‘मेरठ से इतनी दूर बैल खरीदने क्‍यों आया भाई? क्‍या सबूत है कि किसी ने तेरी जेब काटी है, हो सकता है कहीं गिर गए हों, या फिर उनकी दारु पी ली हो तूने और अब घरवाली के डर के मारे चोरी का नाटक रच रहा हो।’ कुल मिलाकर पुलिसवाले ने कह दिया, ‘एफआईआर न ल‍िखी जाने की।’

किसान रुआंसा सा एक कोने में खड़ा होकर कुछ सोचने लगा कि एक सिपाही ने उसे अपने पास बुलाया। दोनों में बातचीत हुई और तय हुआ कि अगर किसान कुछ ‘खर्चे-पानी’ का इंतजाम करे तो उसकी रपट ल‍िखवा दी जाएगी।

किसान ने हामी भर दी और मुंशी ने एफआईआर लिखनी शुरू की। पूरा मामला लिखने के बाद मुंशी ने कहा, ‘बाबा, दस्‍तखत करोगे या अंगूठा टेकोगे?’ किसान बोला, ‘पढ़ा-लिखा ना हूं, अंगूठा ही टेकूंगा?’ मुंशी ने कागज किसान की तरफ सरकाया और स्‍याही वाला पैड भी बढ़ा दिया। (Chaudhary Charan Singh)

मायूस से दिखने वाले किसान ने जेब में हाथ डालकर कुछ निकाला तो एक मुहर और कलम निकली। मुंशी जब तक कुछ समझ पाता उसने स्‍याही के पैड से मुहर पर स्‍याही लगाई और कागज पर ठोंक दी। मुंशी ने कागज घुमाकर पढ़ा, मुहर लगी थी…. प्रधानमंत्री भारत सरकार…। मुंशी जब तक कुछ समझ पाता किसान ने हाथ में थामे पैन से लिख दिया… चरण सिंह।

अब थाने में भूकंप आ गया। पूरा थाना हैरान रह गया कि देश के प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह उनके थाने में किसान बनकर रपट लिखाने आए थे। बहरहाल जो कुछ हुआ था उसे आधार बनाकर पूरा का पूरा थाना सस्‍पेंड कर दिया गया।

इस घटना के बारे में इटावा के निवासी वरिष्‍ठ पत्रकार जयचंद भदौरिया बताते हैं, ‘चौधरी साहब इसी तरह औचक निरीक्षण करते थे। उस दिन थाने से कुछ दूर पर उन्‍होंने अपना काफिला छोड़ दिया था। सड़क किनारे के एक खेत से थोड़ी मिट्टी उठाकर अपने कुर्ते पर रगड़ ली और जूते उतार कर नंगे पैर ही थाने में पहुंच गए थे। रिश्‍वतखोरी की सजा पूरे थाने को मिली। (Chaudhary Charan Singh)

फिलहाल अब ऊसराहार थाना जिला औरैया में पड़ता है। यह पहला मामला नहीं था, इससे पहले भी जब चौधरी साहब यूपी के सीएम थे तो इसी तरह किसान के वेष में थानों और सरकारी दफ्तरों का असली हाल भांपने निकल पड़ते थे।’


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