-जन्मदिन-
भाेपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए जिस शख्स ने आखिरी सांस तक इंसाफ की लड़ाई लड़ी और हजारों लोगों को राहत दिलाई, उनका नाम अब्दुल जब्बार था। सालभर पहले तीन दशकों से इंसाफ के लिए संघर्ष करने वाले जब्बार साहब ने 62 साल की उम्र में साथ छोड़कर भोपाल में सन्नाटा भर दिया। आर्थिक तंगी से जूझ रहे जब्बार का परिवार उन्हें किसी भी सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल में ले जाने में असमर्थ था। जब तक सरकार हरकत में आई, बहुत देर हो चुकी थी। दिल का दौरा पड़ने के बाद वे चल बसे। (Abdul Jabbar Bhopal Tragedy)
अब्दुल जब्बार भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए काम करने वाले एक एनजीओ के संयोजक थे। उनके माता-पिता भी भोपाल गैस त्रासदी में मारे गए हजारों लोगों में शामिल थे। उस वक्त उनकी उम्र महज 20 साल रही होगी। गैस रिसाव के संपर्क में आने से उनके फेफड़ों और आंखों पर गंभीर प्रभाव पड़ा। उनकी एक आंख की नजर बहुत खराब हो गई।
2 दिसंबर 1984 की रात भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट का रिसाव हुआ था। हवा में जहरीली गैस तेजी से फैल रही थी। 30 टन से ज्यादा जहरीली गैस का रिसाव हुआ।
हादसा इतना भीषण था कि हवा के विपरीत होने के बावजूद लोगों की मौत हो गई। उस रात करीब तीन हजार मौत की नींद से नहीं उठे। भाेपाल जिधर देखो, जनाजे ही थे। मौतों की कुल संख्या 15 से 20 हजार के बीच होने का अनुमान लगाया गया, लेकिन इस घटना से लाखों लोग प्रभावित हुए थे। (Abdul Jabbar Bhopal Tragedy)
भोपाल के राजेंद्र नगर स्ट्रीट, जब्बार जहां रहते थे, वह यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से महज डेढ़ किलोमीटर दूर है। उस रात वह अपनी मां के साथ घर पर थे। अचानक घर में सो रहे लोगों की तबीयत बिगड़ने लगी। पूरे मोहल्ले में यही हो रहा था। लोग समझ नहीं पा रहे थे कि क्या हो रहा है। लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी।
जब्बार ने अपनी मां को स्कूटर पर बिठाया और 40 किलोमीटर दूर सुरक्षित स्थान पर ले गए और दूसरों की मदद के लिए फिर लौट आए। जब तक लौटे, मंजर भयावह हो चुका था, सोते-सोते लोग मर गए, कुछ कराह रहे थे और गलियों में दर्द से कराह रहे थे।
बोरवेल लगाने वाली कंपनी के कर्मचारी अब्दुल जब्बार ने उस रात, आखिरी रात मानकर पूरी ताकत से अग्निपरीक्षा दी और जितनों की मदद कर सकते थे, की। रात फिर जैसे गुजरी ही नहीं और पूरी जिंदगी लगा दी।
1987 में अब्दुल जब्बार ने भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन की स्थापना की। संगठन ने खासतौर पर उन बेवाओं के लिए लड़ाई लड़ी, जिन्होंने त्रासदी में अपने पति को खो दिया था। संघर्ष तेज होने पर 1989 में गैस पीड़ितों को मुआवजे ऐलान हुआ।
फिर एक स्वाभिमान केंद्र की स्थापना की, जिसमें महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई जैसे आत्मनिर्भरता के काम सिखाए जाते, जिससे ये महिलाएं स्वाभिमान के साथ जिंदगी गुजार सकें। इससे करीब पांच हजार महिलाएं लाभान्वित हुई हैं। (Abdul Jabbar Bhopal Tragedy)
मुआवजा इंसाफ नहीं था। न सभी को मिला और न ही पर्याप्त था।
अब्दुल जब्बार के नेतृत्व में गैस पीड़ितों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को करीब 20 पोस्टकार्ड भेजे। अपने एनजीओ के जरिए पीड़ितों के परिवारों की मदद की और उनकी बातों को सरकार तक पहुंचाने के लिए कई बार प्रदर्शन किए। जिन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया, उनके रोजगार की मांग की। खैरात नहीं रोजगार चाहिए का नारा बुलंद किया।
1988 में जब्बार के संगठन को पहली सफलता तब मिली जब सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ितों को गुजारा भत्ता देने की बात कही। इसके बाद 1989 में, भारत सरकार और यूनियन कार्बाइड के बीच एक समझौते में तय हुआ कि पीड़ितों को 25 हजार रुपए और मृतकों के परिवारों को 1 लाख रुपए दिए जाएंगे।
उनके संगठन की पैरवी से 2010 में भोपाल के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने यूनियन कार्बाइड के अधिकारियों को दो-दो साल की सजा सुनाई, लेकिन यह सजा अभी तक लागू नहीं हुई है।
जब्बार भोपाल के जन-संघर्ष के प्रतीक बन चुके हैं। उनका संघर्ष आज यहां के हर आंदोलन में जीवट की मिसाल है।
नवंबर 2021 में उनको मृत्योपरांत पद्मश्री पुरस्कार दिया गया।