कौन हैं ग़ुलाम अली खटाना, जिन्हें केंद्र की सिफ़ारिश पर राष्ट्रपति ने राज्यसभा सांसद मनोनीत किया

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द लीडर : जम्मू-कश्मीर के भाजपा नेता ग़ुलाम अली खटाना राज्यसभा सांसद मनोनीत किए गए हैं. केंद्र सरकार की सिफ़ारिश पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनके मनोनयन पर मुहर लगा दी है. कश्मीर में आम चुनाव की तैयारी के बीच ग़ुलाम अली खटाना को सांसद बनाने का फ़ैसला पार्टी के लिए काफ़ी फ़ायदेमंद माना जा रहा है. यूपी सरकार में दानिश आज़ाद को मंत्री बनाने के बाद खटाना को सांसद बनाने के फ़ैसले तक, भाजपा ने मुस्लिम पॉलिटिक्स को लेकर अपनी बदली रणनीति को धरातल पर उतारने का काम शुरू कर दिया है. ग़ुलाम अली खटाना कौन हैं और राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य में भाजपा के लिए कैसे लाभकारी हो सकते हैं. इस पर हम बात करेंगे. लेकिन पहले उनकी पृष्ठभूमि के बारे में थोड़ा जान लेते हैं.

गुलाम अली खटाना ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. पढ़ाई पूरी करने के बाद 2008 में वह भाजपा से जुड़ गए थे. खटाना, गुज्जर समुदाय से आते हैं. कश्मीर में गुज्जर और बक़रवाल समुदाय की अच्छी ख़ासी तादाद है. राज्य की कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी 11.9 फ़ीसदी है. इन दोनों समुदायों का मुख्य पेशा भेड़-बकरी पालन है. आर्थिक तौर पर पिछड़ापन है. समुदाय के ज़्यादातर लोग पहाड़ी इलाक़ों में रहते हैं.

ग़ुलाम अली खटाना पिछले 14 सालों से इस बिरादरी के बीच सक्रिय हैं. और पार्टी उनको ताक़त दे रही है. भाजपा ने उन्हें जम्मू-कश्मीर की राज्य इकाई में कई अहमद पदों का ज़िम्मा भी दिया. प्रवक्ता से लेकर राज्य का उपाध्यक्ष पद तक दिया है. और खटाना राज्यसभा पहुंच गए हैं. ज़ाहिर है कि खटाना अब पार्टी के लिए दोगुनी ऊर्जा के साथ काम करेंगे.


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अब बात करते हैं भाजपा की मुस्लिम पॉलिटिक्स पर. ग़ुलाम अली खटना के राज्यसभा पहुंचने से पहले तक, एक ज़माने से भाजपा के कद्​दावर नेता माने जाने वाले पूर्व मंत्री एमजे अक़बर और मुख़्तार अब्बास नक़वी की संसद से विदाई हो चुकी है. इस साल की शुरुआत तक राज्यसभा में भाजपा के तीन मुस्लिम सांसद हुआ करते थे. इनमें एमजे अक़बर, मुख़्तबार अब्बास नक़वी और सैयद ज़फ़र इस्लाम. इसी साल तीनों का कार्यकाल पूरा ख़त्म हो गया. लेकिन इनमें से किसी को भी पार्टी ने दोबारा उम्मीदवार नहीं बनाया.

इसी दरम्यान पार्टी ने मुस्लिम समाज के पिछड़े वर्ग को साधने की अपनी रणनीति सार्वजनिक की. दानिश आज़ाद, जो यूपी सरकार में राज्यमंत्री हैं-पार्टी की इसी रणनीति का परिणाम हैं.

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अब तक भाजपा का फोकस शिया मुसलमानों पर अधिक रहा है. शिया समुदाय भाजपा का कोर वोटर भी है. भाजपा में जो भी प्रमुख मुस्लिम चेहरे नज़र आते रहे हैं, उनका ताल्लुक भी इसी समुदाय से रहा है. लेकिन इधर पार्टी ने सुन्नी मुस्लिम समुदाय के पिछड़ों को साथ लेने की कोशिश की है, जो मुस्लिम समाज के भीतर अक्सरियत में है.

दानिश आज़ाद, अंसारी बिरादरी से आते हैं. आज़ाद को मंत्री बनाए जाने से इस बिरादरी का एक बड़ा वर्ग पार्टी के प्रति प्रभावित हो रहा है. अभी जब बरेली में समाजवादी पार्टी के भोजीपुरा से विधायक शहज़िल इस्लाम ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को केंद्र में रखकर एक टिप्पणी की थी. और इसके एवज़ में उनके पेट्रोल पंप पर बुल्डोज़र चला. विधायक की दूसरी पॉपर्टी भी निशाने पर आ गई. तब संघ और भाजपा नेताओं की सिफ़ारिश से ही विधायक को राहत मिली थी.

पिछले दिनों ही संघ के नेता इंद्रेश कुमार के साथ सपा विधायक शहज़िल इस्लाम और उनके पिता पूर्व विधायक इस्लाम साबिर की एक तस्वीर सामने आई थी, जो राजनीतिक हल्कों में काफ़ी चर्चित भी हुई. दरअसल, सपा विधायक शहज़िल इस्लाम भी अंसारी बिरादरी से ही आते हैं. और बरेली की मुस्लिम पॉलिटिक्स में अंसारी बिरादरी का दबदबा माना जाता है.

ग़ुलाम अली खटाना भी गुज्जर बिरादरी से हैं. जम्मू-कश्मीर में इस बिरादरी को अनुसूचित जन जाति का दर्जा मिला है. खटाना कश्मीर में तो पार्टी के लिए मुफ़ीद हैं ही. उनकी मौजूदगी दूसरे राज्यों के पिछड़े मुसलमानों को भी प्रभावित करेगी. जैसा कि यूपी में दानिश आज़ाद की मौजूदगी अंसारी समाज को प्रभावित कर रही है.


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