द लीडर। ज्ञानवापी मस्जिद और कुतुब मीनार का विवाद अभी थमा भी नहीं था कि अब एक और मस्जिद पर मंदिर होने का दावा किया जा रहा है। जी हां यूपी के काशी की ज्ञानवापी मस्जिद से शुरू हुआ मंदिर-मस्जिद विवाद अब देश के कोने-कोने में पहुंच रहा है। और बड़ी संख्या में हिन्दू संगठन मस्जिदों पर सवाल खड़े कर रहे हैं।
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मंदिर-मस्जिद का विवाद राजस्थान के अजमेर की ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह तक पहुंच गया है। हाल ही में दिल्ली की एक संस्था ने दरगाह के मंदिर होने के दावा किया था और राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत को पत्र लिखकर सर्वे कराने की मांग की थी।
दिल्ली निवासी सीएम गहलोत को लिखा पत्र
दिल्ली निवासी राजवर्धन सिंह परमार महाराणा प्रताप सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जिन्होंने सीएम अशोक गहलोत को पत्र लिखकर अजमेर स्थित ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह को पूर्व में हिन्दू होने की बात कहते हुए दरगाह के पुरातत्व विभाग से सर्वेक्षण कराने की मांग रखी है।
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दरगाह की जगह सालों पहले था मंदिर
उन्होंने दावा किया है कि, सर्वे के बाद मिले सबूतों से यह साफ हो जाएगा कि, दरगाह की जगह सालों पहले मंदिर था। सीएम को लिखे पत्र में राजवर्धन सिंह परमार ने दरगाह के अंदर कई जगहों पर हिंदू धार्मिक चिंह होने का हवाला दिया है, जिसमें स्वास्तिक के निशान को प्रमुखता से बताया गया है।
राजवर्धन सिंह परमार पत्र की कॉपी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, राजस्थान के राज्यपाल सहित कई अन्य केंद्रीय मंत्रियों को भी भेजी है। राजवर्धन सिंह के पत्र की जानकारी सामने आने के बाद विवाद शुरू हो गया है।
गुरुवार को एडीएम सिटी भावना गर्ग ने दरगाह का दौरा किया, अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए फिलहाल दरगाह के पास भारी संख्या में सुरक्षा बल तैनात किया गया है।
यह सस्ती लोकप्रियता का तरीका- नसीरुद्दीन चिश्ती
वहीं दरगाह को मंदिर बताए जाने के विवाद के बीच अजमेर दरगाह दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन अली खां के पुत्र नसीरुद्दीन चिश्ती ने बयान दिया है. उन्होंने दरगाह को मंदिर बताए जाने पर इसे सस्ती लोकप्रियता पाने का तरीका बताया है।
नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहा कि, 800 सालों से गरीब नवाज की दरगाह हिंदू मुसलमानों की आस्था का केंद्र है, जिसने भी इस तरह की बात कही है वह नकारा है, उन्होंने इस बात का खंडन करते हुए कहा कि, गरीब नवाज के दरबार से हिंदू , मुस्लिम सहित करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है।
उन्होंने ये भी कहा कि, इस दरबार से हमेशा अमन और मोहब्बत का पैगाम दिया गया है, जिस किसी ने भी ऐसा ट्वीट किया है वह नाकाबिले बर्दाश्त है, हम उसे सिरे से खारिज करते है।
सांप्रदायिक सौहार्द की निशानी है दरगाह
दरगाह को मंदिर बताए जाने के विवाद के बीच ही अंजुमन सैयद जादगान के पदाधिकारियों ने भी राजवर्धन सिंह परमार की बात को सिरे से खारिज किया है। उन्होंने कहा कि, विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह सांप्रदायिक सौहार्द की निशानी है।
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मुस्लिमों के साथ-साथ हिंदू भी यहां हाजिरी लगाने आते हैं। वहीं, अंजुमन सैयद जादगान कमेटी के सचिव सैयद वाहिद हुसैन अंगारा ने कहा, इस तरह के बयान रोजमर्रा की बात है।
देश में अशांति फैलाने वालों पर कार्रवाई की मांग
ऐसे बयान देश में अराजकता फैलाने के लिए दिए जा रहे हैं। अंगारा ने कहा, दरगाह में इस तरह की कोई जगह नहीं थी और न है। उन्होंने कहा कि सरकार से देश में अशांति फैलाने वालों पर सख्त कार्रवाई करें।
अंजुमन सैयद जादगान के सदर सैयद मोइन हुसैन चिश्ती ने कहा कि, हमारा देश सूफी संतों का देश है। दरगाह को लेकर फैलाई जा रहीं बातें गलत हैं।
गरीब नवाज का दरबार करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र है। यहां सभी धर्मों के लोग आते हैं। उन्होंने कहा, इस तरह की बातें फैलाने वाले मुट्ठी भर लोग हैं, जो देश में अराजकता फैलाना चाहते हैं।
करीब 900 साल पुरानी है दरगाह
जानकार अजमेर शरीफ दरगाह का इतिहास 900 साल पुराना बताते हैं, हाल ही में ख्वाजा गरीब नवाज का 810वां उर्स मनाया गया था। राजवर्धन सिंह परमार के पत्र लिखने से पहले तक अजमेर शरीफ की दरगाह पर किसी ने मंदिर होने के सवाल नहीं उठाए थे।
दरगाह के एक झरोखे में बने स्वास्तिक के निशान की फोटो वायरल होने के बाद दरगाह के मंदिर होने दावा किया गया, जिसने राजस्थान में एक नया विवाद शुरू कर दिया है।
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