जस्टिस मार्केंडय काटजू
कांग्रेस अपने किसी भी वैचारिक सिद्धांत के पाए पर नहीं खड़ी है. सिवाय इसके कि उसने धर्मनिरपेक्षता का चोला ओढ़ रखा है. वो भी इसलिए नहीं कि, उसे भारतीय अल्पसंख्यकों की बड़ी फिक्र और परवाह है. बल्कि उसकी नजर तो मुसलमानों के एक महत्वपूर्ण वोटबैंक पर है. जब कभी कांग्रेस को लगता है कि चुनाव जीतने के लिए हिंदुत्व अपनाना जरूरी हो गया. तब रंग बदल जाता. मिसाल के तौर पर गुजरात और केरल का विधानसभा चुनाव देख लीजिए. राहुल गांधी, हर उस मंदिर गए-जहां जा सकते थे. मानसरोवर झील हो आए. समर्थकों ने उन्हें जनेऊधारी शिव भक्त घोषित कर दिया.
दूसरा-मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए कमलनाथ ने 1000 गौशालाएं बनवाने का ऐलान भी किया था. इससे भी उसके वैचारिक स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है.
इंदिरा गांधी सत्ता के मद में चूर थीं, जिन्होंने सत्ता में बने रहने की खातिर 1975 में, देश में एक फेक इमरेजेंसी लगाई थी. राजीव गांधी 1984 के सिख नरंसहार के लिए जिम्मेदार थे. सुप्रीमकोर्ट ने शाहबानों केस में एक प्रोग्रेसिव फैसला सुनाया था. जिसे राजीव सरकार ने मुस्लिम वोट बैंक बनाए रखने के लिए रद कर दिया.
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यूपीए सरकार में लाखों करोड़ का धन विदेशों में गुप्त ठिकानों पर पहुंचाया गया. तो सवाल ये है कि क्या फिर से देश राजवंश के अधीन आ जाए, जिसमें दो-ढाई लोग मायने रखते हों. प्रियंका गांधी से शादी के बाद रॉबर्ट वाड्रा कितने मालदार हो गए.
पिछले दिनों में महाराष्ट्र में शरद पवार के घर विपक्षी दलों के नेताओं की एक बैठक हुई. कांग्रेस को छोड़ बाकी कई दल शामिल हुए. कुछ मुद्दों पर इसमें चर्चा हुई. लेकिन नतीजा नहीं निकला.

हकीकत में इन पार्टियों में भाजपा से नफरत-दुश्मनी के सिवा कुछ भी सामान्य नहीं है. विपक्ष की सर्वदलीय बैठक यशवंत सिन्हा ने बुलाई थी, जो पहले भाजपाई थे और राजग सरकार में केंद्रीय वित्त मंत्री भी रहे. अब बंगाल में ममता बनर्जी की टीएमसी में शामिल हो गए हैं. इससे उनकी खुद की विश्वसनीयता स्पष्ट है.
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जब भी कोई पार्टी चुनाव मैदान में जाती है. तो उसे जनता के सामने अपना रचनात्मक और सकारात्मक एजेंडा रखना होता है. बीजेपी के पास हिंदुत्व है. इस पर कोई कुछ भी सोचे. लेकिन सवाल ये है कि विपक्ष के पास क्या है? सिवाई स्वार्थ और सत्ता की ख्वाहिश के.
ऐसे में विपक्ष भुखमुरी, गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण, स्वास्थ्य संकट और खून की कमी से जूझती महिलाओं को क्या दे सकता है? महंगाई और बेरोजगारी दोनों एक रफ्तार से बढ़ती जा रही है. किसान-जवान संकट में हैं. भ्रष्टाचार अलग.
”भारत में विपक्ष कई सिर वाले रावण जैसा है. एक गठबंधन, जो सांप-बिच्छू का संग्रह है.” ये जानते हुए कि अगर अगले चुनाव में गठबंधन सत्ता में आता है. तो फिर मलाईदार मंत्रालयों को हथियाने के नाम पर झगड़ेंगे.
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मसलन, कोई वित्तमंत्रालय, उद्योग, गृह मंत्रालय की मांग करेगा. इसके बाद भी अंदरूनी घमासान जारी रहेगा. जैसा कि आपातकाल के बाद 1977 में आई जनता पार्टी की सरकार के दौरान हुआ था.
(जस्टिस मार्केंडय काटजू सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रहे हैं. उनके अंग्रेजी आलेख का ये हिंदी अनुवाद है. जो उन्होंने ने वरिष्ठ पत्रकार तवीलन सिंह के एक आलेख के जवाब में ये लिखा है. जिसे तवीलन सिंह ने हमें, ‘एक विपक्ष की जरूरत’ शीर्षक दिया था. जस्टिस काटजू ने इसे मसखरा और हास्यास्पद बताया है. ये कहते हुए कि ये डियाकर्मियों में वैचारिक दिवालियेपन को दर्शाता है.)