Bihar : अपनी आत्मकथा ‘द्रोहकाल का पथिक’ को जीवंत करते बिहार के हीरो पप्पू यादव, कभी सरहद पर जाने के लिए मां से मांगा करते थे बंदूक

अतीक खान


: पप्पू यादव वीरपुर जेल में बंद हैं. लेकिन सिस्टम-सरकार से उनकी लड़ाई जारी है. मंगलवार को गिरफ्तार हुए थे. रात को जेल पहुंचे. और बुधवार को जेल में भूख हड़ताल पर बैठ गए. इसलिए क्योंकि जेल में पानी है न वॉशरूम. एक लड़ाई जेल के अंदर है. तो बाहरी लड़ाई भी जारी रखने का संदेश आम किया है. अपने साथियों से कहा कि ‘रानीगंज के विशनपुर की बेटी-सोनी, जिसने अपनी मां को गड्ढा खोदकर दफनाया था. उसकी मदद करें. अस्पताल में डॉक्टर की छेड़खानी का शिकार बनी एक बहन को भी न्याय दिलाएंगे.” (Drohkal Ka Pathik Bihar Pappu Yadav )

पप्पू यादव की गिरफ्तारी के खिलाफ बिहार के लोगों में बेचैनी जरूर है. लेकिन उतना आक्रोश नहीं दिखता, जितनी शिद्दत के साथ पप्पू यादव अपने लोगों की सेवा में जुटे थे. उन्होंने भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूढ़ी के एक आवासीय परिसर में खड़ी एंबुलेंस का मामला खोला था. घटना ने पूरे देश का ध्यान खींचा. इसलिए क्योंकि आम जनता एंबुलेंस के अभाव में दम तोड़ रही है. लोग साईकिल, कंधों पर मरीज लिए अस्पताल की ओर दौड़ रहे हैं. तब एक सांसद के यहां बड़ी संख्या में एंबुलेंस का खड़ा होना न सिर्फ निंदनीय है, बल्कि आपराधिक भी कहा जाए, तो कोई गुनाह नहीं.

पप्पू यादव केवल जन प्रतिनिधियों की जनता के प्रति उदासीनता को ही नहीं सामने ला रहे थे. बल्कि दिन रात ऑक्सीजन, दवा और अस्पताल का इंतजाम भी करा रहे थे. मंगलवार को जब से पप्पू यादव गिरफ्तार हुए हैं. उनकी रिहाई के लिए ट्वीटर पर ट्रेंड चल रहा है. और लोग नीतीश सरकार की आलोचना कर रहे हैं.

पप्पू यादव की गिरफ्तारी के बाद उनके ट्वीटर हैंडल से एक ट्वीट किया गया. जिसमें लिखा- ”सुबह 9 बजे से रात 1 बजे तक, करीब 16 घंटे से मुझे बैठाकर रखा गया है. मैं शुगर का मरीज हूं. पांव की सर्जरी हुई थी. डाॅक्टर ने मुझे आराम की सलाह दी थी. मेरे सहयोगियों ने भी एक दाना-पानी नहीं लिया है. आखिर मेरा जुर्म क्या है.”


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बुधवार को उनके हैंडल से एक ट्वीट किया, जिसमें गिरफ्तारी की सूचना दी गई. लिखा-” साथियों में जेल में हूं. पर जिंदगी बचाने और सेवा करने की राजनीती जारी रहनी चाहिए् रानीगंज की बेटी सोनी, जो माता-पिता को खोकर अनाथ हो गई है. उन्हें मजबूरन अपनी मां को गड्ढे में दफन करना पड़ा. सोनी की भरपूर मदद करें.”

