विशेषज्ञों की चिंता : महामारी में सरकार ने सार्वजनिक शिक्षा देने की जिम्मेदारी को नजरअंदाज किया

नई दिल्ली : शिक्षाविदों ने शनिवार को एक परामर्श बैठक में कहा कि छात्रों की जरूरतों और शिक्षा को सरकार ने, न केवल महामारी में बल्कि, अपने कार्यकाल के दौरान सबसे कम प्राथमिकता दी है. विशेषज्ञों ने सरकार द्वारा ऑनलाइन शिक्षा और ‘EdTech (एडटेक)’ को बढ़ावा देने और सार्वजनिक शिक्षा प्रदान करने की अपनी जिम्मेदारी को, नजरअंदाज करने पर भी चिंता जताई. (CERT SIO Siksha Samwad)

रविवार को स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑग्रेनाइजेशन ऑफ इंडिया (SIO) के सहयोग से दिल्ली स्थित सेंटर फॉर एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (CERT) द्वारा ‘शिक्षा संवाद’ नामक बैठक आयोजित हुई. इस मकसद के साथ कि कोविड-19 महामारी के दौरान, गुजरें दो साल में होने वाले शैक्षिक नुकसान से उबरने के तरीके पर चर्चा की जा सके.

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डाॅ. अपूर्वानंद, डीयू से प्रोफेसर डॉ. अनीता रामपाल, जमात-ए-इस्लामी हिंद के तालीम बोर्ड के सचिव सलीमुल्लाह खान, सीईआरटी के निदेशक, फवाज शाहीन के अलावा जामिया मिलिया इस्लामिया (JMI)  जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) और अन्य शिक्षण संस्थानों के छात्र और शोधकर्ता उपस्थित हुए.


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जेएनूय के सआदत हुसैन ने कहा कि, विश्वविद्यालय बड़े पैमाने पर अस्थायी शिक्षकों पर अधिक काम और कम भुगतान करके, अपनी शैक्षणिक संरचना को बनाए रखते हैं. शिक्षकों को उनके अनुबंध से तुरंत बर्खास्त कर दिया जाता है. और शायद ही कभी गर्मियों के वेतन का भुगतान किया जाता है. ऐसे शिक्षकों को स्थायी बनाने के लिए एक व्यापक समाधान की जरूरत है.

अनीता रामपाल ने कहा कि, डिजिटल शिक्षा, शिक्षा नहीं है. न ही ये वास्तविक शिक्षा का स्थान ले सकती है. शिक्षक एक ऐसी प्रणाली में फंसे और गुलाम महसूस कर रहे हैं, जो कोचिंग को प्रोत्साहित करती है, न कि पठन-पाठन प्रक्रिया को. छात्र सामूहिक कार्यों द्वारा एक-दूसरे से अधिक सीखते हैं. ऑनलाइन शिक्षा में वे एक-एक स्क्रीन या ब्लैकबोर्ड को घूर रहे होते हैं. सवाल नहीं करते, बहस नहीं करते और न चर्चा करते हैं.”

प्रोफेसर अपूर्वानंद ने कहा कि, हमारी सरकार के लिए डिजिटल होना प्रगतिशील होना है. और वे प्रोफेसरों और उच्च शिक्षा प्रदान करने की अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा पाना चाहते हैं.

फ़वाज़ शाहीन ने बताया कि सीखने के परिणामों को प्राप्त करने के लिए शैक्षिक वर्ष का विस्तार करने पर विचार करने की जरूरत है. “शिक्षा संवाद” एक परामर्श श्रृंखला है जिसे, शिक्षाविदों, छात्रों, शोधकर्ताओं, व्याख्याताओं और समाज के सदस्यों के साथ देश भर के विभिन्न राज्यों में आयोजित किया किया गया है.

 

(लेखक अज़हान वारसी शायर हैं, जो साहित्य में गहरी दिलचस्पी रखते हैं.)

Ateeq Khan

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