बदायूं : जिला काजी सालिमुल कादरी के जनाजे में उमड़ी हजारों की भीड़, बेखबर पुलिस अब महामारी एक्ट के तहत कार्रवाई में जुटी

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Badaun Funeral Qazi Salimul Qadri Police Epidemic Act

द लीडर : उत्तर प्रदेश के बदायूं शहर में जिला काजी अब्दुल हमीद मुहम्मद सालिमुल कादरी का रविवार को इंतकाल हो गया. करीब 80 वर्षीय सालिमुल कादरी लंबे समय से बीमार चल रहे थे. रविवार को जब उन्हें सुपुर्द-ए-खाक किया गया. तो उनके जनाजे में हजारों की भीड़ उमड़ पड़ी. इसके कई वीडियो सामने आए हैं. जिसमें भारी भीड़ नजर आ रही है. कोविड-19 में इस भीड़ पर सवाल उठने के बाद स्थानीय पुलिस ने कार्रवाई की बात कही है. (Badaun Funeral Qazi Salimul Qadri Police Epidemic Act)

सालिमुल कादरी खानकाह आलिया कादरिया के सरपरस्त थे. बदायूं समेत रुहेलखंड परिक्षेत्र में उनके चाहने वालों की संख्या काफी बड़ी है. यही वजह है कि जब उनके इंतकाल की खबर आम हुई तो वे लॉकडाउन की बंदिशों को भूलकर उमड़ पड़े.

हालांकि हालात के मद्देनजर जिस तादाद में भीड़ जनाजे में शामिल हुई, उसको लेकर मुस्लिम समाज से भी बेचैनी सामने आई है. और सवाल उठाया जा रहा है कि कोविड के खतरे को भूलकर इस तरह जुटना गलत था. इस तरह की गलतियों से संक्रमण की चैनत तोड़ना मुश्किल होगा.


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समाजवादी पार्टी से बदायूं के पूर्व सांसद धर्मेंद्र सिंह यादव ने सालिमुल कादरी के निधन पर शोक जताते हुए कहा कि वह मेरे संरक्षक के रूप में थे. उनका जाना मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है. धर्मेंद्र यादव ने उनकी मगफिरत की दुआ की है.

सोशल मीडिया पर जनाजे में भीड़ जुटने के बाद जब सवाल उठने लगे. और लोग बदायूं पुलिस को टैग करके कार्रवाई का प्रश्न पूछने लगे. तब पुलिस ने कहा कि प्रकरण संज्ञान में आते ही कोतवाली थाने में धारा-188, 269 और 270 के तहत मामला दर्ज किया गया है. और अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के नेतृत्व में टीम गठित कर साक्ष्य जुटाकर दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई की जा रही है.

गौरव मिश्रा नामक एक ट्वीटर यूजर ने वीडिया शेयर करते हुए लिखा-ये भीड़ कुंभी की नहीं है. होती तो विधवा विलाप शुरू हो जाता. ये बदायूं के अब्दुल हमीद सालिमुल कादरी बदायूंनी की मौत में उमड़ी भीड़ है. इसी तरह कई अन्य यूजर बदायूं पुलिस को ट्वीटर पर टैग कर रहे हैं.


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अभिषेक रस्तोगी ने लिखा-बदायूं में किसी मुस्लिम धर्मगुरु की अंतिम यात्रा में जनसैलाब. क्या इसी तरह लॉकडाउन का पालन किया जाना है. इससे बेहतर है कि लॉकडाउन हटा दिया जाए.

वहीं, कई लोग पुलिस की कार्यशैली पर भी सवाल उठा रहे हैं. इस तर्क के साथ कि मुस्लिम समाज की एक बड़ी धार्मिक हस्ती का निधन होने पर ये पता होना चाहिए कि भीड़ उमड़ेगी. पुलिस ने शुरुआत में ये व्यवस्था क्यों नहीं की, कि भीड़ न जुटे. एक तरह से पुलिस ने जनाजे में भीड़ को पूरी आजादी के साथ जुटने दिया. और कार्रवाई का तर्क गढ़ रही है. ठीक वैसे जब अपराध के बाद पुलिस सक्रिय होती है. उससे पहले अपराध रोकने की उसकी कोई जवाबदेही और जिम्मेदारी नहीं होती.

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