इसके बाद एक अन्य ट्वीट में उन्होंने भूख हड़ताल की सूचना दी है. ”मैं वीरपुर जेल में भूख हड़ताल पर हूं. न पानी है न वॉशरूम. मेरे पांव का ऑपरेशन हुआ था. नीचे बैठ नहीं सकता. कोरोना मरीज की सेवा करना, उनकी जान बचाना. दवा माफिया, अस्पताल माफिया, ऑक्सीजन माफिया, एंबुलेंस माफिया को बेनकाब करना ही मेरा अपराध है. मेरी लड़ाई जारी है.”

पप्पू यादव ने ये सवाल भी सामने रखा था कि जब मैं कोविड निगेटिव हूं तो फिर मुझे क्वारंटीन सेंटर वीरपुर क्यों भेजा गया् क्या मुझे कोरोना पॉजिटिव कर मेरे सेहत से खिलवाड़ करना है? जब सुप्रीमकोर्ट की गाइडलाइन है कि बहुत आपात स्थिति न हो तो किसी को गिरफ्तार न किया जाए. किसी को जेील न भेजा जाए तो फिर मुझ पर ये जुल्म क्यों?

कौन हैं पप्पू यादव

पप्पू यादव बिहार से चार बार के लोकसभा सांसद रहे हैं. राज्य की हर आफत में लोगों की दिल खोलकर मदद करने वाले पप्पू यादव बाढ़ में राहत कार्यों से राष्ट्रीय चर्चा में आए थे. इसके बाद से हर मुश्किल में पप्पू यादव लोगों के बीच नजर आते हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन हार के बावजूद जनता के साथ खड़े नजर आते हैं और सरकारी अव्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाते दिखते हैं.


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पप्पू यादव की आत्मकथा ”द्रोहकाल का पथिक” में एक अध्याय है ”विद्रोही बाहुबली कैसे?” ये काफी दिलचस्प है. जिसमें पप्पू यादव की बचपन की स्मृतियों का जिक्र है. इसमें पप्पू यादव बताते हैं कि ”जिंदगी में नाम कमाने की ख्वाहिश बचपन से रही है. छोटा बच्चा होऊंगा, जब मैं मां को एक गाना सुनाया करता था. वो ये ‘माता मुझको बंदूक दे दो, मैं सरहदद पार जाऊंगा…और दुश्मन को मार भगाऊंगा.’ ये पंक्तियां मैंने कहां से सीखीं. ठीक से याद नहीं है. लेकिन मां बताती हैं कि काफी कम उम्र में ये गाना गाता था.”

आगे लिखा है, ” मैं बचपन से ही क्रांतिकारी बनना चाहता था. भगत सिंह बनने की तमन्ना थी. सुभाष बनना चाहता था. कबीर, गौतमबुद्ध. लेकिन लगता है कि जिंदगी ने मुझे नेल्सन मंडेला बनाने की ठानी है. क्रांतिकारी जीजीविषा का आलम ये था कि बचपन में जब मैं पूर्णिया में रहता था. अंग प्रदेश क्रांतिकारी दल नामक संगठन था. ये संगठन गंभीर रूप ले चुका था. 1984 के लोकसभा चुनाव की बात है. पूर्णिया में उमाकांत जी सांसद का चुनाव लड़ रहे थे. हम लोग हाफ पेंट पहनकर उनके चनुाव प्रचार में पोस्टर लगाया करते थे. अंग्रेजी में जितने भी पोस्टर, बैनर थे. सबको फाड़ देते. और लिख देते थे कि अंगिका में लिखूं.”


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ये पप्पू यादव है, आत्मकथा में जैसा उनके बचपन पकी स्मृतियों का किस्सा दर्ज है. वे ठीक वैसा ही किरदार जीने की कोशिश कर रहे हैं. तब, जब मंत्री, विधायक अपने आलीशान मकानों में कैद हैं. और अस्पतालों में मातम पसरा है. जब एक जज अपने पिता का शव लेने से इनकार कर देता है. तब पप्पू यादव लोगों के साथ खड़े होकर उनकी मदद करते हैं और उनका दर्द बांटते नजर आते हैं.

 

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