द लीडर. समाजवादी पार्टी के क़द्दावर नेता मुहम्मद आज़म ख़ान ने रामपुर से एलान कर दिया कि उपचुनाव में उनके जानशीन आसिम रजा शमसी होंगे. वो जिन्हें आज़म ख़ान ने लोकसभा उपचुनाव में भी एक तरह के अपनी विरासत बचाने के लिए मुहाफ़िज़ बतौर मैदान में उतारा था लेकिन राजा हार गए थे लेकिन लोकसभा के बरख़िलाफ़ विधानसभा में समीकरण काफी अलग रहते हैं. मसलन रामपुर सीट पर मुस्लिम वोट इतना है कि बंटने के बाद भी यहां से आज़म ख़ान विधायक बनते रहे हैं. उनके नाम 10 बार एक ही सीट से विधायक बनने का रिकॉर्ड है.
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आज़म ख़ान के पत्ते खोल देने के बाद रामपुर का विधानसभा चुनाव अब बहुत ही दिलचस्प हो गया है. किसी के लिए भी जीत आसान नहीं होगी. भले ही भाजपा पसमांदा सम्मेलन करके मुस्लिम वोटों में अगड़े और पिछड़े के नाम पर सेंध लगाने में लगी है. अब से पहले तक रामपुर के चुनाव का इतिहास रहा है कि यहां मुसलमानों में जातियों के नाम पर बंटवारा नहीं होता. दरअसल भाजपा की कोशिश है कि पिछड़े मुसलमानों को वोट लेकर रामपुर में पहली बार खाता खोल ले. भाजपा का खेमा उत्साहित इसलिए भी है कि कुछ दिन पहले ही उसने लोकसभा का उपचुनाव इन्हीं आसिम राजा शमसी को हराकर जीता है. यह भी सच है कि शहर सीट से तमाम कोशिश और कम मतदान फीसद के बावजूद आसिलम राजा शमसी को 63 हज़ार से ज़्यादा वोट मिले थे, जबकि घनश्याम सिंह लोधी रामपुर विधानसभा से 56 हज़ार 316 वोट हासिल कर पाए थे. यह आंकड़े गवाह हैं कि रामपुर सीट पर सपा की जड़ें गहरी हैं.
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रामपुर सीट पर यह चुनाव भड़काऊ भाषण मामले में आज़म ख़ान को तीन साल की सज़ा होने के बाद कराया जा रहा है. हालांकि इसके ख़िलाफ़ आज़म ख़ान अपील में गए थे. स्टे एप्लीकेशन पर सुनवाई हुई लेकिन राहत नहीं मिल सकी. आज़म ख़ान की न सिर्फ़ विधानसभा की सदस्यता गई है बल्कि वो ख़ुद चुनाव भी नहीं लड़ सकते. यही वजह है कि वो आसिम राजा शमसी को बतौर उम्मीदवार सामने लाए हैं. इस बार परिवार से भी किसी को चुनाव नहीं लड़ाने का फ़ैसला किया है. यहां तक कि बहू सिदरा आज़म का दावेदारी को भी रिजेक्ट कर दिया.